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________________ आगम विषय कोश-२ ५१९ वैयावृत्त्य पण्डक की आसेवनशिक्षाविधि-वह विचारभूमि और गोचरी में स्थविर साधु के साथ जाए। रात्रि में तरुण साधुओं से उसे पृथक् रखा जाए। तरुण साधु उसे अध्ययन न करवायें। यदि वह पढ़ना चाहता हो तो स्थविर साधु ही प्रयत्नपूर्वक पढ़ायें। उसे वैराग्यकथा और विषयनिन्दा विषयक सूत्रों का ही अध्ययन कराया जाये। उठते-बैठते समय मुनि सुसंवृत रहें । सामाचारी में विस्मृति अथवा स्खलना होने पर तरुण साधु सरोष वचनों से उसे पुनः पुनः प्रेरित करें, जिससे तरुण साधुओं के साथ उसका अनुबंध न हो। वैयावृत्त्य- दूसरों का सहयोग करने के लिए व्यापृत होना। सेवा-शुश्रूषा, अनुशिष्टि,उपग्रह, समाधि। १. वैयावृत्त्य के प्रकार : अनुशिष्टि आदि * वैयावृत्त्य के लिए उपसंपदा द्र उपसम्पदा २. वैयावृत्त्य के प्रकार : आचार्य आदि ३. आचार्य आदि के वैयावृत्त्य से महानिर्जरा ० वाचना द्वारा महान् वैयावृत्त्य ४. श्रुतधर वैयावृत्त्य : निर्जरा का तारतम्य ५. गुणवत्ता और भावधारा के आधार पर निर्जरा ०वीर-गौतम-कपिलसुत दृष्टांत ६. साधु-साध्वी की परस्पर सेवा-विधि, अर्हता ___ * साधु-साध्वी चिकित्सा : विद्याप्रयोगविधि द्र मंत्र-विद्या ७. वैयावृत्त्य के अनर्ह-अर्ह ___० भिक्षासंबंधी वैयावृत्त्य के अनर्ह ८. वैयावृत्त्य के तेरह स्थान : एकांत निर्जरा स्थान ९. अग्लानभाव से सेवा : गिला-अगिला १०. सेवानियुक्ति की प्रार्थना ० आगंतुक परिचारक : वाचना की व्यवस्था ११. अप्रार्थित वैयावृत्त्य : महर्द्धिक दृष्टान्त |१२. सेवा की अनिवार्यता : संघ की प्रभावना __० वैयावृत्त्य में तत्परता : उपेक्षा से प्रायश्चित्त १३. ग्लानप्रायोग्य द्रव्य की गवेषणा १४. मुनि और वैद्य ____ * वैद्य के पास जाने की योग्यता द्र चिकित्सा ० वैद्य आने पर अभ्युत्थानविधि....." १५. वैयावृत्त्य और परपक्ष १६. वैयावृत्त्य के अपवाद ___ * पारिहारिक के वैयावृत्त्य का विधान द्र परिहारतप * उत्सारकल्पी का वैयावृत्त्य द्र उत्सारकल्प * दीप्तचित्त-संरक्षण, संघ द्वारा वैयावृत्त्य द्र चित्तचिकित्सा * वैयावृत्त्य और सापेक्ष-निरपेक्ष द्र स्थविरकल्प १७. वैयावृत्त्य से गुरु प्रायश्चित्त लघु में परिवर्तित |१८. मुनि की चिकित्सा के हेतु |१९. गीतार्थ-अगीतार्थ-चिकित्सा : गंत्री-नौका दृष्टांत | २०. चिकित्सा की कालावधि : आचार्य, वृषभ"" २१. असाध्य रोगी को अनशन की प्रेरणा १. वैयावृत्त्य के प्रकार : अनुशिष्टि आदि वेयावच्चे तिविधे, अप्पाणम्मि य परे तदुभए य। अणुसट्ठि उवालंभे, उवग्गहे चेव तिविधम्मि॥ अणुसट्ठीय सुभद्दा, उवलंभम्मि य मिगावती देवी। आयरिओ दोसु उवग्गहो य सव्वत्थ वायरिओ॥ दंडसुलभम्मि लोए, मा अमतिं कुणसु दंडितो मि त्ति। एस दुलभो हु दंडो, भवदंडनिवारओ जीव!॥ अवि य हु विसोधितो ते, अप्पाणायार मइलितो जीव!। इति अप्प परे उभए, अणुसट्ठि थुतित्ति एगट्ठा॥ तुमए चेव कतमिणं, न सुद्धकारिस्स दिज्जते दंडो। इह मुक्को वि न मुच्चति, परत्थ अह होउवालंभो॥ दव्वेण य भावेण य, उवग्गहो दव्वे अण्णपाणादी। भावे पडिपुच्छादी, करेति जं वा गिलाणस्स॥ परिहारऽणुपरिहारी, दुविहेण उवग्गहेण आयरिओ। उवगेण्हति सव्वं वा, सबालवुड्डाउलं गच्छं। अधवाऽणुसढुवालंभुवग्गहे कुणति तिन्नि वि गुरू से। सव्वस्स वि गच्छस्सा, अणुसट्ठादीणि सो कुणति॥ .''उपदेशप्रदानम्"स्तुतिकरणं वा अनुशिष्टिः । तत्र यद् आत्मानमात्मना अनुशास्ति सा आत्मानुशिष्टिः। यत्पुनः परस्य परेण चानुशासनं सा परानुशिष्टि:..." । तथा अनाचारे कृते सति यत् सानुनयोपदेशनमेष उपालम्भः।"मृगावतीदेवी सा हि आर्यचन्दनया अकालचारिणीति कृत्वा उपालब्धा।""उपग्रहः उपष्टम्भकरणमित्यर्थः। (व्यभा ५६०-५६७ वृ) ___ वैयावृत्त्य के तीन प्रकार हैं- १. अनुशिष्टि, २. उपालंभ और ३. उपग्रह । प्रत्येक के तीन भेद हैं-स्व, पर और तदुभय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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