SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अधिकरण आगम विषय कोश-२ अधिकरण-हिंसाकारक साधनों का निर्माण, प्रयोग आदि। कलह । कषायों के उदय से होने वाली प्रवृत्ति। १. द्रव्य-भाव अधिकरण। २. द्रव्य अधिकरण क्रिया : निर्वर्तना आदि ३. निर्वर्तना : तीक्ष्ण शस्त्रनिर्माण से तीव्र कर्मबंध ४. शरीर निर्वर्तना : अश्व-उत्पादन आदि ० मूल-उत्तर गुण निर्वर्तना : शरीर संघात-परिशाट करण ५.निक्षेपणा-संयोजना-निसर्जना अधिकरण ० संयोजना अधिकरण : कर्मबंध में नानात्व ६. भाव अधिकरण (कलह) के निर्वचन ७. अधिकरण के पर्याय ८. अधिकरण-उत्पत्ति के छह हेतु ९. कलहशमन से पूर्व आहार आदि का निषेध १०. कलह-उपशमन से आराधना ० कलह-शमन विधि ० कलह-शमन का एक उपाय : संवाद स्थापन ११. आचार्य द्वारा प्रेरणा : चार स्मारणा काल १२. अनुपशांत की गच्छ में रहने की अवधि १३. अधिकरण (कषाय) से उत्पन्न दोष __* कषाय से चारित्र-हानि : शमी-शाकपत्र दृष्टांत द्र कषाय १४. वैर के प्रकार, कलह-जन्य वैर की भव-परम्परा १५. कलह-उपेक्षा कैसे? १६. कलह-उपेक्षा से सर्वनाश : गिरगिट-हाथी दृष्टांत ___ * कलह उत्पन्न करना असमाधिस्थान द्र सामाचारी १७. कलह-उत्पत्ति और प्रायश्चित्त • कलह निवारण न करने पर प्रायश्चित्त १८. पर्युषणा में क्षमायाचना अनिवार्य ० दृष्टांत : दुरूतक और द्रमक ० प्रद्योत-उद्रायण * क्षमायाचना से गुण-निष्पादन द्र जिनकल्प १. द्रव्य-भाव अधिकरण ..."दव्वम्मि जंतमादी, भावे उदओ कसायाणं॥ (बृभा २६८०) अधिकरण के दो प्रकार हैं १. द्रव्य अधिकरण-यंत्रों का निर्वर्तन आदि। २. भावअधिकरण-क्रोध आदि कषायों का उदय। २. द्रव्य अधिकरण क्रिया : निर्वर्तना आदि दव्वम्मि उ अहिगरणं, चउव्विहं होइ आणुपुव्वीए। निव्वत्तण निक्खिवणे, संजोयण निसिरणे य तहा॥ अहिकरणं ............. समासओ दुविहं। णिव्वत्तणताए वा, संजोगे चेवऽणेगविधं ॥ या प्रथमतो घटना सा निर्वर्त्तना, या पुनस्तेषामेव निर्वतितानामेकत्र संघातना सा संयोजना। (बृभा २६८१, ३९४२ वृ) द्रव्य अधिकरण के चार प्रकार हैं-निर्वर्तना, निक्षेपणा, संयोजना और निसर्जना। संक्षेप में अधिकरण के दो प्रकार हैं- . १. निर्वर्तना अधिकरण क्रिया-नए सिरे से शस्त्रनिर्माण की क्रिया। २. संयोजनाधिकरणक्रिया-पूर्व निर्मित भागों को जोडकर शस्त्रनिर्माण करने की क्रिया। इनके उत्तर भेद अनेक हैं। (शस्त्रनिर्माण की पृष्ठभूमि में है-अविरति और निर्माण की प्रक्रिया है-दुष्प्रवृत्ति । द्र भ ३/१३४ का भाष्य) ३. निर्वर्तना : तीक्ष्ण शस्त्रनिर्माण से तीव्र कर्मबंध एगो करेति परसुं, णिव्वत्तेति णखछेदणं अवरो। कुंत-कणगे य वेज्झे, आरिय सूई अ अवरो उ॥ सूईसुं पि विसेसो, कारणसूईसु सिव्वणीसुं च। संगामिय परियाणिय, एमेव य जाणमादीसु॥ कारग-करेंतगाणं, अधिकरणं चेव तं तहा कुणति। जह परिणामविसेसो, संजायति तेसु वत्थूसु॥ याः परव्यपरोपणादिकारणमुद्दिश्य कारयित्वा परस्य नखमूलादौ कुट्यन्ते ता: कारणसूच्य उच्यन्ते, तासु विधीयमानासुमहान् कर्मबन्धो भवति।यास्तुवस्त्रसीवनार्थ क्रियन्ते तासुस्वल्पतरः कर्मबन्धः। (बृभा ३९४३-३९४५ वृ) (अधिकरण के आधार पर क्रिया होती है और क्रिया के आधार पर कर्मबंध।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy