SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनशन आगम विषय कोश-२ ही लड़ेंगे। शेष निरपराध जनता को मारने से क्या लाभ? प्रद्योत ने उद्रायण की बात स्वीकार कर ली। उद्रायण ने प्रद्योत को हरा दिया और अपनी सेना के साथ उसे बंदी बना कर ले गया। उसके ललाट पर यह अंकित किया-'यह दास है, दासीपति है. क्षेत्रार्थी (क्षत्रार्थी) है। हमारे घर में बंदी रूप में रह रहा है। जो कोई राजा की आज्ञा का भंग कर उसे कुपित करता है, वह हंतव्य और बंधन योग्य है।' प्रतिदिन उद्रायण के आहार के पश्चात् प्रद्योत को आहार करवाया जाता था। एक बार पर्युषण के दिन उद्रायण ने उपवास किया। उसने रसोइए को भेजकर प्रद्योत को पुछवाया कि आज तुम्हारे लिए क्या बनवाया जाए? प्रद्योत से जब उसकी इच्छा पूछी गई तो उसका मन आशंकित हो गया। उसने सोचा-आज तक मुझसे यह प्रश्न नहीं पूछा गया, आज ही यह बात क्यों पूछी गयी? इसी से पछं कि वास्तविकता क्या है ? पूछने पर रसोइए ने उत्तर दिया कि राजा श्रमणोपासक हैं अत: उन्होंने पर्युषण पर्व की आराधना के लिए उपवास किया है, इसलिए आपकी इच्छा जानने के लिए मुझे भेजा है। यह सुनते ही प्रद्योत को स्वयं पर बहुत ग्लानि हुई और वह अपने आपको धिक्कारने लगा कि आज मुझे पर्युषण का दिन भी याद नहीं रहा। फिर उससे कहा कि मैं भी श्रमणोपासक हूं अत: राजा से कहना कि मैं भी आज उपवास करूंगा। रसोइए ने जाकर सारी बात उद्रायण के सामने प्रकट की। आत्मचिंतन करते हुए उद्रायण ने सोचा-'मैंने अपने साधर्मिक को बंदी बना रखा है अतः आज मैं उसे मुक्त किए बिना शुद्ध सामायिक नहीं कर सकता और इस रूप में पर्युषणा की सम्यग् आराधना भी नहीं हो सकती।' राजा उसी क्षण प्रद्योत के पास गया और उसके सारे बंधन खोलकर क्षमायाचना की। अनशन-यावज्जीवन चतुर्विध अथवा त्रिविध आहार का परित्याग। १. अनशन से पूर्व संलेखना २. आहारकांक्षा की छेदनविधि ३. अनशन दुराराध्यं : राधावेध दृष्टांत ४. अनशन (पंडितमरण) के प्रकार ० अभ्युद्यतमरण : भक्तपरिज्ञा आदि ५. आनुपूर्वी-अनानुपूर्वी "अनशन ६. आनुपूर्वी अनशन का विधि-क्रम ७. भक्तपरिज्ञा : सपराक्रम-अपराक्रम ० श्रमणोपासक द्वारा अनशन | ८. इंगिनी अनशन : तुला, संहनन, श्रुत | ९. भक्तपरिज्ञा और इंगिनीमरण में अंतर १०. प्रायोपगमन अनशन : पादप-मेरु दृष्टांत ११. प्रायोपगमन : निहारि-अनिहारि पायोगमन |१२. प्रायोपगमन : संहनन और विच्छेद १३. प्रायोपगमन : पांच तुला, अन्यत्व भावना |१४. उपसर्गों में अविचलन : देवता द्वारा संहरण |१५. राजकन्या का उपसर्ग : अनशनी अविचल |१६. चाणक्य, चिलातीपुत्र आदि की अविचलता |१७. द्विविध आराधना : अंतक्रिया या देवोपपत्ति |१८. अनशन और कर्मक्षय ० अनशनत्रयी : उत्तरोत्तर महानिर्जरा |१९. अनशन के लिए गीतार्थ संविग्न की खोज |२०. अनशन के लिए अप्रशस्त-प्रशस्त स्थान ० दो वसति क्यों? वृषभ संस्थान ०संस्तारक २१. अनशनकर्ता का स्वावलम्बन __ * अनशनकाल में आलोचना द्र आलोचना २२. भक्तप्रत्याख्यानी की वैयावृत्त्यविधि |२३. आत्मनिर्यापक-परनिर्यापक | २४. अनशन में कुशल निर्यापक की भूमिका २५. निर्यापक : अर्हता, कार्य, संख्या | २६. निर्यापक के महानिर्जरा २७. अनशनधारी की समाधि का उपाय आपकी अनंतकाय-साधारण वनस्पति. एक शरीर में अनन्त जीव वाली वनस्पति। द्र जीवनिकाय अनवस्थाप्य-वह प्रायश्चित्त, जिसमें तपस्यापूर्वक पुनः व्रतारोपण किया जाता है। द्र पारांचित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy