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________________ आगम विषय कोश-२ १३ अधिकरण हल को युग आदि से संयोजित करता है। कोई वस्त्र को अथवा प्राभृत आदि तो नरक के एकार्थक हैं, क्योंकि दूसरे वस्त्र के साथ सिलाई के प्रयोग से संयुक्त करता है। नरक के सीमन्तक आदि के प्राभृत की तरह जो प्राभृत है, वह कोई वैद्य औषधिहेतुक हरीतकी, पिप्पली आदि अन्य द्रव्य । अधिकरण है। परस्पर मिलाता है। कोई भोजन के लिए चावल, दाल, घी ८. अधिकरण-उत्पत्ति के छह हेतु आदि की संयोजना करता है। इन सब क्रियाओं में कर्मबंध सच्चित्ते अच्चित्ते, मीस वओगय परिहार देसकहा। का नानात्व होता है। जो कूट-संयोजना करता है, उसके सम्ममणाउट्टते, अहिगरणमओ समुप्पज्जे॥ संक्लिष्ट परिणामों के कारण तीव्रतर कर्मबंध होता है। जाल आभव्वमदेमाणे, गिण्हंत तहेव मग्गमाणे य। बनाने वाले की अपेक्षा से हल योजित करने वाले के स्वल्पतर, सच्चित्तेतरमीसे, वितहापडिवत्तिओ कलहो। वस्त्र की संयोजना करने वाले के स्वल्पतम कर्मबंध होता है। विच्चामेलण सुत्ते, देसीभासा पवंचणे चेव। ६. भाव अधिकरण (कलह) के निर्वचन अन्नम्मि य वत्तब्वे, हीणाहिय अक्खरे चेव।। .."अद्धितिकरणं च तहा, अहीरकरणं च अहीकरणं॥ परिहारियमठवेंते, ठवियमणट्ठाए निव्विसंते वा। भावाधिकरणं कर्मबंधकारणं।"अहीकरणं"अधी: कुच्छियकुले व पविसइ, चोइयऽणाउट्टणे कलहो॥ रुषः, स तं करोतीत्यधिकरणं। देसकहापरिकहणे, एक्के एक्के व देसरागम्मि। (निभा २७७२ चू) मा कर देसकहं ति य, चोइय अठियम्मि अहिगरणं॥ (बृभा २६९३-२६९७) जो कषायभाव या अशुभभाव रूप शस्त्र से युक्त है. वह साधिकरण है। अधिकरण की उत्पत्ति के मुख्य छह कारण हैंजो कर्मबंध का कारण है, वह भावाधिकरण है। सचित्त, अचित्त, मिश्र, वचोगत, परिहारकुल और देशकथाधुतिहीन व्यक्ति जिसे करता है, वह अधीरकरण/अधिकरण इनसे संबंधित असद् प्रवृत्ति के निवारण की प्रेरणा के पश्चात् है। बुद्धिविहीन व्यक्ति जिसे करता है, वह अधीकरण सम्यक् प्रवृत्त न होने पर कलह उत्पन्न होता है। (अधिकरण/ कलह) है। १-३. सचित्त, अचित्त, मिश्र-शैक्ष, वस्त्र-पात्र अथवा उपकरण अधिक्रियते-नरकगतिगमनयोग्यतां प्राप्यते आत्मा सहित शैक्ष-ये जिनके हैं, उन्हें नहीं सौंपा जाता है, अनधिकृत को ग्रहण किया जाता है या पूर्वगृहीत की मार्गणा की जाती अनेनेत्यधिकरणं कलहः प्राभृतमित्येकोऽर्थः। (क १/३४ की वृ) है, उसे अस्वीकृत करने पर वितथ प्रतिपत्ति के कारण कलह हो सकता है। जीव जिसके द्वारा नरकगतिगमन की योग्यता अधिकृत/ ४. वचोगत-शिष्य द्वारा एक सूत्र का दूसरे सूत्र में मिश्रण कर प्राप्त करता है, वह अधिकरण है। कलह और प्राभृत इसके परावर्तन किया जाता है, सूत्रपदों के उच्चारण में अक्षरों की एकार्थक हैं। न्यूनाधिकता की जाती है, उसे प्रेरणा देने पर वह सम्यक ७. अधिकरण के पर्याय प्रवृत्त नहीं होता, तब कलह हो सकता है। देशांतर में देशी ""पाहुड पहेण पणयण, एगट्ठा ते उ निरयस्स॥ भाषा के प्रयोग का उपहास किये जाने पर, दूसरों के शब्दों का अधिकरणं नरकस्य-सीमन्तकादेः प्राभृतमिव । अनुकरण (नकल) करने पर तथा वक्तव्य वचनों में व्यत्यय प्राभृतमुच्यते। (बृभा २६७८ वृ) करने पर कलह हो सकता है। प्राभुत, प्रहेणक और प्रणयन-ये तीनों अधिकरण के ५. परिहार कुल-स्थापना कलों की स्थापना न करने पर, पर्यायवाची नाम हैं। स्थापित कुलों में निष्कारण प्रवेश करने पर अथवा कुत्सित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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