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________________ ४० ग्रंथ परिचय अक्षर २७७४८ हैं। कल्प और व्यवहार दोनों प्रायश्चित्त सूत्र हैं। कल्प में प्रायश्चित्त विधि और व्यवहार में प्रायश्चित्तदान विधि तथा आलोचना विधि प्रज्ञप्त है। व्याख्या ग्रंथ ० व्यवहारनियुक्तिभाष्य-बृहत्कल्प की भांति इसकी नियुक्ति भी भाष्यमिश्रित ही मिलती है। नियुक्तिभाष्य में व्यवहार, आलोचना, प्रतिसेवना, प्रायश्चित्त, विहार आदि सैकड़ों विषय विवेचित हैं। आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत-इन पांच व्यवहारों और व्यवहारप्रयोत्ताओं का लगभग पांच सौ पचीस (४०२८-४५५३) गाथाओं में विशदता से व्याख्यान किया गया है। क्षेत्र के आधार पर मनोरचना के कुछ निदर्शन द्रष्टव्य हैं मगध देशवासी इंगित और आकार से, कौशल के वासी प्रेक्षामात्र से, पांचाल के लोग आधी बात कहने पर तथा दक्षिणवासी पूरी बात कहने पर ही अभिप्राय को समझ पाते थे। धर्म, राजनीति आदि के संदर्भ में कुछ ऐतिहासिक तथ्य ज्ञातव्य हैं• चाणक्य ने नंदवंश का समल उच्छेद किया। - आर्यरक्षित अंतिम आगमव्यवहारी थे। • लोहार्य मुनि भगवान महावीर के लिए भिक्षा लाते थे। - चेटक एवं कोणिक के मध्य महाशिलाकंटक और रथमुसल संग्राम हुए। ० वृत्ति-व्यवहारसूत्र एवं नियुक्तिभाष्य पर आचार्य मलयगिरि ने विशद वृत्ति लिखी। प्रारंभ में श्लोकचतुष्टयी के माध्यम से देव (अर्हत् अरिष्टनेमि) और गुरु को प्रणमन करते हुए उन्होंने लिखा है-'जिन्होंने व्यवहार को विषमपदविवरण के द्वारा व्यवहर्त्तव्य बनाया है, उन चूर्णिकार को नमस्कार करता हूं। कहां तो यह गहन-गंभीर भाष्य और कहां मेरी अल्प बुद्धि ? फिर भी मैं गुरुप्रसाद से व्यवहार का विवरण लिखने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हूं।' व्यवहारचूर्णि अप्रकाशित है। वृत्तिकार ने कुछ स्थलों में चूर्णि के अंश उद्धृत किए हैं। कायोत्सर्ग के प्रसंग में वे लिखते हैं-स्वाध्यायकाल-प्रस्थापनाकरण में आठ उच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करणीय है। पानकपरिष्ठापन करके भी ऐर्यापथिक प्रतिक्रमण के पश्चात् आठ उच्छ्वास प्रमाण कायोत्सर्ग करना चाहिए-यह तथ्य मैंने व्यवहारचूर्णि को देखकर लिखा है। वृत्तिकार ने सूत्रगत और भाष्यगत प्रत्येक शब्द का विशद अर्थ बताकर अपेक्षानुसार विस्तृत विवेचन भी किया है। विषय की सुबोधता के लिए शताधिक प्राकृत कथानक और प्राकृत-संस्कृत के श्लोक उद्धृत किए हैं। निरुक्त, देशी शब्द और पर्यायवाची शब्दों के प्रचुर प्रयोगों से विद्यार्थी के शब्दकोश को समृद्ध बनाया है। शास्त्रगुणदीपन और भावप्रकर्ष तथा शिष्यानुग्रह हेतु प्रयुक्त एकार्थक शब्दों के कुछ प्रयोग पठनीय हैं- कर्म-कम्मं ति वा खुहं ति वा कलुसं ति वा वज्जं ति वा वेरं ति वा पंको त्ति वा मलो त्ति वा एगट्ठिया। - ऋतुमास-उउमासो कम्ममासो सावणमासो। - मेढि-मेढिरिति वा आधार इति वा चक्षुरिति वा एकार्थाः। मूलस्पर्शी अर्थाभिव्यक्ति, पारिभाषिक शब्दों की महनीय परिभाषाएं, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक तत्त्वों का समाकलन, प्रायश्चित्तदान की विभिन्न परम्पराओं का उल्लेख, व्यवहार संबंधी अनेक रहस्यों का उद्घाटन-इन सब तथ्यों से समृद्ध इस वृत्ति का ग्रंथमान ३४६२५ श्लोकप्रमाण है। १. प्रस्तुत कोश (छेदसूत्र) ४. व्यभा ११४ की वृ २. व्यभा ४०२० ५. वही, १९४, १९८ तथा २५८२ की वृ ३. वही, ७१६,२३६५, २६७१, ४३६३-४३६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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