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________________ आगम विषय कोश-२ ५०५ विनय ३. प्रतिरूप विनय : श्वेत काक आदि दृष्टांत का आदेश देता है, उसके भी उस आदेश का सूत्रोक्तविधि से चउधा वा पडिरूवो, तत्थेगणुलोमवयणसहितत्तं। पालन करना गुरुवाक्यानुलोमता विनय है। पडिरूवकायकिरिया, फासणसव्वाणुलोमं च॥ २. प्रतिरूप कायक्रिया विनय-मार्ग में चलने, वाचना देने अथवा अमुगं कीरउ आमं ति, भणति अणुलोमवयणसहितो उ। निरंतर बैठे रहने से गुरु क्लांत-श्रांत हो जाते हैं। उनका सिर से वयणपसादादीहि य, अभिणंदति तं वई गुरुणो॥ प्रारंभ कर पैर तक मर्दन करना चाहिए। यह विश्रामणा (पगचंपी चोदयंते परं थेरा, इच्छाणिच्छे य तं वई। आदि) प्रतिरूप कायक्रिया विनय है। पैर से प्रारंभ कर सिर तक जुत्ता विणयजुत्तस्स, गुरुवक्काणलोमता॥ चांपना अविनय है। अथवा गुरु जिस अंग से प्रारंभ करने का गुरवो जं पभासंति, तत्थ खिप्पं समुज्जमे। निर्देश दें, उसी से विश्रामणा प्रारंभ करे, कृतिकर्म करे । आज्ञानुरूप न ऊ सच्छंदया सेया, लोए किमुत उत्तरे॥ होने से यह. अविनय नहीं है। जधुत्तं गुरुनिद्देसं, जो वि आदिसती मुणी। ३. संस्पर्शन विनय-गुरु की विश्रामणा मृदुता से करे। वे जितना तस्सा वि विहिणा जुत्ता, गुरुवक्काणुलोमता॥ सहन कर सकें, उस प्रकार से करे। एक आसन में लम्बे समय अद्घाणवायणाए, निण्णासणयाए परिकिलंतस्स। तक बैठे रहने से वात, पित्त और कफ संक्षुब्ध हो जाते हैं। सीसादी जा पाया, किरिया पादादऽविणओ तु॥ विश्रामणा से वे पुनः अपने स्थान पर आ जाते हैं, मार्गगमन, जत्तो व भणाति गरू, करेति कितिकम्म मो ततो पव्वं। वाचना आदि से होने वाली थकान दूर हो जाती है, शरीर सुदृढ संफासणविणओ पण, परिमउयं वा जहा सहति॥ होता है, बल बढ़ता है तथा अर्श आदि रोग नहीं होते।। वातादी सट्ठाणं, वयंति बद्धासणस्स जे खुभिया। ४. सर्वत्र अनुलोमता विनय-'मैंने श्वेत रंग वाला कौआ देखा है खेदजओ तणुथिरया, बलं च अरिसादओ नेवं॥ अथवा मैंने पाण्डुर वर्ण वाला चतुर्दन्त हाथी देखा है'-गुरु के सेतवपू मे कागो, दिवो चउदंतपंडरो वेभो। द्वारा इस प्रकार के लोकव्यवहारविरुद्ध प्रतिलोम वचन कहे जाने आम ति पडिभणंते, सव्वत्थऽणुलोमपडिलोमे ॥ पर शिष्य कहता है-हां, हां (आपने देखा है)। ऐसा कहने वाला मिणु गोणसंगुलेहिं, गणेह से दाढवक्कलाई से। शिष्य सर्वत्र अनुलोमता विनय का प्रयोग करता है। यदि उस अग्गंगुलीय वग्धं, तुद डेव गडं भणति आमं ।। विषय में कुछ पूछना हो तो गुरु को एकान्त में पूछे। गुरु शिष्य को यदि कहे-'वत्स! वह सर्प कितने अंगुल (व्यभा८६-९५) परिमाण का है ? उसके कितनी दाढ़ाएं हैं ? उसकी पीठ पर बालों अथवा प्रतिरूप विनय के चार प्रकार हैं के कितने मंडल हैं?-इन सबको गिनकर बताओ। अपनी अंगुलियों १. अनुलोम वचनसहितता-शिष्य! अमुक कार्य करो-गुरु के के अग्रभाग से व्याघ्र को व्यथित करो। इस कूप को लांघ जाओ।' इस निर्देश पर अनुलोम वचन वाला शिष्य स्वीकृतिसूचक 'आमं' इस प्रकार गुरु के द्वारा प्राणापहारी वचन कहे जाने पर शिष्य उन (हां या तहत्) शब्द का उच्चारण करता है और अपने मुख की आज्ञाओं को 'तहत्' कहकर सहर्ष स्वीकार करता है। प्रसन्नता आदि से गुरु के उस वचन का अभिनंदन करता है। ४. लोकोत्तर विनय बलवान् : गंगा दृष्टांत आचार्य शिष्य को प्रेरणा देते हैं, उस वचन के प्रति इच्छा । विणओ उत्तरिओ त्ति य, बलिओ गंगा कतोमुही वहति। हो या अनिच्छा, विनयसंपन्न शिष्य के लिए तो गुरुवचन के पुव्वमुही अचलंतो, भणति निवं आगितिजुतो वि॥ अनुकूल वर्तन करना ही युक्त है। गुरु जो कहते हैं, उस विषय रण्णा पदंसितो एस, वयउ अविणीयदसणो समणो। में शिष्य को शीघ्र उद्यम करना चाहिए। स्वच्छन्दता लोक में भी पच्चागयउस्सग्गं, काउं आलोयए गुरुणो॥ श्रेयस्करी नहीं है तो लोकोत्तर मार्ग में तो वह श्रेयस्करी हो ही आदिच्च दिसालोयण, तरंगतणमादिया य पुव्वमुही। कैसे सकती है ? जो कोई भी मुनि यथोक्त गुरुनिर्देश के पालन मा होज्ज दिसामोहो, पुट्ठो वि जणो तहेवाह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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