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________________ आगम विषय कोश-२ ४२५ ब्रह्मचर्य . . अगसाचारण माना जाता है अन. मनुष्यरूप के तीन प्रकार हैं-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट। १. सुखविज्ञप्या सुखमोच्या-भेड़, बकरी, गर्दभी आदि उभयसुखा प्रत्येक के तीन-तीन प्रकार हैं-प्राजापत्य (सामान्यजन)-परिगृहीत, हैं। ये निष्प्रत्यपाय होने के कारण सुखविज्ञप्या तथा तुच्छ कौम्बिक-परिगृहीत और दण्डिक-परिगहीत। सुखास्वादमात्र का हेतु होने के कारण सुखमोच्या हैं। __मनुष्य रूप में उत्कृष्ट हैं-माता और पत्नी, क्योंकि वे २. सुखविज्ञप्या दुःखमोच्या-मर्कटी (बन्दरी) आदि। अर्हन्नक किसी को नहीं दी जाती हैं। मध्यम रूप है-भगिनी, पुत्री, पौत्री की भाभी उसके प्रति अनुराग के कारण मरकर मर्कटी बनी। माना आदि-जो इनको चाहता है, उनको दी जाती हैं। जघन्य रूप है- जाता है कि मर्कटी आदि ऋतुकाल में कामातुर होती हैं, उस समय दासी आदि स्त्रियां। ये सब रूप दो प्रकार के हो सकते हैं- वे सुखविज्ञप्या होती हैं। परन्तु जब वे अत्यन्त अनुरक्त हो जाती प्रतिमायुत और देहयुत । मैथुन के सन्दर्भ में सजीव और निर्जीव हैं, तब उनसे छुटकारा पाना कठिन होता है। देहयुत का प्रसंग है। ३. दुःखविज्ञप्या सुखमोच्या-गाय, महिषी आदि स्वपक्ष के साथ देहयुत मनुष्यस्त्री के चार प्रकार हैं भी कठिनाई से संगम करती हैं तो परपक्ष (मनुष्य) के साथ की तो १. सुखविज्ञप्या सुखमोच्या-दासी आदि। बात ही क्या? ये दुःखविज्ञप्या हैं। इनका संगम लोकजुगुप्सित २. सुखविज्ञप्या दुःखमोच्या-महान ऋद्धि वाली गणिका साधारण ये सुखमोच्या हैं। स्त्री होने के कारण सुखविज्ञप्या और यौवन, रूप, विभ्रम आदि के ४. दुःखविज्ञप्या दुःखमोच्या-सिंही, व्याघ्री-ये उभयदुःखा हैंकारण दुःखमोच्या होती है। मृत्यु का कारण बनती हैं, अतः दुःखविज्ञप्या हैं तथा अनुरक्त होने ३. दुःखविज्ञप्या सुखमोच्या-राजा के अन्तःपुर की स्त्रियां। रक्षपालक पर प्रतिबद्धता के कारण ये दःखमोच्या होती हैं। की सुरक्षा में रहने के कारण कठिनाई से प्राप्त होती हैं, इसलिए जह हास-खेड्ड-आगार-विब्भमा होति मणुयइत्थीसु। दुःखविज्ञप्या होती हैं। उनका संपर्क आपत्तिबहल होने के कारण वे आलावा य बहुविधा, तह नत्थि तिरिक्खइत्थीसु॥ सुखमोच्या होती हैं। (बृभा २५४३) ४. दुःखविज्ञप्या दुःखमोच्या-राजमाता गुरुस्थान में पूजनीय होती है। उसकी सुरक्षा-व्यवस्था भी बहुत होती है, अतः वह दुःखविज्ञप्या जैसे मनुष्य-स्त्री में हास्य, क्रीड़ा, आकार, विभ्रम तथा है। वह सौख्यसंपत्तिकारिणी तथा प्रत्यपायों से बचाने वाली होती अनेक प्रकार के आलाप होते हैं, वैसे तिर्यंच-स्त्रियों में नहीं होते। है, अतः दुःखमोच्या है। (फिर भी मनुष्य इतना कामी है कि वह तिर्यंच-स्त्रियों के साथ भी मैथुन सेवन की प्रवृत्ति करता है।) ८. तिर्यंचस्त्री के प्रकार अइय अमिला जहन्ना, खरि महिसी मज्झिमा वलवमादी। ० तिर्यंच में मैथुन संज्ञा : सिंहनी दृष्टांत गोणि करेणुक्कोसा, पगयं सजितेतरे देहे॥ जइ ता सणप्फईसुं, मेहुणभावं तु पावए पुरिसो। अमिलाई उभयसुहा, अरहण्णगमाइमक्कडि दुमोया। __ जीवियदोच्चा जहियं, किं पुण सेसासु जाईसु॥ गोणाइ तइयभंगे, उभयदुहा सीहि-वग्घीओ॥ एक्का सीही रिउकाले मेहुणत्थी सजाइपुरिसं अलभ. (बृभा २५३५, २५४५) माणी सत्थे वहंते इक्कं पुरिसं घित्तुं गुहं पविट्ठा चाटुं काउ माढत्ता। सा य तेण पडिसेविता। तत्थ तेसिं दोण्ह वि तिर्यंचस्त्री के तीन प्रकार हैं-१. जघन्य-बकरी, भेड़ संसाराणुभावतो अणुरागो जातो। गुहापडियस्स तस्स सा आदि। २. मध्यम-गर्दभी, महिषी, वडवा आदि। ३. उत्कृष्ट दिणे दिणे पोग्गलं आणेउं देइ। सो वि तं पडिसेवइ। गौ, हथिनी आदि। (बृभा २५४६) यहां सजीव और अजीव देहयुत का प्रसंग है। देहयुत तिर्यंचस्त्री रूप के चार प्रकार हैं जिसके साथ रहने में प्राणों को भी खतरा है, उस सनखपदी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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