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________________ साधर्मिक जो जीव कृष्णपक्ष से शुक्लपक्ष में आ जाता है, जो जीव एक बार सम्यक्त्व का स्पर्श कर लेता है, जो जीव संसार को परीत कर लेता है - इन तीनों का उत्कृष्ट संसारावस्थान-काल एक समान होता है । - जीवा ९/७५ भवसिद्धिक जीव सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि दोनों प्रकार का हो सकता है। सम्यग्दृष्टि जीव परीतसंसारी और अनन्तसंसारी दोनों प्रकार का हो सकता है। परीतसंसारी जीव सुलभबोधि और दुर्लभबोधि दोनों प्रकार का हो सकता है। सुलभबोधि जीव आराधक और विराधक दोनों प्रकार का हो सकता है। -भ ३ /७२ भाष्य कृष्णपाक्षिक अक्रियावादी होते हैं, अज्ञानवादी और विनयवादी भी होते हैं। शुक्लपाक्षिक क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी होते हैं । सम्यग्दृष्टि क्रियावादी होते हैं, सम्यग् - मिथ्यादृष्टि अज्ञानवादी और विनयवादी होते हैं तथा मिथ्यादृष्टि अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी होते हैं। क्रियावादी मनुष्यायु और वैमानिकदेवायु का बंध करते हैं। अक्रियावादी किसी भी आयु का बंध कर सकते हैं। अक्रियावादी भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक- दोनों प्रकार के हो सकते हैं। क्रियावादी, शुक्लपक्षी और सम्यग् मिथ्यादृष्टि भवसिद्धिक होते हैं । - भ ३० / ५, ६, १०-१२, ३१, ४२) साधर्मिक - वेश और मान्यता में समानधर्मा । साधर्मिक के प्रकार साधं मिया य तिविधा, 11 ......साहम्मिया स्वप्रवचनं प्रतिपन्नेत्यर्थः ते तिविहा लिंगसाहम्मि पवयणसाहम्मि चउभंगो चउत्थो भंगो असाहम्मिओ..... अहवा तिविहा साहम्मी - साहू, पासत्थादि, सावगा य | अहवा समणा समणी सावगा य । (निभा ३३६ चू) समानधर्म वाले स्वप्रवचनप्रतिपन्न (जिनशासन - सेवी) साधर्मिक कहलाते हैं । साधर्मिक के तीन प्रकार हैं १. लिंग साधर्मिक, २. प्रवचन साधर्मिक ३. लिंग-प्रवचन Jain Education International आगम विषय कोश - २ साधर्मिक। अथवा साधर्मिक के तीन प्रकार हैं - साधु, पार्श्वस्थ आदि और श्रावक । अथवा श्रमण, श्रमणी और श्रावक । साधर्मिक के नाना विकल्प लिंगेण उ साहम्मी, नोपवयणतो य निण्हगा सव्वे । पवयणसाधम्मी पुण, न लिंग दस होंति ससिहागा ॥ पत्तेयबुद्धनिण्हव, उवासए केवली य आसज्ज । खइयादिए य भावे, पडुच्च भंगे तु जोएज्जा ॥ ( व्यभा ९९१, ९९४) ६०२ o लिंग से साधर्मिक, प्रवचन से नहीं। जैसे- निह्नव । • प्रवचन से साधर्मिक, लिंग से नहीं। यथा- दशम उपासक प्रतिमाधारी सशिखाक ( अमुण्डितशिरस्क) श्रावक । • प्रवचन और लिंग से साधर्मिक । यथा - साधु । • दर्शन से साधर्मिक, प्रवचन से नहीं । यथा - तीर्थंकर और प्रत्येकबुद्ध । ० दर्शन से और प्रवचन से साधर्मिक-समानदर्शनी संघवर्ती साधु । • ज्ञान से साधर्मिक, प्रवचन से नहीं - तीर्थंकर या प्रत्येकबुद्ध । • प्रवचन से साधर्मिक, चारित्र से नहीं - श्रावक । ० चारित्र से साधर्मिक, प्रवचन से नहीं - तीर्थंकर या प्रत्येकबुद्ध । ० प्रवचन से और चारित्र से साधर्मिक - साधु । • अभिग्रह से साधर्मिक, प्रवचन से नहीं - निह्नव, तीर्थंकर, प्रत्येकबुद्ध । • भावना से साधर्मिक, प्रवचन से नहीं - समान भावनायुत तीर्थंकर, प्रत्येकबुद्ध, निह्नव। o लिंग से साधर्मिक, दर्शन से नहीं - निह्नव । o दर्शन से साधर्मिक, लिंग से नहीं - प्रत्येकबुद्ध, तीर्थंकर । • लिंग से साधर्मिक, ज्ञान से नहीं - निह्नव, विभिन्नज्ञानी साधु । ० चारित्र से साधर्मिक, ज्ञान से नहीं यथा - समानचारित्री केवली, समानचारित्री छद्मस्थ। उपर्युक्त तथा अन्य भंग भी प्रत्येकबुद्ध, निह्नव, श्रावक, केवली और क्षायिक आदि भावों की अपेक्षा से यथास्थान वक्तव्य हैं। * साधर्मिक के बारह प्रकार -समनुज्ञ 'साधर्मिक * सांभोजिक For Private & Personal Use Only द्र श्रीआको १ साधर्मिक द्र साम्भोजिक www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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