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________________ आगम विषय कोश-२ ४५३ मंत्र-विद्या ५. आभोगिनी, प्रश्न आदि विद्याएं भवति, स एव इंखिणी भण्णति॥पुच्छगंभणति-अतीतकाले आभोगिणीय पसिणेण, देवताए णिमित्तओ वा वि।... वट्टमाणे वा इमो ते लाभो लद्धो, अणागते वा इमं भविस्सति।.. जा विज्जा जविता माणसं परिच्छेदमुप्पादयति सा (निभा ४२९०, ४२९१ चू) आभोगिणी।""अहवा अंगुट्ठपसिणा किज्जति, सुविणपसिणा विद्या द्वारा स्वप्न में कथित बात प्रश्नकर्ता को बताना वा।खवगो वा देवतं आउट्टेउं पुच्छति। अवितहणिमित्तेण वा प्रश्नाप्रश्न है। अथवा विद्या से अभिमंत्रित घंटिका कानों के पास जाणंति। (निभा १३६९ चू) बजाई जाती है, तब देवता शुभाशुभ का कथन करते हैं-वह ० आभोगिनी विद्या-मानसिक निर्णय उत्पन्न कराने वाली विद्या। प्रश्नाप्रश्न है। उसी को इंखिनी कहा जाता है। इस विद्या के जप से मानसिक स्तर पर यह ज्ञान हो जाता है कि देवता पृच्छक को कहता है-अतीत या वर्तमान में तुमने अमुक व्यक्ति ने अमुक वस्तु चुराई है आदि-आदि। यह लाभ प्राप्त किया है, अनागत में यह लाभ होगा। इसी प्रकार ० प्रश्न विद्या-अंगुष्ठ प्रश्न, स्वप्न प्रश्न आदि। वह अलाभ और सुख-दुःख का भी निर्देश करता है। तुम्हारे ० देव-आवाहन-तपस्वी मुनि देवता को आकृष्ट कर या उसका माता-पिता आदि इतने काल तक जीवित थे, अमुक काल में आवाहन कर अपने ज्ञातव्य विषय में पूछ लेता है। उनकी मृत्यु हुई–यह निर्देश भी करता है। • निमित्त-यथार्थ निमित्तज्ञान से ज्ञातव्य को जाना जा सकता है। पसिणा एते पण्हवाकरणेसु पुव्वं आसी। ६. प्रश्नप्रश्न, प्रश्न-अप्रश्न : घण्टिकयक्ष ___ (निभा ४२८९ की चू) पसिणापसिणं सुमिणे, विज्जासिटुं कहेइ अन्नस्स। प्राचीनकाल में प्रश्नव्याकरण सूत्र में प्रश्न, प्रश्नाप्रश्न आदि अहवा आइंखिणिया, घंटियसिटुं परिकहेइ॥ विद्याएं थीं। (प्रश्नव्याकरण में आदर्श, अंगुष्ठ, बाहु, असि, मणि, यत् स्वप्नेऽवतीर्णया विद्यया-विद्याधिष्ठात्र्या देवतया वस्त्र, आदित्य आदि से संबंधित महाप्रश्न, मनःप्रश्न आदि विद्याओं शिष्टं-कथितं सद् 'अन्यस्मै' पृच्छकाय कथयति, अथवा का आख्यान किया गया है। 'आइंखिणिया' डोम्बी तस्याः कुलदैवतं घण्टिकयक्षो नाम ० प्रश्न, अप्रश्न-अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न आदि मंत्रविद्याओं की स पृष्टः सन् कर्णे कथयति, सा च तेन शिष्टं “सदन्यस्मै संज्ञा 'प्रश्न' है। व्यक्ति के अंगूठे को देखकर उसके शुभाशुभ पृच्छकाय शुभाशुभादि यत् परिकथयति एष प्रश्नप्रश्नः। का निर्देश करना अंगुष्ठ विद्या है। मंत्र की विधि से जाप करने (बृभा १३१२ ) पर कुछ विद्याएं सिद्ध हो जाती हैं। वे बिना प्रश्न किए ही विद्या की अधिष्ठात्री देवी द्वारा स्वप्न में अवतरित होकर जो व्यक्ति को शुभ-अशुभ का निर्देश कर देती हैं। इन्हें अप्रश्न कहा जाता है। बात कही जाती है, वह बात प्रश्नकर्ता को बताई जाती है-यह प्रश्नप्रश्न है। अथवा डोम्बी का घण्टिकयक्ष नाम का कुलदेव कुछ ० प्रश्नाप्रश्न-जो विद्या अंगुष्ठ आदि के सदभाव या अभाव में पूछे जाने पर डोंबी के कान में जो शुभ, अशुभ आदि का कथन शुभ-अशुभ का कथन करती है, वह प्रश्न-अप्रश्न विद्या है। ० महाप्रश्न-वाणी के द्वारा पूछने पर ही जो उत्तर देती है। करता है, वह कथन अन्य पृच्छक को बताया जाता है-यह प्रश्न ० मनःप्रश्न-मन में उठने वाले प्रश्नों का उत्तर देने वाली विद्याएं। प्रश्न है। पसिणापसिणं सुविणे, विज्जासिटुं तु साहति परस्स।... इनके अधिष्ठाता देवता होते हैं।-सम प्र सू ९८ वृ, टि) लाभालाभसुहदुहं, अणुभूय इमं तुमे सुहीहिं वा। ७. अभियोग, तालोद्घाटिनी"अन्तर्धान-विद्या जीवित्ता एवइयं, कालं सुहिणो मया तुझं ॥ ... अभियोग ताले, ओसोवण अंतधाणादी॥ .........अहवा विज्जाभिमंतिया घंटिया कण्णमूले अभियोगो वसीकरणं, तं पुण विज्जाचुण्णमंताचालिज्जति, तत्थ देवता कधिति, कहेंतस्स पसिणापसिणं दीहिं.. तालुग्घोडणीए विज्जाए तालगाणि विहाडेऊण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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