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________________ सम्यक्त्व ६०० आगम विषय कोश-२ किया जा रहा है। जमालि के मन में विचिकित्सा उत्पन्न हुई- मोक्ष का उपाय नहीं है। (आत्मा है, वह नित्य है, कर्ता है, भगवान महावीर क्रियमाण को कृत कहते हैं--यह मिथ्या है। यह भोक्ता है, मोक्ष है, मोक्ष का उपाय है-ये छह सम्यगदष्टि के प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है कि बिछौना क्रियमाण है, पर कृत नहीं है। स्थान हैं।-सन्मति ३/५५) इस प्रकार वेदनाविह्वल जमालि मिथ्यात्वमोहनीय के उदय से निह्नव असंज्ञी और अज्ञानी अनाभिग्रहिक मिथ्यात्वी होते हैं। कुछ बन गया।-श्रीआको १ निह्नव संज्ञी भी अनाभिग्रहिक मिथ्यात्वी होते हैं। ० गोष्ठामाहिल-'मिथ्यात्व आदि के द्वारा गृहीत कर्म जीव के ९. सम्यक्त्वदीक्षा और वाचना के अयोग्य साथ एकीभूत हो जाते हैं'-गुरु के द्वारा इसकी व्याख्या सुनकर तओ दुसण्णप्पा"दुढे मूढे वुग्गाहिए। वह विप्रतिपत्ति को प्राप्त हुआ। उसने कहा-कर्म का जीव के दुःखेन-कृच्छ्रेण संज्ञाप्यन्ते -प्रतिबोध्यन्त इति साथ तादात्म्य संबंध होने पर जीव की प्रदेशराशि की तरह कर्मराशि को जीव से अलग नहीं किया जा सकता। इसलिए दुःसंज्ञाप्याः प्रज्ञप्ताः । तद्यथा-'दुष्टः' तत्त्वं प्रज्ञापकं वा प्रति यह कथन उचित है कि कर्म जीव का स्पर्श करते हैं. उससे बद्ध द्वेषवान् , स चाप्रज्ञापनीयः, द्वेषेणोपदेशाप्रतिपत्तेः।एवं मूढः' गुण-दोषानभिज्ञः । व्युद्ग्राहितो नाम' कुप्रज्ञापक-दृढीकृतनहीं होते। 'साधु के यावज्जीवन तीन करण तीन योग से सावधयोग विपरीतावबोधः। (क ४/८७) के प्रत्याख्यान होते हैं'- नौवें प्रत्याख्यान पूर्व की इस व्याख्या को सम्मत्ते वि अजोग्गा, किमु दिक्खण-वायणासु दुवादी। सुनकर गोष्ठामाहिल विप्रतिपत्ति को प्राप्त हुआ। उसने कहा- ....... मोह परिस्समो होज्जा॥ जिस प्रत्याख्यान में अवधि होती है, वह प्रत्याख्यान आशंसा दोष (बृभा ५२११) से दूषित होता है। श्रीआको १ निह्नव दुःसंज्ञाप्य-कठिनाई से प्रतिबोध्य के तीन प्रकार हैं० मिथ्यात्व के तीन हेतु हैं-अभिनिवेश आदि। इनके उदाहरण १. दुष्ट-तत्त्व या तत्त्वप्रज्ञापक के प्रति द्वेष रखने वाला। वह द्वेष हैं-गोष्ठामाहिल आदि।-श्रीआको १ गुणस्थान) के कारण उपदेश को स्वीकार नहीं करता है,अतः अप्रज्ञापनीय है। ८. मिथ्यादर्शन के प्रकार । २. मूढ-गुणों और दोषों से अनभिज्ञ । मिच्छादसणं समासतो दुविहं-अभिग्गहितं अण- ३. व्युद्ग्राहित–दुराग्रही, कुप्रज्ञापक द्वारा जिसका विपरीत बोध भिग्गहितं च। सदढ हो जाता है। ये त्रिविध व्यक्ति सम्यक्त्व-ग्रहण के भी योग्य संक्षेप में सिध्यान दोपकार का आभिडिक नहीं होते तो दीक्षा और वाचना के योग्य कैसे होंगे? इनको प्रज्ञप्ति अभिनिवेशात्मक मिथ्यात्व-सही तत्त्व को समझ लेने के बाद भी देने वाले प्रज्ञापक का श्रम निष्फल होता है। पूर्वाग्रह से ग्रस्त होना। २. अनाभिग्रहिक-अज्ञान आदि के १०. अक्रियावादी-कृष्णपक्षी कारण गलत तत्त्व को पकड कर रखना। अकिरियावादी भवितो अभविओ वा नियमा ० आभिग्रहिक-अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व किण्हपक्खिओ। (दशा ६/३ की चू) अभिग्गहितं-णत्थि अप्या, ण णिच्चो, ण कुव्वति, अक्रियावादी नियमतः कृष्णपक्षी (अपरीत संसारी) होता कतं न वेदेति. ण णिव्वाणं, णस्थि य मोक्खो -वातो। छ है चाहे वह भव्य हो या अभव्य। मिच्छत्तस्स ठाणाई। अणभिग्गहितं असन्नीणं सन्नीणंपि ....."अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी केसिंचि। 'अण्णाणीओ वा। (दशा ६/३ की चू) नाहियपण्णे नाहियदिट्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी, आभिग्रहिक मिथ्यात्व के छह स्थान हैं-आत्मा नहीं है, नसंति-परलोगवादी, णत्थि इहलोए णत्थि परलोए णत्थि माता वह नित्य नहीं है, कर्ता नहीं है, भोक्ता नहीं है, मोक्ष नहीं है, णत्थि पिता णत्थि अरहंता णत्थि चक्कवट्टी णत्थि बलदेवा (दशाह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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