SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम विषय कोश-२ ३७५ प्रतिमा मति-मेधा आदि की हानि हो रही है-इस स्थिति को जानकर कालिक-उत्कालिक-श्रुत और आवश्यक आदि से प्रतिबद्ध नियुक्तियों के आदान-प्रदान में पुस्तकें भाण्डागार की भांति सारभूत होंगी-इस प्रयोजन से पुस्तक-पंचक का ग्रहण किया जाता है। पूतिकर्म-आधाकर्म से मिश्रित आहार आदि । उद्गम का एक दोष। द्र पिण्डैषणा पूर्वगत-दृष्टिवाद का अन्तरालवर्ती ग्रन्थ-समूह। द्र आगम प्रग्रहस्थान-धर्मसंघमान्य पद। लोकमान्य पद। द्र राज्य प्रतिक्रमण-प्रमादवश परस्थान (असंयम) में चले जाने पर पुनः स्वस्थान (संयम) में आना। क्षायोपशमिक भाव से औदयिक भाव में चले जाने पर पुनः क्षायोपशमिक भाव में लौट आना। प्रायश्चित्त का एक भेद। द्र प्रायश्चित्त प्रतिमा-साधना का विशिष्ट प्रयोग। अभिग्रह । प्रतिज्ञा। १. प्रतिमा का अर्थ एवं प्रकार ० समाधिप्रतिमा के इकहत्तर भेद ० उपधान, विवेक आदि प्रतिमाओं के प्रकार २. एकलविहार-प्रतिमा-प्रतिपत्ति से पूर्व ० प्रतिमा-प्रतिपत्ता की अर्हता ० पांच भावनाओं द्वारा परिकर्म ० अपरिकर्मित अयोग्य : शावक दृष्टांत ० अव्यक्त मुनि : अक्षिप्रत्यारोपण दृष्टांत ० अशुभ संकल्पमात्र से प्रायश्चित्त ० प्रतिमाप्रतिपत्ता का पर्याय-श्रुत-संहनन ० एकलविहारप्रतिमा की अनुज्ञा-याचना ० प्रतिमाप्रतिपत्ता का आचार्य द्वारा परीक्षण ० प्रतिमाप्रतिपत्ति की विधि ० एकलविहारप्रतिमा और चारित्र ० प्रतिमा-साधना : पिंडैषणा, उपधि" ० प्रतिमा-समापनविधि : ससम्मान गण-प्रवेश ३. चन्द्रप्रतिमा के प्रकार ० यवमध्य-वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा का स्वरूप ० चन्द्रप्रतिमा-प्रतिपत्ता की अर्हता ___० चन्द्रप्रतिमाप्रतिपन्न उपसर्ग-परीषहजयी ० आहारग्रहण-विधि ४. सप्तसप्तमिका आदि भिक्षुप्रतिमाएं ० सप्तसप्तमिका : दत्तिप्रमाण में सिंहविक्रम-उपमा ० दत्ति परिमाण की करण गाथा, दत्ति-स्वरूप ५. मोकप्रतिमा के प्रकार । ० मोकप्रतिमाप्रतिपत्ति की विधि ० मोक ( पेय प्रस्त्रवण) का स्वरूप ० मोकप्रतिमा की द्रव्य आदि से मार्गणा ० मोकप्रतिमा और संहनन ० मोकप्रतिमासिद्धि की निष्पत्ति ० मोकप्रतिमा पूर्ण होने पर आहारविधि ६. भद्रा-महाभद्रा-प्रतिमा * बारह भिक्षुप्रतिमा द्र भिक्षुप्रतिमा * ग्यारह उपासक प्रतिमा द्र उपासकप्रतिमा * द्रव्य आदि संबंधी अभिग्रह द्र भिक्षाचर्या * जिनकल्पी प्रतिमा द्र जिनकल्प प्रतिमा का अर्थ एवं प्रकार प्रतिपत्तिः प्रतिमाणं वा पडिमा। (दशा ६/८ की चू) प्रतिमाभिः अभिग्रहविशेषभूताभिः। ___ (आचूला २/६२ की वृ) प्रतिमा का अर्थ है-प्रतिपत्ति , प्रतिमान अथवा अभिग्रह। (० प्रतिमा-एकरात्रिकी आदि प्रतिमाओं में प्रतिमा की भांति कायोत्सर्ग की मुद्रा में स्थित रहना।-स्था ५/४२ की वृ ० द्रव्य, क्षेत्र आदि द्वारा जिस साधना के प्रकार का प्रतिमान किया जाता है, उसे प्रतिमा कहा जाता है।-जैसिदी ६/२५) समाधिओवहाणे य, विवेगपडिमाइया। पडिसंलीणा य तहा, एगविहारे य पंचमिया॥ (दशानि ४६) प्रतिमा के पांच प्रकार हैं-१. समाधिप्रतिमा-श्रुत-स्वाध्याय का विशेष संकल्प तथा समता का विशेष अभ्यास करना। २. उपधानप्रतिमा--तप का विशेष प्रयोग करना। ३. विवेकप्रतिमा-इस प्रतिमा के अभ्यासकाल में आत्मा और अनात्मा की भिन्नता का अनुचिंतन किया जाता है। ४. प्रतिसंलीनताप्रतिमा-वृत्ति को अन्तर्मुखी बनाने का अभ्यास। ५. एकलविहारप्रतिमा-साधना का विशेष प्रयोग-एकाकीविहार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy