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________________ अनुयोग ३८ आगम विषय कोश-२ ३५. गुणशतकलित-मूलगुण, उत्तरगुण आदि सैकड़ों गुणों थोड़ा क्षीर प्राप्तकर लेगा। से युक्त। चतुर्थ भंग में दोनों नियुक्त हैं तो क्षीर की प्राप्ति होगी। ३६. प्रवचनयुक्त–द्वादशांग के सम्यक् व्याख्याता। गाय व दोहक की उपमा के आधार पर आचार्य व जो गुणों में सुस्थित है, उस अनुयोगकृत के वचन घृत शिष्य के अनुयोग की प्रवृत्ति को जान लेना चाहिए। इसके से अभिषिक्त अग्नि की भांति दीप्त होते हैं। गणहीन के चार विकल्प हैंवचन स्नेहविहीन दीपक की भांति प्रभासित नहीं होते। १. आचार्य अनियुक्त, शिष्य भी अनियुक्त ७. अनुयोग की प्रवृत्ति : गौ दृष्टान्त २. आचार्य अनियुक्त, शिष्य नियुक्त अणिउत्तो अणिउत्ता. अणिउत्तो चेव होड उनिउत्ता। ३. आचाय नियुक्त, शिष्य आनयुक्त निउत्तो अणिउत्ता, उ निउत्तो चेव उ निउत्ता॥ ४. आचार्य नियुक्त (अनुयोग में प्रवृत्त), शिष्य भी नियुक्त निउत्ता अनिउत्ताणं, पवत्तई अहव ते वि उ निउत्ता। (श्रवण में प्रवृत्त)। दव्वम्मि होइ गोणी, भावम्मि जिणादयो हुंति॥ पहले भंग में आचार्य व शिष्य दोनों अनुयोग में अनियुक्त हैं तो अनुयोग की प्रवृत्ति नहीं होगी। अप्पण्हुया य गोणी, नेव य दुद्धा समुज्जओ दुर्द्ध। खीरस्स कओ पसवो, जइ वि य सा खीरदा घेणू॥ दूसरे भंग में आचार्य अनुयोग की प्रवृत्ति में अनियुक्त बीए वि नत्थि खीरं, थेवं व हविज्ज एव तइए वि। हैं और शिष्य नियुक्त हैं तब भी अनुयोग की प्रवृत्ति नहीं अत्थि चउत्थे खीरं, एसुवमा आयरिय-सीसे ॥ होगी, किन्तु शिष्य यदि पुरुषार्थी हैं तो आचार्य के न चाहने पर भी वे बार-बार प्रश्न, जिज्ञासा आदि के द्वारा आचार्य को अहवा अणिच्छमाणमवि किंचि उज्जोगिणो पवत्तंति। अनुयोग में प्रवृत्त कर देते हैं। तइए सारिते वा, होज्ज पवित्ती गुणिते वा॥ तीसरे भंग में आचार्य अनुयोग की प्रवृत्ति में नियुक्त (बृभा २३४-२३८) हैं पर शिष्य नियुक्त नहीं हैं तो अनुयोग की प्रवृत्ति नहीं अनुयोगप्रवर्तन को बताने के लिए प्रवृत्ति के दो प्रकार होगी, किन्तु आचार्य समर्थ हैं तो वे शिष्यों को प्रेरणाकिए गए हैं प्रोत्साहन द्वारा अनुयोग में प्रवृत्त कर देते हैं। द्रव्यत:-क्षीरप्रसव हेतु गौदृष्टांत। अथवा 'अनुयोग की परम्परा विच्छिन्न न हो'-इस भावतः-जिन आदि अनुयोगप्रवर्तक। चिन्तन से आचार्य शिष्य के न चाहने पर भी उसके समक्ष गाय और दोहक से संबंधित चार विकल्प हैं ग्रंथपरावर्तन के निमित्त से अनुयोग में प्रवृत्त होते हैं। यथा १. दोहक अनियुक्त, गौ भी अनियुक्त आचार्य कालक। २. दोहक अनियुक्त, गौ नियुक्त चौथे भंग में आचार्य तथा शिष्य दोनों अनुयोग में ३. दोहक नियुक्त, गौ अनियुक्त नियुक्त हैं तो सहज ही अनुयोग की प्रवृत्ति होगी। ४. दोहक नियुक्त, गौ भी नियुक्त प्रथम भंग में गाय अप्रस्नुता है, दोहक अनियुक्त है, ० वीर-गौतम दृष्टांत तब क्षीर की प्राप्ति नहीं होगी। निउत्तो उभउकालं, भयवं कहणाएँ वद्धमाणो उ। द्वितीय भंग में दोहक अनियुक्त है किन्तु गाय नियुक्त गोयममाई वि सया, सोयव्वे हुँति उ निउत्ता॥ है तो क्षीर की प्राप्ति नहीं होगी। यदि प्रस्नता गाय के स्तनों से (बृभा २४०) थोड़ा-थोड़ा क्षीर गिरता है तो थोड़े क्षीर की प्राप्ति हो जायेगी। __ भगवान वर्धमान दोनों समय अनुयोग में प्रवृत्त होते थे तृतीय भंग में गाय अनियुक्त और दोहक नियुक्त है, और गौतम आदि शिष्य सदा श्रोतव्य में नियुक्त थे—यह चतुर्थ तब क्षीर की प्राप्ति नहीं होगी किन्तु दोहक में गुण है तो विकल्प (आचार्य नियुक्त शिष्य भी नियुक्त) का निदर्शन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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