SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 608
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम विषय कोश-२ ५६१ शय्यातर अथवा यक्ष वृक्ष के स्वामी को स्वप्न में अवतीर्ण होकर कहे-मेरे जब वहां दैवसिक प्रतिक्रमण कर लिया जाता है। उद्देश्य से तुम बार-बार भोज करोगे तो मैं तुम्हें कष्ट नहीं दूंगा।' उस ० रात्रि का प्रथम प्रहर बीत जाने पर। भोज का भोजन शय्यातरपिंड है, अत: वह अग्राह्य है। ० रात्रि का दूसरा प्रहर बीत जाने पर ७. शय्यातर-अशय्यातर कब? अनादेश-आदेश ० रात्रि का तीसरा प्रहर बीत जाने पर। अणुणविय उग्गहंगण, पायोग्गाणुण्ण अतिगते ठविते। ० रात्रि का चौथा प्रहर बीत जाने पर। ये सब मतान्तर अनादेश हैं। क्योंकि अनुज्ञापित क्षेत्र में सज्झाय भिक्ख भुत्ते, णिक्खित्ताऽऽवासए एक्को। प्रविष्ट होने पर भी किसी बाधा के उपस्थित होने पर यदि मुनि पढमे बितिए ततिए, चउत्थ जामे व होज्ज वाघातो। निव्वाघाए भयणा, सो वा इतरो व उभयं वा ।। दूसरी बस्ती में चले जाते हैं तो वह किसका शय्यातर होगा? जइ जग्गंति सुविहिया, करेंति आवासगं च अण्णत्थ। __ आदेश यह है कि निर्व्याघात शय्या में रातभर रहने पर सेज्जातरो ण होती, सुत्ते व कए व सो होती॥ शय्यातर की भजना है-उस शय्या का स्वामी शय्यातर हो सकता अन्नत्थ व सेऊणं, आवासग चरममण्णहिं तु करे। है, अन्य भी हो सकता है या दोनों शय्यातर हो सकते हैं । यथादोण्णि वि तरा भवंती, सत्थादिसु इधरधा भयणा ॥ जो सुविहित मुनि रातभर जागते हैं और प्राभातिक आवश्यकअसइ वसहीय वीसुं, वसमाणाणं तरा तु भयितव्वा। प्रतिक्रमण अन्यत्र जाकर करते हैं तो मूल उपाश्रय का स्वामी शय्यातर तत्थऽण्णत्थ व वासे, छत्तच्छायं तु वन्जेति॥ नहा हा नहीं होता। किंतु रात्रि में वहां सोते हैं अथवा प्राभातिक प्रतिक्रमण ""एते सर्वेऽप्यनादेशाः । अनुज्ञापितावग्रहादिष वहां करते हैं तो उस उपाश्रय का स्वामी शय्यातर होता है। निक्षिप्तान्तेषु दिवसत एव व्याघातो भवेत्, व्याघाताच्चान्यां जो मुनि किसी एक स्थान में सोता है और दूसरे स्थान में वसतिमन्यद्वा क्षेत्रं गताः ततः कस्यासौ शय्यातरो भवत?। जाकर प्राभातिक प्रतिक्रमण करता है तो दोनों स्थानों के गृहस्वामी आदेशः पुनरयम् तत्रैव रात्रावृषितास्ततो भजना कर्तव्या। शय्यातर होते हैं। यह स्थिति सार्थ आदि के साथ गमनागमन के लाटाचार्याभिप्रायः"छत्रः-आचार्यस्तस्यच्छायां वर्जयन्ति, समय होती है। अन्यथा भजना है। यथामौलशय्यातरगृहमित्यर्थः। (बृभा ३५२७-३५३१ वृ) बस्ती संकीर्ण होने पर कुछ साधु दूसरे घर में जाकर सोते हैं और दूसरे दिन सूत्रपौरुषी वहीं सम्पन्न कर मूल बस्ती में आते शय्यातर कब होता है? इस प्रश्न के उत्तर में पन्द्रह मत हैं तो दोनों गृहस्वामी शय्यातर हैं। लाटाचार्य के मतानुसार साधु मतान्तरों का उल्लेख प्राप्त है मूल बस्ती में रहें या अन्यत्र रहें, उससे प्रयोजन नहीं है। वे ० शय्यातर तब होता है, जब शय्या की अनुज्ञा प्राप्त हो। छत्रछाया-आचार्य के शय्यातरगह का वर्जन करते हैं अर्थात जहां • जब मुनि शय्यातर के अवग्रह में प्रविष्ट हो जाते हैं। आचार्य रहते हैं, उस स्थान का स्वामी शय्यातर है। • जब मुनि गृहस्वामी के आंगन में प्रविष्ट हो जाते हैं। ."वुत्थे वज्जेज्जऽहोरत्तं ॥ (बृभा ३५३६) • तृण आदि प्रायोग्य वस्तु की आज्ञा प्राप्त कर लेते हैं। • जब मुनि वसति में प्रविष्ट हो जाते हैं। मुनि जिस वसति में रहते हैं और वहां से जिस समय जब उपकरण आदि स्थापित कर दिए जाते हैं अथवा निष्क्रमण करते हैं, उसके पश्चात् अहोरात्र पर्यन्त उस घर से दानश्राद्ध आदि कुलों की स्थापना कर दी जाती है। अशन आदि ग्रहण नहीं किया जा सकता। अहोरात्र के पश्चात् • जब वहां स्वाध्याय प्रारम्भ कर दिया जाता है। उस घर का स्वामी अशय्यातर हो जाता है। जब गरु की आज्ञा से भिक्षा के लिए मनि चले जाते हैं। ८. शय्यातरपिंड के प्रकार .. जब मुनि वहां आहार करना प्रारंभ कर देते हैं। दुविह चउव्विह छव्विह, अट्ठविहो होति बारसविहो य। • जब पात्र आदि वहां रख दिए जाते हैं। सेज्जातरस्स पिंडो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy