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________________ शरीर ५६४ आगम विषय कोश-२ मनुष्यों के दो प्रकार के शुभ लक्षण होते हैं लक्षण के तीन प्रकार हैं० बाह्य लक्षण-गंभीरस्वर, प्रशस्त वर्ण आदि। १. मानयुक्त-जलद्रोणिक पुरुष। (द्र श्रीआको १ अंगुल) ० आभ्यन्तर लक्षण-स्वभाव, सत्त्व (अदीनता) आदि। २. उन्मानयक्त-सारपदगलों से निर्मित अर्धभार तोल वाला परुष . सामान्य मनुष्य के बत्तीस, बलदेव-वासुदेव के एक सौ (अर्धभार उन्मान प्रमाण है।- श्रीआको १ प्रमाण) आठ और चक्रवर्ती तथा तीर्थंकर के एक हजार आठ लक्षण होते ३. प्रमाणयुक्त-अपने अंगुल से बारह अंगुल का मुख होता है। हैं-जो शरीर के हाथ-पैर आदि अवयवों पर स्पष्ट रूप से दिखाई नौ मुख जितना (१०८ अंगुल वाला) पुरुष । देते हैं. उनका यह परिमाण है। आभ्यन्तर लक्षणों के साथ उनकी (CHER Aah • eas १०८ अंगुल, मध्यम पुरुष की संख्या और अधिक है। ये लक्षण पूर्वजन्मकृत शुभ शरीर अंगोपांग १०४ अंगुल, अधम पुरुष की ९६ अंगुल।-अनु ३९० नामकर्म के उदय से होते हैं। पदतल से शीर्षपर्यंत प्रामाणिक नाप * औदारिक आदि शरीर द्र श्रीआको १ शरीर पाणि-एड़ी से अंगुलि तक लम्बाई १४ अंगुल २. देव आदि के शरीर में लक्षण ० पदतल के अग्रभाग की चौड़ाई ६ अंगुल भवपच्चइया लीणा, तु लक्खणा होंति देवदेहेस। ० पैर के अंगूठे की लंबाई २ अंगुल भवधारिणिएसु भवे, विउव्वितेसुं तु ते वत्ता॥ ० तर्जनी अंगुलि २ अंगुल ओसण्णमलक्खणसंजुयाओ बोंदीओ होंति निरएस। ० मध्यमा अंगुली से अंगूठे की लम्बाई १/१६ भाग कम १/२ भाग कम नामोदयपच्चइया, तिरिएसु य होंति तिविहा उ॥ ० अनामिका मध्यमा से (निभा ४२९६, ४२९७) ___० कनिष्ठिका अनामिका से १/६ भाग कम ० टखनों से घुटनों तक (जंघा) की लम्बाई १८ अंगुल देवों के भवधारणीय शरीर में भवप्रत्ययिक लक्षण अव्यक्त ० घुटनों से ऊपरी भाग की लम्बाई २१ अंगुल होते हैं, उत्तरवैक्रिय शरीर में वे व्यक्त होते हैं। ० कटिभाग की लम्बाई १८ अंगुल नैरयिकों का शरीर एकांततः अलक्षणयुक्त होता है। ० नाभि से नाभि तक कटिभाग की परिधि ४६ अंगुल तिर्यञ्चों में तीनों प्रकार के शरीर होते हैं-लक्षणयुक्त, अलक्षण ० पुरुष के कटिभाग की अर्द्ध परिधि १८ अंगुल युक्त और मिश्र-ये सब नामकर्म के उदय से होते हैं। ० स्त्री के कटिभाग की अर्द्ध परिधि २४ अंगुल ३. लक्षण और व्यंजन में अंतर ० लिङ्गस्थान से नाभि तक की लम्बाई १२ अंगुल माणुम्माणपमाणादिलक्खणं वंजणं तु मसगादी। . नाभि से हृदय तक की लम्बाई १२ अंगुल सहजं च लक्खणं, वंजणं तु पच्छा समुप्पण्णं ॥ ० हृदय से ग्रीवा तक की लम्बाई १२ अंगुल (निभा ४२९४) ० पष्ठभाग में अस्थिपुच्छ से ग्रीवा तक की लम्बाई ५६ अंगल लक्षण-मान-उन्मान-प्रमाण आदि जो सहजात हैं। ० पुरुष के वक्षः स्थल की अर्द्ध परिधि २४ अंगुल ० व्यंजन-तिल, मस आदि जो पश्चात् समुत्पन्न हैं। ० स्त्री के वक्षः स्थल की अर्द्ध परिधि १८ अंगुल (जिसके हाथ-पैरों में वज्र, शंख आदि चिह्न होते हैं, वह मणिबंध से मध्यमा अंगुली तक की लम्बाई १२ अंगुल श्रीसम्पन्न होता है। श्रीआको १ अष्टांगनिमित्त) ० मणिबंध से कोहनी पर्यंत हाथ की लम्बाई १६ अंगुल ४. मान-उन्मान-प्रमाण पुरुष ० कंधे से कोहनी पर्यंत भुजा की लम्बाई १८ अंगुल जलदोणमद्धभारं, समुहाइ समुस्सितो व जा णव तु। . गर्दन की लम्बाई ४ अंगुल माणुम्माणपमाणं, तिविहं खलु लक्खणं एयं॥ ० गर्दन की परिधि २४ अंगुल (निभा ४२९५) ० ठुड्डी से ललाट की लम्बाई १२ अंगुल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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