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________________ पर्युषणकल्प एत्थ य अणभिग्गहियं, वीसतिरायं सवीसगं मासं । तेण परमभिग्गहियं गिहिणायं कत्तिओ जाव ॥ असिवाइकारणेहिं, अहवण वासं ण सुट्टु आरद्धं । अभिवड्डियम्मि वीसा, इयरेसु सवीसती मासे ॥ एत्थ उ पणगं पणगं, कारणिगं जा सवीसती मासो । सुद्धदसमीठियाण व, आसाढीपुण्णिमोसरणं ॥ (बृभा ४२८० - ४२८४) ''सवीसतिराते मासे पुण्णे जति वासखेत्तं ण लब्भति तो रुक्खट्ठा विपज्जोसवेयव्वं । तं च पुण्णिमाए पंचमीए दसमीए एवमादिपव्वेसुणो अपव्वेसु । (निभा ३१५३ की चू) वर्षावासक्षेत्र में आषाढी पूर्णिमा को प्रवेश कर कार्तिक पूर्णिमा तक रहकर, वहां से निर्गमन करना चाहिए। वर्षा आदि कारणों से मिगसर कृष्णा दसमी तक भी वहां रहा जा सकता है। श्रावण की पंचमी को वर्षाकाल की सामाचारी की स्थापना की जाती है, परन्तु वह स्थान अनवधारित ही रखा जाता है। यदि गृहस्थ पूछे कि क्या आप यहां वर्षावास के लिए स्थित हो गए ? मुनि निश्चयपूर्वक कुछ न कहे । यदि अभिवर्धित संवत्सर हो तो बीस दिन-रात तक तथा चान्द्र संवत्सर हो तो एक मास बीस दिन-रात तक यह अनिश्चितता रह सकती है। इस अवधि के पश्चात् स्थिति की निश्चितता कर देनी चाहिए। गृहस्थों को भी कह देना चाहिए कि हम यहां वर्षावास के लिए स्थित हैं। वर्षावास स्थिति की निश्चितता में इतना लंबा कालक्षेप क्यों ? आचार्य कहते हैं- महामारी, राजद्वेष आदि कारणों से अथवा अच्छी वर्षा के अभाव में धान्यनिष्पत्ति न होने पर मुनियों को अन्यत्र जाना पड़ता है, तब लोगों में अपवाद होता है। इन सबसे बचने के लिए कालक्षेप आवश्यक होता है। इस प्रकार पांच-पांच दिन-रात बढ़ाते-बढ़ाते एक मास और बीस दिन-रात के पश्चात् भी यदि वर्षावास योग्य क्षेत्र प्राप्त न हो तो भाद्रपद शुक्ला पंचमी को वृक्ष के नीचे ही पर्युषण कर लेना चाहिये । आषाढ शुक्ला दशमी को वर्षाक्षेत्र में प्रवेश कर लेने पर आषाढी पूर्णिमा को पर्युषण करना चाहिये। पर्युषण (वर्षावास में अवस्थान) पूर्णिमा, पंचमी, दशमी और अमावस्या - इन पर्वतिथियों में करना चाहिये, अपर्वतिथि में नहीं । Jain Education International आगम विषय कोश- २ .....समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसइराए मासे विइक्कंते वासावासं पज्जोसवेइ ॥ (दशा ८ परि सू २२३) श्रमण भगवान महावीर वर्षाऋतु के पचास दिन बीत जाने पर वर्षावास के लिए पर्युषित (स्थित) हुए। (वर्षावास में मुनि पचास दिन तक उपयुक्त वसति की गवेषणा के लिए इधर-उधर आ-जा सकता है। किन्तु भाद्रपद शुक्ला पंचमी के दिन उसे जो स्थान प्राप्त हो, उसी में स्थित होना पड़ता है। इसे पर्युषणा कहते हैं। यदि कोई स्थान न मिले तो वृक्ष के नीचे ही उसे स्थित हो जाना चाहिए। -- सम ७० / १ की वृ) ० द्रव्य आदि की स्थापना ३४४ सचित्ते सेहो ण पव्वाविज्जति, अचित्ते वत्थादि ण घेप्पति । खेत्तठवणा सकोसजोयणं । कालट्ठवणा चत्तारि मासा, यच्च तस्मिन् कल्प्यं । भावठवणा कोहादिविवेगो भासासमितिजुत्तेण य होतव्यं । (दशानि ५५-५६ की चू) द्रव्य आदि के विधि-निषेध की स्थापना की जाती हैसचित्त द्रव्य स्थापना- -पर्युषण में किसी को दीक्षा नहीं देना । अचित्त द्रव्य स्थापना - वस्त्र आदि ग्रहण नहीं करना । क्षेत्र स्थापना - भिक्षा हेतु पांच कोश तक जाना-आना । काल स्थापना - चार मास और उस काल में जो कल्पनीय है । भाव स्थापना - क्रोध आदि कषायों का विवेक और भाषासमिति आदि के प्रति विशेष जागरूकता । मोत्तुं पुराण- भावितसड्ढे, संविग्ग मा होहिति निद्धम्मो, भोयण मोए सेसपडिसेहो । य उड्डाहो ॥ (दशानि ८७) परम्परा से पुराना (जिसको पहले दीक्षा दी जा चुकी हो), श्रद्धा से ओत प्रोत तथा वैरागी व्यक्ति को छोड़कर शेष व्यक्तियों को चातुर्मास में प्रव्रजित करने का निषेध है । उनको प्रव्रजित करने पर वे धर्मशून्य अर्थात् वर्षा आदि में जाने-आने में शंकाशील हो सकते हैं तथा मंडली में भोजन करने, मात्रक प्रस्रवण आदि करने पर उनके के मन में उड्डाह - प्रवचन के प्रति तिरस्कार का भाव पैदा हो सकता है। ३. वर्षावासक्षेत्र की अनुज्ञापना और प्रवेश खेत्ताण अणुण्णवणा, जेट्ठामूलस्स सुद्धपाडिवए ।" " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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