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________________ स्वप्न ६४८ आगम विषय कोश-२ तिहा द्रव्यनिद्रा है, दर्शनावरण कर्म का उदय है। स्वप्नदर्शन भावनिद्रा बावत्तरिं सव्वसुमिणा । अरहंतमायरो वा चक्कवट्टिमायरो है, मोहकर्म का उदय है।-भ १६/७६, ७७, ८१ वृ) वा अरहंतंसि वा चक्कहरंसि वा गब्भंवक्कममाणंसि चोद्दस २. स्वप्न : मन का विषय महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुज्झंति, तं जहा-गय वसह।" नोइंदियस्स विसओ, सुमिणं जं सुत्तजागरो पासे। वासुदेवमायरी"सत्तमहासुमिणे""बलदेवमायरो""चत्तारि सुहदुक्खपुव्वरूवं, अरिट्ठमिव सो णरगणाणं॥ महासुमिणे "मंडलियमायरोएगं महासुमिणं पासित्ताणं अक्खी बाहू फुरणादि काइओ वाइओ तु सहसुत्तं। पडिबुझति॥ (दशा ८ परि सू ४७) अह सुमिणदंसणं पुण, माणसिओ होइ दुप्पाओ॥ __ स्वप्नशास्त्र में बहत्तर स्वप्न बताये गए हैं, जिनमें बयालीस (निभा ४२९८, ४२९९) स्वप्न और तीस महास्वप्न हैं। अर्हत् और चक्रवर्ती जब गर्भ में स्वप्न मन/मतिज्ञान का विषय है। वह प्रायः सुप्तजागृत आते हैं, तब उनकी माताएं तीस महास्वप्नों में से चौदह महास्वप्न अवस्था में देखा जाता है और आगामी सुख-दुःख का निमित्त देखकर जागृत होती हैं, जैसे गज, वृषभ आदि । वासुदेव की माता होता है। जैसे मृत्यु के समय मनुष्य के पहले से ही अनिष्टसूचक सात, बलदेव की माता चार और मांडलिक की माता एक महास्वप्न उत्पात उत्पन्न होता है, जो कायिक, वाचिक और मानसिक रूप से देखकर जागृत होता है। सुख-दुःख का निमित्त बनता है। * चौदह महास्वप्न द्र तीर्थंकर ० कायिक-अक्षिस्फुरण, बाहुस्फुरण आदि। * महावीर के दस महास्वप्न द्र श्रीआको १ तीर्थंकर ० वाचिक-अविमृश्यकारी वचन। (० चन्द्रगुप्त के सोलह स्वप्न-चन्द्रगुप्त राजा ने रात्रि के तीसरे ० मानसिक-दुःस्वप्न दर्शन। (स्वप्नदर्शन का अचक्षदर्शन में प्रहर में सुप्तजागृत अवस्था में सोलह स्वप्न देखे और उनका अर्थ अन्तर्भाव होता है।-स्था ८/३८ की वृ) श्रुतकेवली भद्रबाहु से पूछा, जो इस प्रकार है३. स्वप्नभावना अध्ययन का प्रतिपाद्य १. राजा ने प्रथम स्वप्न में कल्पवृक्ष की भग्न शाखा को देखा...."चोद्दसवासुदिसती, इस स्वप्न का अर्थ बताते हुए आचार्य ने कहा-अब कोई राजा महासुमिणभावणज्झयणं॥ एत्थं तिंसइ सुमिणा, बायाला चेव होंति महसुमिणा। दीक्षित नहीं होगा। बावत्तरि सव्वसुमिणा, वणिज्जंते फलं तेसिं॥ २. अकाल में सूर्य अस्त होते हुए देखा। अर्थ-अब भरतक्षेत्र में किसी को केवलज्ञान प्राप्त नहीं होगा। (व्यभा ४६६५, ४६६६) ३. सच्छिद्र चन्द्रमा को देखा। अर्थ-एक धर्म अनेक मार्गों में महास्वप्नभावना अध्ययन में तीस सामान्य स्वप्न और विधान होगा। नाना पकार की सामानारी विभक्त होगा। नाना प्रकार की सामाचारी प्रवर्तित होगी। बयालीस महास्वप्न-कल बहत्तर स्वप्न तथा उनका फल प्रतिपादित ४. अट्टहास-कतहल करते हए. नाचते हए भत-प्रेतों को देखा। है। चौदह वर्ष के संयमपर्याय वाला मुनि इस आगम ग्रंथ का अर्थ-लोग साधु-गुणों से विहीन साधुओं को गुरु मानेंगे। अध्ययन कर सकता है। ५. बारह फण वाला काला सर्प देखा। ___(विशिष्ट फलसूचन की अपेक्षा से बयालीस स्वप्न हैं, अर्थ-बारह वर्ष तक दुर्भिक्ष होगा। अनेक कठिनाइयों के कारण अन्यथा स्वप्न संख्यातीत हैं। तीस महास्वप्न महत्तम फल के श्रुतपरावर्तन के अभाव में बहुत से श्रुतग्रंथ विच्छिन्न हो जाएंगे। संसूचक हैं। तीर्थंकर की माता चौदह महास्वप्न यावत् मांडलिकमाता द्रव्यलोलुप साधु हिंसाधर्म का प्ररूपण और प्रतिमाओं की स्थापना एक महास्वप्न देखती है।-भ १६/८३-९०) करवाएंगे। जो इसका निषेध और विधिमार्ग का प्ररूपण करेगा, * स्वप्ननिमित्त, स्वप्नफल द्र श्रीआको १ अष्टांगनिमित्त । उसकी अवहेलना होगी। ४. किसकी माता? कितने स्वप्न? ६. आते हुए देवविमान को लौटते हुए देखा। अर्थ-जंघाचारण .."सुमिणसत्थे बायालीसं सुमिणा, तीसं महासुमिणा- आदि लब्धिधारी साधु भरत-ऐरवत क्षेत्र में नहीं आएंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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