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________________ आगम विषय कोश- २ वृद्धशीलता : आचारसम्पदा का अंग * गणधारण से पूर्व स्थविर - पृच्छा * स्थविर : निशीथविस्मृति और गणधारण * स्थविर के प्रति वाचक का दायित्व * 'ज्ञान हेतु स्थविर द्वारा कृतिकर्म ३. नित्यवास का निषेध और अपवाद • वृद्धवास नित्यवास नहीं ४. वृद्धवास का अर्थ, कालावधि * वृद्धवास का कालावग्रह ५. वृद्धावास के हेतु * श्रुतग्रहण हेतु वृद्धावास की अनुज्ञा * वृद्धावास योग्य संस्तारक * स्थविर की उपाधि * स्थविरा साध्वी : निश्रा संबंधी विकल्प १. द्र गणिसम्पदा द्र आचार्य छेदसूत्र द्र वाचना द्र अवग्रह तीन स्थविरभूमियां तओ थेरभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- जातिथेरे सुयथेरे परियायथेरे। सट्ठिवासजाए समणे निग्गंथे जातिथेरे, ठाणसमवायधरे समणे निग्गंथे सुयथेरे, वीसवासपरियाए समणे निग्गंथे परियायथेरे ॥ (व्य १०/१९) ....भूमि त्ति य ठाणं ति य, एगट्ठा होंति कालो य ॥ (व्यभा ४५९७) Jain Education International द्र श्रुतज्ञान द्र शय्या द्र उपधि द्र आचार्य तीन स्थविरभूमियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे १. जातिस्थविर - साठ वर्षों की वय वाला श्रमण-निर्ग्रथ । २. श्रुतस्थविर - स्थान और समवाय का धारक श्रमण-निर्ग्रथ । ३. पर्यायस्थविर - बीस वर्ष के दीक्षापर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रथ । स्थविरभूमि, स्थविरस्थान और स्थविरकाल ( स्थविर - अवस्था) – ये एकार्थक हैं। ( स्थविर दस प्रकार के होते हैं - १. ग्रामस्थविर, २. नगरस्थविर, ३. राष्ट्रस्थविर, ४. प्रशास्तास्थविर, ५. कुलस्थविर, ६. गणस्थविर ७. संघस्थविर, ८. जातिस्थविर, ९. श्रुतस्थविर, १०. पर्यायस्थविर । स्थविर का अर्थ है ज्येष्ठ । वह जन्म, श्रुत, अधिकार, गुण आदि अनेक संदर्भों में होता है। ग्राम, नगर और राष्ट्र की व्यवस्था करने वाले बुद्धिमान्, लोकमान्य और सशक्त व्यक्तियों को क्रमशः ६२५ ग्रामस्थविर, नगरस्थविर और राष्ट्रस्थविर कहा जाता है। धर्मोपदेशक प्रशास्तास्थविर कहलाता है। कुल, गण और संघ- ये तीनों शासन की इकाइयां रही हैं। सर्वप्रथम कुल की व्यवस्था थी। उसके पश्चात् गणराज्य और संघराज्य की व्यवस्था भी प्रचलित हुई । इसमें जिस व्यक्ति पर कुल आदि की व्यवस्था तथा उसके विघटनकारी का निग्रह करने का दायत्वि होता है, वह स्थविर कहलाता है । यह लौकिक व्यवस्था पक्ष है। लोकोत्तर व्यवस्था के अनुसार एक आचार्य के शिष्यों को कुल, तीन आचार्य के शिष्यों को गण और अनेक आचार्यों के शिष्यों को संघ कहा जाता था। इनमें जिस व्यक्ति पर शिष्यों में अनुत्पन्न श्रद्धा उत्पन्न करने और उनकी श्रद्धा विचलित होने पर उन्हें पुनः धर्म में स्थिर करने का दायित्व होता है, वह स्थविर कहलाता है । -स्था १० / १३६ टि) स्थविर ० स्थविर कौन ? तेवरिसो होति नवो, आसोलसगं तु डहरगं बेंति । तरुणो चत्ता सत्तरूण मज्झिमो थेरओ सेसो ॥ प्रव्रज्यापर्यायेण त्रिवर्षो भवति नवः । जन्मपर्यायेण चत्वारि वर्षाणि आरभ्य यावत् परिपूर्णानि पञ्चदशवर्षाणि षोडशाद् वर्षादर्वाक् वा तड्डहरकं यावत्सप्ततिरेकेन वर्षेणोनां तावन्मध्यमः । ततः परं सप्ततेरारभ्य स्थविरः शेषः । (व्यभा १५७७ वृ) o नवदीक्षित - तीन वर्ष के प्रव्रज्यापर्याय वाला। • बालक - जन्म की अपेक्षा चार वर्ष से परिपूर्ण पन्द्रह वर्ष की अवस्था अथवा सोलह वर्ष के पूर्व की अवस्था वाला । ० तरुण - सोलह से चालीस वर्ष पर्यन्त । ० मध्यम (प्रौढ़) इकचालीस से उनहत्तर वर्ष पर्यन्त । ० स्थविर - सत्तर और उससे अधिक वर्षों की वय वाला । For Private & Personal Use Only * जघन्य - उत्कृष्ट वृद्ध २. विहरण योग्य वृद्ध और उसका वैयावृत्त्य जो गाउयं समत्थो, सूरादारब्भ भिक्खवेला उ । विहरउ एसो सपरक्कमो न विहरे उ तेण परं ।। वीसामण उवगरणे, भत्ते पाणेऽवलंबणे चेव । गाउय दिवढदोसुं, अणुकंपे सा तिसुं होति ॥ द्र दीक्षा www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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