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________________ अनशन आगम विषय कोश-२ देव अथवा मनुष्य उसके मुख में अनुलोम और प्रतिलोम अनशन की परिपालना करता है। जैसे समुद्र जलजंतुओं से अथवा सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्यों का प्रक्षेप कर सकते हैं, क्षुब्ध नहीं होता, वैसे ही मुनि का मन किंचित् भी क्षुब्ध नहीं फिर भी वह व्युत्सृष्ट-त्यक्त देह वाला मुनि जीवनपर्यंत अविचल होता। तब शील खंडित करने में असमर्थ वह कुमारी अपना भाव से अनशन की अनुपालना करता है। पराभव देख उस मुनि को शैल-शिखर पर ले जाकर उसके ___कोई पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस- ऊपर शिला का प्रक्षेप करती है, तब भी मुनि निश्चल रहता काय में उसका संहरण करता है, फिर भी वह जीवनपर्यंत । शरीर का व्युत्सर्ग और त्याग कर स्वीकृत अनशन की १६. चाणक्य, चिलातीपत्र आदि की अविचलता आराधना करता है। जंतेण करकतेण व, सत्येण व सावएहि विविधेहिं। कोई लुब्ध व्यक्ति उसे स्नान कराता है, पटवास आदि देहे विद्धंसंते, न य ते झाणाउ फिटुंति॥ गंध द्रव्यों का प्रयोग और पुष्पोपचार करता है. परिचारणा करता पडिणीययाएँ कोई, अग्गि से सव्वतो पदेज्जाहि। है, तब भी वह अनुरक्त न होता हुआ देह का व्युत्सर्ग और पादोवगते संते जह, चाणक्कस्स व करीसे ॥ त्याग कर जीवनपर्यंत अनशन की आराधना करता है। पडिणीययाएँ कोई, चम्मं से खीलएहि विहुणित्ता। कोई देव पूर्वजन्म के स्नेह के कारण उसका संहरण महुघतमक्खियदेहं, पिवीलियाणं तु देज्जाहि॥ कर उसे देवकुरु-उत्तरकुरु अथवा नागभवन में ले जाता है, जह सो चिलायपुत्तो, वोस?-निसट्ठ-चत्तदेहो उ। जहां सर्वशुभ, इष्ट और कांत अनुभाव होते हैं, वहां भी वह सोणियगंधेण पिवीलियाहि जह चालणिव्व कतो॥ यथास्थित रहता है, आसक्त नहीं होता। जध तो कालसयवेसिओ, विमोग्गल्लसेलसिहरम्मि। १५. राजकन्या द्वारा उपसर्ग : अनशनकर्ता अविचल खइतो विउव्विऊणं, देवेण सियालरूवेणं । बत्तीसलक्खणधरो, पाओवगतो य पागडसरीरो। जह सो वंसिपदेसी, वोसट्ठ-निसट्ठ-चत्तदेहो उ। पुरिसव्वेसिणि कण्णा, राइविदिण्णा तु गेण्हेजा। वंसीपत्तेहि विणिग्गतेहि आगासमुक्खित्तो॥ मज्जणगंधं पुप्फोवयारपरियारणं सिया कुज्जा। जधऽवंतीसुकुमालो, वोसट्ठ-निसट्ठ-चत्तदेहो उ। वोसट्टचत्तदेहो, अहाउयं कोवि पालेज्जा॥ धीरो सपेल्लियाए, सिवाय खइओ तिरत्तेणं । "तिमि-मगरेहि व उदधिं, नखोभितोजोमणो मुणिणो॥ (व्यभा ४४१९-४४२५) जाधे पराजिता सा, न समत्था सीलखंडणं काउं। प्रायोपगमन अनशन में स्थित मुनि यन्त्र, क्रकच, नेऊण सेलसिहरं, तो से सिल मुंचए उवरिं॥ शस्त्र, श्वापद आदि के द्वारा अपने शरीर का विध्वंस किए (व्यभा ४४०९, ४४१०, ४४१४, ४४१५) जाने पर भी ध्यान से विचलित नहीं होते। बत्तीस लक्षणों से युक्त शरीर वाला मुनि जब पूर्ण ० चाणक्य-कोई शत्रुभाव जागने पर सब ओर आग जला नग्न होकर प्रायोपगमन में स्थित होता है और तब यदि कोई सकता है। जैसे सुबन्धु नामक मंत्री ने कण्डों के मध्य प्रायोपगमन परुषदेषिणी कन्या राजा की आज्ञा प्राप्त कर उसको ग्रहण में स्थित चाणक्य के चारों ओर अग्नि प्रज्वलित की। करती है, स्नान, गंधद्रव्य, पुष्पोपचार आदि क्रियाएं कर • चिलातीपुत्र-कोई प्रत्यनीक व्यक्ति अनशन प्रतिपन्न मुनि उसके साथ परिचारणा करना चाहती है, फिर भी उस की चमड़ी को लोहमय कीलों से बींधकर या मांस में कीलक अनशनधारी मनि का मन सर्व कलाओं में निपण कामशास्त्र घुसाकर, देह को मधु और घी से प्रक्षित कर देता है। उस की पंडिता उस कुमारी के प्रति किंचित् भी आकृष्ट नहीं प्रक्षित देह पर चींटियां आकर उसे चलनी बना देती है। होता। व्युत्सृष्ट-त्यक्त देह वाला मुनि जीवनपर्यंत विधिवत् चिलातीपुत्र अत्यंत व्युत्सृष्ट-त्यक्त देह होकर ध्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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