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________________ वास्तुविद्या आकार वाला उत्तानमल्लकसंस्थित ग्राम कहलाता है, ऊर्ध्वाभिमुख शराव ( सकोरे) का आकार ऐसा ही होता है । २. अधोमुखमल्लकसंस्थान - यह संस्थान भी ऐसा ही है। विशेष यह है कि जिस गांव के मध्य देवकुल है या बहुत ऊंचा वृक्ष है, उस देवकुल आदि के शिखर से रज्जुओं को उतारकर तिरछे में वृति पर्यंत ले जाया जाता है। वहां से अधोमुख हो घरों के पादमूल तक ग्रहण कर पटहच्छेद से उपरत होने पर यह संस्थान बनता है । ३. सम्पुटकमल्लकसंस्थान - जिस ग्राम के मध्यभाग में कूप है, उसके ऊपर ऊंचा वृक्ष है तो उस कूप के अधस्तल से रज्जु निकालकर घरों के मूल पाद के नीचे-नीचे ले जाकर वृति पर्यंत ले जाया जाता है। फिर ऊर्ध्व अभिमुख होकर हर्म्यतल की समश्रेणीभूत रज्जु को वृक्ष - शिखर से उतारकर वृतिपर्यंत ले जाते हैं । फिर अधोमुखी होकर उसे कूपसंबंधी रज्जु के अग्र भाग के साथ संघटित किया जाता है। यह सम्पुटकमल्लकसंस्थान है । ४. ६. उत्तान - अधोमुख- सम्पुटखंडमल्लकसंस्थान - जिस ग्राम के बाहर एक दिशा में कूप है, उस एक दिशा को छोड़कर शेष सात दिशाओं में रज्जु को निकालकर उसे तिर्यक् वृति तक ले जाकर ऊपर से हर्म्यतल तक लाकर पटहच्छेद से उपरत होने पर उत्तानखंडमल्लकसंस्थान बनता है। अधोमुखखंडमल्लक और सम्पुटखंडमल्लक संस्थान भी ऐसा ही होता है। इन दोनों में विशेष इतना है कि पहले में एक दिशा में देवकुल या ऊंचा वृक्ष होता है, दूसरे में एक दिशा में कूप और उसके ऊपर वृक्ष होता है। ७. भित्तिसंस्थान - जिस गांव की पूर्व और पश्चिम दिशा में समश्रेणी में व्यवस्थित वृक्ष हों, वह भित्तिसंस्थित ग्राम है। ५०२ ८. पडालिका संस्थान - जिस गांव की पूर्व और पश्चिम दिशा में वृक्ष समश्रेणि में तथा पार्श्वभाग में वृक्षयुगल सम श्रेणी में अवस्थित हों, वह पडालिकासंस्थित ग्राम है। ९. वलभी संस्थान - जिस गांव के चारों कोणों में ईषद् दीर्घ वृक्ष व्यवस्थित हों, वह वलभीसंस्थित ग्राम है। १०. अक्षवाटकसंस्थान - ' अक्षवाट ' - मल्लों के युद्ध का अभ्यासस्थल जैसे समचतुरस्र होता है, वैसे ही जिस गांव के चारों कोणों में वृक्ष होते हैं, उससे यह चतुर्विदिशावर्ती वृक्षों के द्वारा समचतुरस्र रूप में जाना जाता है, वह अक्षवाटकसंस्थित ग्राम है। ११. रुचकसंस्थान - यद्यपि गांव स्वयं सम नहीं होता, तथापि जो Jain Education International आगम विषय कोश - २ रुचकवलयपर्वत की भांति वृत्ताकार में व्यवस्थित वृक्षों से वेष्टित है, वह रुचकसंस्थित ग्राम है। १२. काश्यपसंस्थान - जो गांव त्रिकोण रूप में निविष्ट है, वह काश्यपसंस्थित ग्राम है। अथवा जिस गांव के बाहर एक ओर दो तथा दूसरी ओर एक - इस प्रकार तीन वृक्ष त्रिकोण रूप में स्थित हैं, वह काश्यपसंस्थित ग्राम है । नापित के क्षुरगृह को काश्यप कहा जाता है । वह त्रिकोण होता है। * प्रशस्त वसति : वृषभ संस्थान ..... महास्थंडिल - निर्माण की प्रमुखता .....गामस्स व नगरस्स व, सियाणकरणं पढम वत्थं ॥ ग्राम-नगरादीनां...' निवेश्यमानानां वास्तुविद्यानुसारेण प्रथमं श्मशानवास्तु निरूप्य ततः शेषाणि देवकुलसभा-सौधादिवास्तूनि निरूप्यन्ते ।...... (बृभा १५०५ वृ) वास्तुविद्या के अनुसार नये गांव और नगर बसाते समय सर्वप्रथम श्मशानभूमि का, तत्पश्चात् मंदिर, सभा, प्रासाद आदि निर्माणस्थलों का निरीक्षण और निश्चय किया जाता है। * महास्थंडिल की दिशा : गुणदोषविचारणा द्र महास्थंडिल विचारकल्पिक - 'उच्चारप्रस्रवणसप्तैकक' नामक अध्ययन द्र समिति का ज्ञाता । विद्या - देवी - अधिष्ठित अक्षरपद्धति । द्र मंत्र - विद्या विनय - विनम्रता । आचार। शिक्षा। W १. विनय के चार प्रकार २. प्रतिरूप विनय के प्रकार ० उपचार विनय के प्रकार द्र अनशन ३. प्रतिरूप विनय : श्वेत काक आदि दृष्टांत * शिष्य की विनयप्रतिपत्ति के भेद ४. लोकोत्तर विनय बलवान् : गंगा दृष्टांत * विनीत को ही सूत्र की वाचना For Private & Personal Use Only द्र अंतेवासी द्र वाचना १. विनय के चार प्रकार पडिरूवग्गहणेणं विणओ खलु सूइतो चउविगप्पो । नाणे दंसण-चरणे, पडिरूव चउत्थओ होति ॥ www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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