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________________ पिण्डैषणा ३६२ आगम विषय कोश-२ वाले साधुओं द्वारा परित्यक्त है--परस्पर आलाप-संलाप आदि पदों द्वारा परिहरणीय है। (द्र परिहारतप) पारिहारिककुल-स्थापनाकुल। गुरु-गिलाण-बाल-वुड्ड-आदेसमादियाण जत्थ पाउग्गं लभति ते परिहारियकुले। (निभा २७७७ की चू) जहां गुरु, ग्लान, बाल, वृद्ध, अतिथि आदि के प्रायोग्य द्रव्य प्राप्त हों, वह पारिहारिक कुल है।( द्र स्थापनाकुल) पार्श्व-तेईसवें अर्हत्। द्र तीर्थंकर पार्श्वस्थ-वह मुनि जो दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप में सम्यक् प्रयत्नवान् नहीं है। द्र श्रमण पिण्डैषणा-कल्पनीय आहार की गवेषणा, ग्रहण और परिभोग का उपक्रम। | १. पिण्डकल्पिक कौन? २. पिण्डैषणा-पानैषणा-प्रतिमा ० उपहृत-अवगृहीत-प्रतिमा * विविध पानक द्र पर्युषणाकल्प * जिनकल्पी और पिण्डैषणा द्र जिनकल्प ३. एषणा ( उद्गम) के दोष : औद्देशिक, क्रीत" ४. औद्देशिक के भेद-प्रभेद : यावंतिका, उद्देश..... ___ * स्थित-अस्थितकल्प : औद्देशिक-राजपिंड द्रकल्पस्थिति ५. आधाकर्मिक आहार-निषेध ६. चार उपाश्रय : ग्राह्य-अग्राह्य आधाकर्म ७. उद्गम का एक दोष : पूतिकर्म ० पूतिदोष के भेद : आहार-उपधि-शय्या ० स्थापित और रचित दोष ८. उत्पादन के दोष : धात्रीपिंड"अंतर्धानपिंड ___ * अंतर्धानपिंड आदि के दृष्टांत द्र मंत्र-विद्या ९. पूर्वसंस्तव-पश्चात्संस्तव-निषेध १०. एषणा का एक दोष : शंकित ११. पुराकर्मकृत दोष । ० संसृष्ट के अठारह प्रकार : पुराकर्म आदि १२. नित्यपिंड और अभिहतपिंड का वर्जन ० अभिहत और नियतपिंड ० नित्य अग्रपिण्ड वर्जित १३. कालातिक्रांत-क्षेत्रातिक्रांत आहार-निषेध ० कालातिक्रांत : जिनकल्पी-स्थविरकल्पी * आज्ञापूर्वक भिक्षाटन द्र आज्ञा __ * दूर भिक्षा के लाभ द्र स्थविरकल्प |१४. भिक्षागमन-विधि __ * वर्षा आदि में भिक्षाटन निषिद्ध द्र स्थविरकल्प | |१५. गमनमार्ग, अवस्थान और याचनाविधि | १६. पूर्व-पश्चात्-संस्तुत : भिक्षाकाल में भिक्षा, * स्थाप्य कुल : आहार-ग्रहण सामाचारी द्र स्थापनाकुल १७. अगर्हित कुलों से भिक्षा * शय्यातरपिंड निषिद्ध द्र शय्यातर १८. दानफल बताकर लेना निषिद्ध : सप्तविध दानविधि १९. इन्द्रमह, मृत्युभोज आदि में भिक्षा अग्राह्य २०. सचित्त लशुन आदि अकल्पनीय २१. प्राप्त भिक्षाविषयक पृच्छा ____ * परिभोगैषणा विवेक, आहारविधि द्र आहार २२. अतिरिक्त आहार-ग्रहण संबंधी निर्देश २३. अचित्त-अनेषणीय संबंधी विधि २४. अप्रासुक आहार-परिष्ठापन विधि २५. कसैले पानक के परिष्ठापन का निषेध २६. सचित्त जल-व्युत्सर्ग विधि १. पिण्डकल्पिक कौन? पढिए य कहिय अहिगय, परिहरती पिंडकप्पितो एसो। तिविहं तीहिं विसुद्धं, परिहरनवगेण भेदेणं॥ पिण्डैषणाध्ययने पठिते तस्यार्थे कथिते तेन चाधिगते ....."सम्यक् श्रद्धिते च यः 'त्रिविधम्' उद्गमशुद्धमुत्पादनाशुद्धमेषणाशुद्धं “एष पिण्डकल्पिकः। (बृभा ५३२ वृ) जो पिण्डैषणा अध्ययन (आचारचूला का प्रथम अध्ययन अथवा दशवैकालिक का पांचवां अध्ययन) पढ़ लेता है, गुरु द्वारा कथित उसके अर्थ का अवधारण कर उस पर श्रद्धा करता है, मनवचन-काया से विशुद्ध रहकर, उद्गम, उत्पादन और एषणा से शुद्ध कल्पनीय आहार ग्रहण करता है, मनसा-वाचा-कर्मणा और कृत-कारित-अनुमति-इन परिहरणीय नौ भेदों से अग्राह्य को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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