SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 664
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम विषय कोश-२ ६१७ सूत्र सूत्र-जो अर्थ का सूचक है, जिसमें अनेक अर्थों का संघात है। अर्हत्-वाणी, आगम। १. सूत्र के निर्वचन एवं नाम २. सूत्र का लक्षण, स्वरूप, भाषा * सूत्र देवता-अधिष्ठित क्यों? द्र आगम * सूत्र-अर्थमण्डली व्यवस्था द्र वाचना * सूत्र (आगम) वाचना : संयमपर्याय द्र श्रुतज्ञान * सूत्र के क्रमश: अध्ययन के गुण द्र उत्सारकल्प * छेदसूत्रनि!हण का प्रयोजन द्र छेदसूत्र ३. सूत्र और अर्थ में बलवान् कौन? ४. सूत्र-अर्थपद : प्रासाद का रूपक ५. सूत्र : अर्थ का अनुगामी ___ * बारह-बारह वर्ष सूत्र-अर्थ-ग्रहण द्र श्रुतज्ञान ६. आचार्य ही अर्थउत्प्रेक्षक * अर्थधर मुनि प्रमाण... द्र आगम * उपाध्याय द्वारा सूत्रवाचना * सूत्रस्वाध्याय का काल द्र स्वाध्याय ७. कल्पिक के बारह प्रकार : सूत्रकल्पिक""" ८. सूत्र के तीन प्रकार ९. सूत्र के चार प्रकार १०. सूत्र के अनेक भेद ११. सूत्र के छह प्रकार : उत्सर्ग सूत्र आदि १२. उत्सर्ग-अपवाद का विषयविभाग १३. विधान और निषेध की संगति १४. उत्सर्ग-अपवाद : निर्जरा के हेतु १५. उत्सर्ग और अपवाद तुल्य ० उत्सर्ग और अपवाद : बलवान् कौन? १६. अपवादसेवन का नियामक तत्त्व द्र संघ सूरमणी जलकंतो, व अत्थमेवं तु पसवई सुत्तं। वणियसुयंध कयवरे, तदणुसरंतो रयं एवं॥ .सुष्ठूक्तं सूक्तम्। (बृभा ३११-३१४ वृ) सूत्र शब्द के चार निर्वचन हैं-१. जो सूचित करता है, २. जो स्यूत (संयुक्त) करता है, ३. जो अर्थ का प्रसव करता है, ४. जो अर्थ का अनुसरण करता है, वह सूत्र है। सूत्र के अनेक नाम हैं० सुप्त-सूत्र प्रसुप्त मनुष्य के समान है। जैसे प्रसुप्त मनुष्य अपनी ज्ञात कलाओं को भी प्रबोधित हुए बिना नहीं जानता, वैसे ही सूत्र में जब तक अर्थ का प्रबोध संक्रान्त नहीं हो जाता, तब तक उससे विशेष कुछ नहीं जाना जा सकता। ० श्लेष--सूत्र श्लेष (तंतु) के सदृश होता है। एक तंतु से अनेक वस्तुएं एकत्र संहत होती हैं, बांधी जाती हैं, वैसे ही एक सूत्र से अनेक अर्थ संघातित होते हैं। ० सूचन-सूत्र में पिरोई हुई सूई खो जाती है तो वह पुनः प्राप्त हो जाती है, वैसे ही सूत्र से अर्थ सूचित/ज्ञात होता है। ० सीवन-धागा कंचुक आदि के वस्त्रखंडों को जोड़ता है, वैसे ही सूत्र अर्थपदों को जोड़ता है। ० स्रवण-सूर्यकान्तमणि अग्नि में, जलकान्तमणि जल में दीप्ति का स्रवण करती है, वैसे ही सूत्र अर्थ का प्रस्रवण करता है। ० अनुसरण-इसके दो प्रकार हैं -द्रव्यतः और भावतः । द्रव्यतः अनुसरण में अंधपुत्र-कचवर का दृष्टांत एक वणिक् का पुत्र अंधा था। वणिक् ने सोचा-मेरा यह पुत्र बिना कुछ काम किए भोजन करेगा तो इसको बहुत तिरस्कृत होना पड़ेगा, इसलिए मुझे कुछ उपाय करना चाहिए। उसने जमीन में दो खंभे गाड़कर एक रज्जु बांध दी। अब वह पुत्र घर का सारा कचरा उस रज्जु का अनुसरण करता हुआ बाहर जाकर फेंक आता। उसी प्रकार मुनि भी रज्जुस्थानीय सूत्र के सहारे कचवरस्थानीय कर्म का अपनयन करते हैं। ० सूक्त-जो श्रेष्ठ कथन (सुभाषित) है, वह सूक्त्/सूत्र है। २. सूत्र का लक्षण, स्वरूप, भाषा अप्पग्गंथ महत्थं, बत्तीसादोसविरहियं जं च। लक्खणजुत्तं सुत्तं, अट्ठहि य गुणेहिं उववेयं ॥ (बृभा २७७) १. सूत्र के निर्वचन एवं नाम नियाद तम्म उ सयद गिलट नदेव मवट नो अणुसरति त्ति य भेया, तस्स उ नामा इमा हति॥ पासुत्तसमं सुत्तं, अत्थेणाबोहियं न तं जाणे। लेससरिसेण तेणं, अत्था संघाइया बहवे॥ सूइज्जइ सुत्तेणं, सूई नट्ठा वि तह सुएणऽत्थो। सिव्वइ अत्थपयाणि व, जह सुत्तं कंचुगाईणि॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy