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________________ पिण्डैषणा ० बहुलेप- दूध, दही, क्षीरपेया, कट्टर (कढी में डाला हुआ घी का बड़ा), फाणित आदि । - पिनि ६२३ - ६२५ लेपकृत पानक- इक्षुरस, द्राक्षापानक, दाडिमपानक आदि । अलेपकृत पानक-तिलोदक, तुषोदक, यवोदक, कांजी, ओसामन, गर्म जल, चावलों का धोवन आदि । - आचूला १/१०४, १५१ ) ० उपहृत- अवगृहीत-प्रतिमा तिविहे उवहडे पण्णत्ते, तं जहा - सुद्धोवहडे फलिओवहडे संसट्टोवहडे ॥ तिविहे गहिए पण्णत्ते, तं जहाजं च ओगिण्हइ, जंच साहरइ, जंच आसगंसि पक्खिवइ ॥ (व्य ९/४४, ४५ ) उपहृत भोजन तीन प्रकार का होता है १. शुद्धोपहृत - खाने के लिए साथ में लाया हुआ लेप रहित भोजन - अल्पलेपा नाम की चौथी पिण्डैषणा । o २. फलिकोपहृत - खाने के लिए थाली आदि में परोसा हुआ भोजन - अवगृहीता नाम की पांचवीं पिण्डैषणा । ३. संसृष्टोपहृत-खाने के लिए हाथ में उठाया हुआ भोजन । अवगृहीत भोजन तीन प्रकार का होता है- १. परोसने के लिए उठाया हुआ, २ . परोसा हुआ, ३. पुनः पाकपात्र में डाला हुआ । (उपहृत - अवगृहीत- ये अभिग्रहधारियों की भिक्षाविधि प्रकार हैं । कोई अभिग्रहधारी उठाया हुआ लेता है, कोई परोसा हुआ लेता है और कोई पुनः पाकपात्र में डाला हुआ लेता है ।) * पिण्डैषणाप्रतिमा : भिक्षाचरी का अंग द्र श्रीआको १ भिक्षाचर्या ३. एषणा (उद्गम ) के दोष : औद्देशिक, क्रीत...... सेभिक्खू जाणेज्जा - असणं वा पाणं वा अस्सिपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स, पाणाइं भूयाई जीवाई सत्ताइं समारम्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अणिसट्टं अ आ इ । तं तहप्पगारं असणं वा... पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया णीहडं वा अणीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अणासेवियं वा - अफासुयं अणेसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा ॥ (आचूला १/१२) भिक्षु (गृहपति के घर में प्रवेश कर) जाने - यह अशनपान खाद्य-स्वाद्य देने की प्रतिज्ञा से मेरे एक साधर्मिक के उद्देश्य ३६४ Jain Education International आगम विषय कोश - २ प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का समारम्भ कर, उन्हें पीड़ित कर किया गया है अथवा उसी के उद्देश्य से खरीदा गया, उधार लिया गया, छीना गया, भागीदार द्वारा अननुमत, सामने लाया गया अथवा साधु के पास आकर देता है - इस प्रकार का अशन-पान पुरुषान्तरकृत हो या अपुरुषान्तरकृत, ( पात्र से) बाहर निकाला हुआ हो या नहीं निकाला हुआ, (दाता के द्वारा ) स्वीकृत हो या अस्वीकृत, परिभुक्त हो या अपरिभुक्त, आसेवित हो या अनासेवित — उसे अप्रासुक और अकल्पनीय मानता हुआ मिलने पर ग्रहण न करे । - ४. औद्देशिक के भेद-प्रभेद: यावन्तिका, उद्देश...... जावंतिया पगणिया ........... आचंडाला पढमा, बितिया पासंड- जाति - णामेसु ॥ जावंतियमुद्देसो, पासंडाणं भवे समुद्देसो । समणाण तु आदेसो, निग्गंथाणं समादेसो ॥ ( निभा १४७२, १४७३, २०२० ) औद्देशिकं द्विविधम् - ओघेन विभागेन च; तत्र विभागतो द्वादशविधम्, तद्यथा - उद्दिष्टं कृतं कर्म च उद्दिष्टं चतुर्विधम् – औद्देशिकं समुद्देशिकमादेशिकं समादेशिकं च; कृतमपि चतुर्विधम्, तद्यथा - उद्देशकृतं समुद्देशकृतमादेशकृतं समादेशकृतं च; कर्मापि चतुःप्रकारम्, तद्यथा - उद्देशकर्म समुद्देशकर्म आदेशकर्म समादेशकर्म च । (बृभा ५३३ की वृ) यावन्तिका -कार्पटिक आदि से लेकर चंडाल पर्यन्त समस्त भिक्षुओं उद्देश्य से बना हुआ भोजन । प्रगणिता - शाक्य, परिव्राजक आदि की जाति या नाम से गणना करके दी जाने वाली भिक्षा। शिक के दो प्रकार हैं १. ओघ - समुच्चय रूप में देने के लिए बनाया गया भोजन । २. विभाग - श्रमण, माहण आदि का विभाग करके पकाया गया भोजन। उद्दिष्ट, कृत और कर्म के भेद से विभाग औद्देशिक के बारह प्रकार हैं उद्दिष्ट के चार प्रकार - -औद्देशिक, समुद्देशिक, आदेशिक, समादेशिक । कृत के चार प्रकार हैं- उद्देशकृत, समुद्देशकृत, आदेशकृत, समादेशकृत । कर्म के चार प्रकार हैं- उद्देशकर्म, समुद्देशकर्म, आदेशकर्म, समादेशकर्म । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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