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________________ आगम विषय कोश-२ ४७७ राज्य था। पूरण तापस के जीवनकाल में कूणिक का जीव तापस-पर्याय में था और वह पूरण तापस का मित्र था, इसलिए देवेन्द्र शक्र और असुरेन्द्र चमर ने राजा कूणिक को साहाय्य दिया। ___ दोनों युद्धों में कुल मिलाकर एक करोड़ अस्सी लाख मनुष्य मारे गए।-द्र भ ७/१७३-२१० व चेटक ने अपने देवप्रदत्त बाण से दस दिनों में कोणिक के दस भाइयों को मार डाला। दुःखी कोणिक ने विवश होकर त्रिदिवसीय अनुष्ठान द्वारा सौधर्मेन्द्र और चमरेन्द्र की आराधना की, तब अपना पूर्व साधर्मिक जानकर चमर ने महाशिलाकंटक रण और रथमुसल नामक रण प्रदान किया। महाशिलाकंटक युद्ध में फेंका गया एक कंकर भी शिला जैसा प्रहार करता था और कंटक भी शस्त्र बन जाता था।-उप्रा १ वृ प ३३) * युद्ध और वैद्य द्र चिकत्सिा राज्य-राजा/शासक द्वारा शासित क्षेत्र, शासन। ६.अंतःपुर और उसके रक्षक ___ * युद्ध : महाशिलाकण्टक-रथमुसल संग्राम द्र युद्ध ७. राजा की छह प्रकार की शालाएं ८. विभिन्नभक्त : कान्तारभक्त, ग्लानभक्त आदि * नानाविध नाणक द्र मुद्रा | ९. राज्यकर १०. चक्रवर्ती और राजधानियां ० चक्रवर्ती आदि के भवनों की ऊंचाई |११. परिक्षेप के प्रकार : द्रव्य"भाव |१२. वैराज्य-विरुद्ध राज्य : निर्वचन एवं स्वरूप | * मुनि के लिए वैराज्यगमन निषेध द्र विहार |१३. वैराज्यगमन-निषेध क्यों? ० वैराज्यगमन के अपवाद ० राज्यनिर्गमन-वैराज्यप्रवेश-विधि |१४. राज्य में होने वाले उत्सव ___ * लोकोत्तर पर्व : संवत्सरी द्र पर्युषणाकल्प १.राज्य के पांच आधार : राजा, वैद्य" २. राजा की अर्हता ० राजा व्यसनमुक्त हो ० राजाओं की ऋद्धि ० राजा के प्रकार * राजा के प्रकार और राजपिण्ड द्र कल्पस्थिति ० राजा के चार विकल्प * राजा का अवग्रह द्र अवग्रह * सापेक्ष-निरपेक्ष राजा : मूलदेव दृष्टांत द्र आचार्य * वैद्य का स्वरूप द्र चिकित्सा ०धनवान, नैयतिक, रूपयक्ष * राजाज्ञा भंग का परिणाम : चन्द्रगुप्त... द्र आज्ञा * राजा सम्प्रति और आर्यक्षेत्र द्र आर्यक्षेत्र * संघप्रभावक राजा सम्प्रति ३. युवराज, महत्तरक, अमात्य ० गुप्तचर के प्रकार ० कुमार ४. प्रग्रहस्थान : राजा आदि, आचार्य आदि ५. आरक्षकवर्ग ० अन्य कर्मकर, दासीवर्ग १. राज्य के पांच आधार : राजा, वैद्य..... तत्थ न कप्पति वासो, आधारा जत्थ नत्थि पंच इमे। राया वेज्जो धणिमं, नेवइया रूवजक्खा य॥ दविणस्स जीवियस्स व, वाधातो होज्ज जत्थ णत्थेते। वाघाते चेगतरस्स, दव्वसंघाडणा अफला॥ रण्णा जुवरण्णा वा, महयरग अमच्च तह कुमारेहिं । एतेहिं परिग्गहितं, वसेज्ज रज्जं गुणविसालं ॥ रूपयक्षा धर्मपाठकाः। (व्यभा ९२४-९२६ वृ) जनता के सुव्यवस्थित जीवन के लिए पांच व्यक्ति आधारभूत होते हैं-राजा, वैद्य, धनवान्, नैयतिक और रूपयक्ष-धर्मपाठक। जहां ये न हों, वहां नहीं रहना चाहिए क्योंकि वहां धन और जीवन की हानि होती है। धन और जीवन में से एक का भी व्याघात होने पर धनोपार्जन व्यर्थ है। राजा, युवराज, महत्तरक, अमात्य और कुमार-इन पांचों से परिगृहीत और गुणों से विशाल राज्य में वास करना चाहिए। २. राजा की अर्हता उभओ जोणीसुद्धो, राया दसभागमेत्तसंतुट्ठो। लोगे वेदे समए, कतागमो धम्मिओ राया॥ द्र संघ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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