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________________ आगम विषय कोश-२ ३९५ प्रायश्चित्त * प्रायश्चित्तसूत्रों का परिमाण द्र छेदसूत्र १५. स्थविरकल्पी : अनाचारजन्य तप प्रायश्चित्त * सापेक्ष-निरपेक्ष के प्रायश्चित्त में अंतर द्र स्थविरकल्प ० अतिक्रम चतुष्क : मासगुरु आदि ० सूक्ष्म-बादर प्रायश्चित्त ० विषयराग से गुरु प्रायश्चित्त * प्रथम पांच शबल : गुरु प्रायश्चित्त द्र चारित्र १६. राग-द्वेष की वृद्धि से प्रायश्चित्त-वृद्धि १७. प्रायश्चित्तवृद्धि के प्रकार : स्वस्थान-परस्थान ० स्थान के आधार पर प्रायश्चित्तवृद्धि १८. मासलघु आदि : प्रतीकाक्षर १९. प्रायश्चित्त व्यवहार के चार प्रकार ० पृथ्वीकायविराधना और प्रायश्चित्त २०. प्रायश्चित्त (व्यवहार): गुरु-लघु-लघुस्वक २१. प्रायश्चित्त के भेद : प्रतिसेवना आदि ___ * प्रतिसेवना का स्वरूप द्र प्रतिसेवना २२. संयोजना प्रायश्चित्त २३. आरोपणा प्रायश्चित्त : स्वरूप और प्रकार ० स्थापना-आरोपणा क्या? क्यों? ० आरोपणा छह मास की क्यों? धान्यपिटक दृष्टांत विषम प्रायश्चित्त : तुल्य विशोधि ० शासनभेद और उत्कृष्ट प्रायश्चित्त ० उत्कृष्ट प्रायश्चित्त : जीत व्यवहार ० गीतार्थ के प्रायश्चित्त में स्थापना-आरोपणा नहीं ० वणिक्-मरुक और निधि दृष्टांत ० कृत्स्न आरोपणा के छह प्रकार ० अनुग्रह कृत्स्न और निरनुग्रह कृत्स्न प्रायश्चित्त ० दुर्बल को प्रायश्चित्त कम क्यों? २४. प्रतिकुंचना प्रायश्चित्त | ० ऋजुता से आलोचना : न्यून प्रायश्चित्त २५. प्रायश्चित्तदान के अधिकारी ___ *."प्रायश्चित्तदान की समानता द्र व्यवहार * आज्ञा-व्यवहार : गूढपदों में प्रायश्चित्त द्र प्रतिसेवना २६. दोष स्वीकृति के बिना प्रायश्चित्त नहीं २७. दोषों के एकत्व के हेतु * आगमव्यवहारी : आलोचना श्रवण... द्र आलोचना ० जिन : घृतकुट दृष्टांत । पूर्वधर : नालिका दृष्टांत २८. प्रायश्चित्त में नानात्व और विशोधि : घट-पट दृष्टांत |२९. न्यूनाधिक प्रायश्चित्त : रत्नवणिक् दृष्टांत ३०. सदृश अपराध में विसदृश दंड : कुमार दृष्टांत ३१. पुरुषभेद से प्रायश्चित्त में भेद |३२. प्रायश्चित्तवाहक के प्रकार : कृतकरण आदि ० निर्गत-वर्तमान, आत्मतरक-परतरक ३३. छोटी त्रुटि की उपेक्षा : सारणि आदि दृष्टांत ___* प्रमादनिवारण हेतु सारणा-वारणा द्र आचार्य ३४. अप्रमत्त भी प्रायश्चित्तभागी ३५. निग्रंथ-संयत : कितने प्रायश्चित्त? ३६. कर्मबंध हेतुक प्रवृत्ति और प्रायश्चित्त ३७. पूर्व-उत्तर प्रायश्चित्त, उपस्थापना आदि में अंतर ३८. प्रायश्चित्त का प्रयोजन : चारित्र संरक्षण आदि ३९. अपराध रोग : प्रायश्चित्त औषध ४०. सापेक्ष-निरपेक्ष प्रायश्चित्त से तीर्थ-अव्यवच्छित्ति ४१. कल्याणक प्रायश्चित्त के सापेक्ष विकल्प * कल्याणक प्रायश्चित्त की द्विरूपता द्र कल्याणक ४२. प्रायश्चित्त एवं चारित्र कब तक? ० वर्धकिरत्न और धनिक दृष्टांत *उत्सारण और प्रायश्चित्त द्र उत्सारकल्प * क्षिप्तचित्त : प्रायश्चित्त संबंधी आदेश द्रचित्तचिकित्सा * दिशापहार का प्रायश्चित्त द्र दिग्बंध * अशुभ संकल्पमात्र से प्रायश्चित्त द्र प्रतिमा * अविधि से सूत्रग्रहण और प्रायश्चित्त द्रवाचना * असामाचारीनिष्पन्न प्रायश्चित्त द्र सामाचारी १. प्रायश्चित्त के निर्वचन, एकार्थक पावं छिंदति जम्हा, पायच्छित्तं तु भण्णते तेण। पाएण वा वि चित्तं, विसोहए तेण पच्छित्तं ॥ (व्यभा ३५) जिससे संचित पापकर्म नष्ट होता है, वह प्रायश्चित्त है। जो चित्त का प्रायः विशोधन करता है, वह प्रायश्चित्त है। (प्रायो नाम तपः प्रोक्तं, चित्तं निश्चय उच्यते। तपो निश्चयसंयोगात्, प्रायश्चित्तमितीर्यते ॥-आप्टे 'प्रायः' तपस्या का वाचक तथा 'चित्त' निश्चय अर्थात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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