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________________ आगम विषय कोश- २ में जा रहा हो, तो उसके साध क्षमा का संदेश भेजे । यदि संदेशवाहक न मिले तो स्वयं अपने मन से कलह का भाव सर्वथा समाप्त कर दे। फिर कभी कहीं मिले, वहीं क्षमायाचना करे। यदि कभी कहीं मिलने की संभावना न हो तो अपने गुरु के पास जाकर उसका स्मरण कर मानसिक संकल्प के साथ उससे क्षमायाचना करे। • कलहशमन का एक उपाय : संवाद-स्थापन .....दोसं, झवंति तिक्खाइ - महुरेहिं ॥ अवराह तुलेऊणं, पुव्ववरद्धं च गणधरा मिलिया । बोहित्तुमसागारिऍ, दिंति विसोहिं खमावेडं ॥ (बृभा २२३०, २२३१ ) आचार्य तीक्ष्ण-मधुर वचनों से कलह को शांत करते हैं। दो गच्छों के दो व्यक्तियों में परस्पर कलह होने पर दोनों गच्छों के आचार्य मिलकर उन दोनों की बात सुनते हैं। फिर परस्पर संवाद स्थापित कर जिसने पहले अपराध किया है, उसे एकांत में प्रतिबोध देकर दूसरे अपराधी से क्षमायाचना का निर्देश देते हैं। क्षमायाचना के पश्चात् दोनों को प्रायश्चित्त देकर शुद्ध करते हैं। ११. आचार्य द्वारा प्रेरणा : चार स्मारणा काल गच्छा अणिग्गयस्सा, अणुवसमंतस्सिमो विही हो । सज्झाय भिक्ख भत्तट्ट, वासए चउर एक्केक्के ॥ वि पट्टवेति उवसम, कालो ण सुद्धो जियं वा सिं ॥ तरणे अभत्तट्ठी, ण व वेला अभुंजणे ण जिणं सिं । ण पडिक्कमंति उवसम, णिरतीयारा णु पच्चाह ॥ एवं दिवसे दिवसे, चाउक्कालं तु सारणा तस्स'' । एवं तु अगीतत्थे, गीतत्थे सारिए गुरू सुद्धो । जति तं गुरू ण सारे, आवत्ती होइ दोण्हं पि । गच्छो य दोन्नि मासे, पक्खे पक्खे इमं परिहवेति । भत्तट्टण सज्झायं, वंदण लावं ततो परेणं ॥ (बृभा ५७६२-५७६४, ५७६६-५७६८) कलह के पश्चात् यदि मुनि गच्छ में ही स्थित है किन्तु उपशांत नहीं हुआ है, उसके लिए यह विधि हैआचार्य प्रतिदिन उसे चार बार प्रेरित करें Jain Education International १५ अधिकरण - १. स्वाध्यायकाल में – आचार्य उससे कहे ये साधु स्वाध्याय की प्रस्थापना नहीं कर पा रहे हैं, अतः तुम शांत हो जाओ । यदि वह प्रत्युत्तर में कहे- अभी काल शुद्ध नहीं है अथवा साधुओं के सूत्र तो परिचित ही है-ऐसा कहने पर साधु स्वाध्याय प्रारंभ कर दें। २. भिक्षावेला में - आचार्य उससे कहे - साधु भिक्षा के लिए नहीं जा रहे हैं, तुम शांत हो जाओ। 1 ये तपस्वी हैं अथवा भिक्षा का समय नहीं हुआ है इसलिए नहीं जा रहे हैं'- उसके ऐसा कहने पर साधु भिक्षा के लिए चले जाते हैं । ३. आहार के समय - आचार्य उससे कहे - साधु आहार नहीं कर रहे हैं, तुम शांत हो जाओ। वे अजीर्ण के कारण आहार नहीं कर रहे हैं - उसके ऐसा कहने पर सब साधु मंडलीभोजन करते हैं। ४. प्रतिक्रमण के समय - आचार्य उससे कहे- साधु प्रतिक्रमण नहीं कर पा रहे हैं, तुम शांत हो जाओ। वह कहता है - वे निरतिचार हैं, तब सब प्रतिक्रमण करते हैं। इस प्रकार प्रतिदिन के ये चार स्मारणाकाल हैं। यह विधि अगीतार्थ के लिए है। गीतार्थ के लिए एक दिन में चारों स्थानों की स्मारणा कराने वाले आचार्य शुद्ध हैं। यदि आचार्य अनुपशांत मुनि को स्मारणा नहीं कराते हैं तो दोनों प्रायश्चित्त के भागी हैं। गच्छ और स्मारणा की अवधि - गच्छ दो मास तक प्रतिदिन स्मारणा कराये । तत्पश्चात् प्रत्येक पक्ष में एक-एक स्थान का वर्जन करे । यथा - प्रथम पक्ष के बाद उसके साथ मण्डली भोजन का, दूसरे पक्ष के बाद स्वाध्याय का, तीसरे पक्ष के बाद वंदना - व्यवहार का और चौथे पक्ष के बाद आलापसंलाप का वर्जन करे । १२. अनुपशांत की गच्छ में रहने की अवधि संवच्छरं च रुट्ठ, आयरिओ रक्खती पयत्तेणं । जति णाम उवसमेज्जा, पव्वतराजी सरिसरोसो ॥ अण्णे दो आयरिया, एक्केक्कं वरिसमुवमेंतस्स । तेण परं गिहि एसो, बितियपदं रायपव्वतिए ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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