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________________ आगम विषय कोश-२ ५५९ शय्यातर शय्यातर-शय्यादाता, वसति या उपाश्रय देने वाला। गोवाइऊण वसहि, तत्थ वि ते यावि रक्खिउं तरइ। | १.शय्यातर कौन? तद्दाणेण भवोघं, च तरति सेज्जातरो तम्हा।। २.शय्यातर के पर्यायवाची नाम जम्हा धारइ सिजं, पडमाणिं छज्ज-लेपमाईहिं। ३. शय्यातर का नाम-गोत्र..... जं वा तीए धरेती, नरगा आयं धरो तम्हा॥ ४. अनेक शय्यातरों में एक का निर्धारण (बृभा ३५२१-३५२४) ५. अवग्रह की अनुज्ञा किससे? शय्यातर के नाना व्यंजन वाले पांच एकार्थक नाम हैं-- * शय्या अवग्रह की सात प्रतिमा १. सागारिक-अगार (गृह) के साथ जिसका योग होता है। घर * शय्यातर का क्षेत्रावग्रह द्र अवग्रह अगम-वृक्ष-काष्ठ से निर्मित होने के कारण अगार कहलाता है। ६. पथ में भी शय्यासर, यक्ष शय्यातर २. शय्याकर-जो शय्या-प्रतिश्रय का निर्माण करता है। * गोष्ठीपुरुष और शय्यातर... द्र गोष्ठी ७. शय्यातर-अशय्यातर कब? अनादेश-आदेश ३. शय्यादाता-जो शय्या-वसति देता है। ८.शय्यातरपिंड के प्रकार ४. शय्यातर-जो वसति का संरक्षण करने में समर्थ है, अथवा वहां ० तृण आदि शय्यातरपिंड नहीं स्थित साधुओं की आपदाओं से रक्षा करने में समर्थ है। अथवा * शय्यासंस्तारक प्रतिमा द्र शय्या शय्या के दान से संसार-प्रवाह को तर जाता है। ९. शय्यातरपिंड और अतिथि, भागीदार आदि ५. शय्याधर-जो जीर्ण-शीर्ण वसति का छादन, लेपन आदि k०.शय्यातरपिंड कहीं भी अनुज्ञात क्यों नहीं? करता है। अथवा शय्यादान द्वारा स्वयं को नरक से बचा लेता है। | * शय्यातरपिंड अवस्थितकल्प द्र कल्पस्थिति (स्थानदान संयम साधना का महान् उपकारी तत्त्व है। इस २१. शय्यातर द्वारा पृच्छा : कब? कितने? संदर्भ में एक प्राचीन श्लोक है१२. शय्यातर की निश्रा-अनिश्रा धृतिस्तेन दत्ता मतिस्तेन दत्ता, गतिस्तेन दत्ता सुखं तेन दत्तम्। २३. साध्वी के शय्यातर की अर्हता गुणश्रीसमालिंगितेभ्यो वरेभ्यो, मुनिभ्यो मुदा येन दत्तो निवासः ।। १.शय्यातर कौन? जिसने गुणश्रीसम्पन्न मुनिवरों को प्रसन्नता से निवास स्थान सेन्जायरो पभू वा, पभुसंदिट्ठो व होड़ कायव्यो। दिया है, उसने उन्हें धृति, मति, गति और सुख दिया है।) एगमणेगे व पभू, पभुसंदिढे वि एमेव॥ ३. शय्यातर का नाम-गोत्र...... (बृभा ३५२५) से भिक्खूवा भिक्खुणी वा जस्सुवस्सए संवसेज्जा, तस्स उपाश्रय का स्वामी अथवा उस स्वामी के द्वारा संदिष्ट पुव्वामेव णाम-गोयं जाणेज्जा। तओ पच्छा तस्स गिडे व्यक्ति शय्यातर होता है। स्वामी एक भी हो सकता है, अनेक भी णिमंतेमाणस्स अणिमंतेमाणस्स वा असणं वा पाणं वाणो हो सकते हैं। इसी प्रकार स्वामी के द्वारा संदिष्ट व्यक्ति भी एक या पडिगाहेज्जा॥ _ (आचूला २/४८) अनेक हो सकते हैं। वह भिक्षु अथवा भिक्षुणी जिसके उपाश्रय में रहे, उस २. शय्यातर के पर्यायवाची नाम शय्यातर का नाम-गोत्र (और घर) पहले ही जान ले। तत्पश्चात् सागारियस्स णामा, एगट्ठा णाणवंजणा पंच। उसके घर में निमंत्रित किए जाने पर या न किए जाने पर उसके सागारिय सेज्जायर, दाता य तरे धरे चेव॥ अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य को ग्रहण न करे। अगमकरणादगारं, तस्सहजोगेण होइ सागारी। ४. अनेक शय्यातरों में एक का निर्धारण सेन्जाकरणे सेज्जाकरो उ दाता तु तद्दाणा॥ एगे सागारिए पारिहारिए, दो तिण्णि चत्तारि पंच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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