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________________ आगम विषय कोश-२ ३१५ ध्यान जीव, पुद्गल, समय, द्रव्य, प्रदेश और पर्याय-यह कायिकं नाम यत् कायव्यापारेण व्याक्षेपान्तरं एक षट्क है। इस षट्क में जीव सबसे अल्प हैं। पुद्गल परिहरन्नुपयुक्तो भंगकचारणिकां करोति, कूर्मवद्वा संलीजीवों से अनंतगुना अधिक हैं। समय पुद्गलों से अनंतगुना नांगोपांगस्तिष्ठति। वाचिकं तु मयेदृशी निरवद्या भाषा हैं। द्रव्य समयों से विशेषाधिक हैं। प्रदेश द्रव्यों से अनंतगुना भाषितव्या, नेदृशी सावद्या इति विमर्शपुरस्सरं यद् भाषते, हैं। पर्याय प्रदेशों से अनंतगुना हैं। यद्वा विकथादिव्युदासेन श्रुतपरावर्तनादिकमुपयुक्तः करोति धारणा-निर्णयात्मक ज्ञान की अविच्युति । मतिज्ञान तद्द्वाचिकम्।मानसं त्वेकस्मिन् वस्तुनि चित्तस्यैकाग्रता। __ (बृभा १६४२ वृ) का एक भेद। द्र गणिसम्पदा ध्यान के तीन प्रकार हैंधारणा व्यवहार-आचार्य के द्वारा प्रायश्चित्त आदि १. कायिक ध्यान-अन्य व्याक्षेपों का परिहार करते हुए एकाग्रता के लिए प्रयुक्त विधि को याद रखकर वैसी परिस्थिति से कायिक व्यापार (अंगुलि आदि) द्वारा विकल्प रचना करना। में उस विधि का प्रयोग करना। द्र व्यवहार अथवा कछुए की भांति अंग-उपांगों को निश्चल रखना। ध्यान-चित्त की एकाग्रता। योगनिरोध। २. वाचिक ध्यान-मुझे इस प्रकार निरवद्य भाषा ही बोलनी चाहिए, सावध भाषा नहीं-इस प्रकार विमर्शपूर्वक बोलना १. ध्यान क्या है? अथवा विकथा आदि से रहित श्रुतपरावर्तन में उपयुक्त होना। २. ध्यान के प्रकार : कायिक आदि ३. मानसिक ध्यान-आलम्बनभूत वस्तु में चित्त की स्थिरता। __ * कायोत्सर्ग : कौन-सा ध्यान द्र कायोत्सर्ग ___ जिस प्रकार सिंह की गति तीन प्रकार की होती है-मंद, ३. महाप्राणध्यान का काल प्लुत और द्रुत, वैसे ही त्रिविध ध्यान के तीन-तीन प्रकार हैं० महापान की व्युत्पत्ति * महाप्राणध्यान से विशिष्ट उपलब्धि द्र आचार्य मृदु (मंद), मध्य और तीव्र। * एकरात्रिकी अनिमेष-प्रेक्षा द्र भिक्षुप्रतिमा ३. महाप्राण ध्यान का काल * जिनकल्पी में ध्यान द्र जिनकल्प बारसवासा भरधाधिवस्स, छच्चेव वासुदेवाणं । ४. ध्यान और चिन्ता में अन्तर तिण्णि य मंडलियस्सा, छम्मासा पागयजणस्स॥ ० ध्यानान्तरिका (व्यभा २७०१) ० ध्यानकोष्ठक महाप्राणध्यान की साधना का उत्कृष्ट काल बारह | ५. चंचलता का हेतु : मोह का उदय वर्ष का है। भरतक्षेत्र के अधिपति (चक्रवर्ती) ऐसा कर १. ध्यान क्या है? सकते हैं। वासुदेव-बलदेव के वह काल छह वर्ष का, .."अज्झवसाओ उ दढो, झाणं असुभो सुभो वा वि॥ मांडलिक राजाओं के तीन वर्ष का और सामान्य लोगों के (बृभा १६४०) छह मास का होता है। दृढ़ (निश्चल) अध्यवसाय ध्यान है। वह शुभ और । और महापान की व्युत्पत्ति अशुभ दोनों प्रकार का होता है। इय पुव्वगताधीते, बाहु सनामेव तं मिणे पच्छा। * ध्यान के चार प्रकार आदि द्र श्रीआको १ ध्यान पियति त्ति व अत्थपदे, मिणति त्ति व दो वि अविरुद्धा॥ २. ध्यान के प्रकार : कायिक आदि पिबति अर्थपदानि यत्रस्थितस्तत्पानं, महच्च तत्पानं कायादि तिहिक्किक्कं, चित्तं तिव्व मउयं च मझंच। च महापानम्। (व्यभा २७०३ वृ) जह सीहस्स गतीओ, मंदा य पुता दुया चेव॥ जिस ध्यान में पूर्वगत श्रुत के अर्थपदों का पान/ज्ञान/मनन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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