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________________ आगम विषय कोश - २ वामन, वडभ (शरीर का आगे या पीछे का भाग उभरा हुआ हो), कुब्ज, पंगु, हाथ से विकल, एकाक्ष आदि । १४. गच्छनिर्गत मुनि के संवेगप्राप्ति के स्थान तिद्वाणे संवेगे, सावेक्खों निवत्त तद्दिवससुद्धो ।" अज्जेव पाडिपुच्छं, को दाहिति संकियस्स मे उभए । दंसणे कं उववूहे, किं थिरकरे कस्स वच्छल्लं ॥ सारेहिति सीदंतं, चरणे सोहिं च काहिती को मे । एव नियत्तऽणुलोमं, काउं उवहिं च तं देंती ॥ (व्यभा ३६५२-३६५४) अविधि से गच्छनिर्गत मुनि के संवेगप्राप्ति के तीन स्थान हैं - ज्ञान, दर्शन और चारित्र । ज्ञान -- वह सोचता है- आज ही सूत्र - अर्थ में शंकित होने पर मुझे कौन समाधान देगा ? दर्शन - मैं किसका उपबृंहण करूंगा, किसे स्थिर करूंगा, किसके प्रति वत्सलता रखूंगा ? चारित्र - चारित्र में श्लथ या विषण्ण होने पर कौन मेरी सारणावारणा करेगा ? प्रायश्चित्त प्राप्त होने पर कौन मेरी शोधि करेगा? इस चिन्तनत्रिपदी से संवेग प्राप्त कर यदि वह पुनः उसी दिन गच्छ में आ जाता है तो शुद्ध । गच्छ में लौट आने वाले मुनि की अनुलोमना कर उसे उपधि दी जाती है। (तुम धन्य हो कि तुमने आत्मकृत्य को पहचान लिया और पुनः संयम में आरूढ़ हो गए - इस अनुलोमना से संयम में स्थिरीकरण होता है ।) ३०३ * दीक्षा : ग्राह्य दिशा आदि द्र श्रीआको १ सामायिक दृष्टिवाद - विभिन्न दार्शनिकों की दृष्टियों का निरूपण करने वाला, सब नयदृष्टियों से वस्तुसत्य का विमर्श करने वाला आगम । बारहवां अंग । द्र आगम देव - दिव्यशक्ति से सम्पन्न । १. देवों के प्रकार * देवशरीर और लक्षण * 'देवशरीर अचित्त नहीं होता * दिव्यरूप के प्रकार * 'सुखविज्ञप्या आदि देवियां Jain Education International द्र शरीर ब्रह्मचर्य २. देवों की पहचान ० अर्हत्-वचन से कल्याण : रोहिणेय दृष्टांत ३. लवसत्तम देव ४. लोकान्तिक देवों द्वारा संबोध ५. वैश्रवण देव ६. गंधर्वनगर : देवकृत * समवसरण : देवकृत ७. देवों की मनुष्य लोक में आने की प्रक्रिया ८. शक्रेन्द्र - ईशानेन्द्र का प्रभुत्वक्षेत्र * शक्रेन्द्र- ईशानेन्द्र : क्षेत्रावग्रह और अनुज्ञा * शक्रेन्द्र का कालावग्रह ९. अर्धसागरोपम स्थिति वाले देव का सामर्थ्य * प्रश्न 'घण्टिकयक्ष आदि * दैवकिल्विषी आदि भावनाएं १०. व्यंतरदेव : माणिभद्र आदि देव द्र समवसरण द्र अवग्रह For Private & Personal Use Only द्र मंत्र - विद्या द्र भावना * कुत्रिकापण निर्माण देवाधीन * कुत्रिकापण में व्यंतर - विक्रय द्र कुत्रिकापण ११. कंबल- शबल नागकुमार : महावीर उपसर्गमुक्त * देवसहयोग : महाशिलाकंटक संग्राम १२. देवों द्वारा साधु- वैयावृत्त्य द्र युद्ध * सम्यक्त्वी देव के पास आलोचना * अरुणोपपात'''''देवों की उपस्थिति १३. पूर्वतप से देवायुबंध कैसे ? * देवायुबंध के हेतु * देवभववीर्य * देवदर्शन से चित्तसमाधि द्र आलोचना द्र स्वाध्याय द्र कर्म द्रवीर्य द्र चित्तसमाधिस्थान १. देवों के प्रकार .....भवणवइ-वाणमंतर - जोइसिय-विमाणवासिणो देवा'''''। (आचूला १५/२७) देव चार प्रकार के हैं- भवनपति, वानमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक । * भवनपति आदि देवों का स्वरूप श्रीआको १ देव (जन्म के तीन प्रकार हैं- सम्मूर्च्छन, गर्भ और उपपात । देव उपपातजन्म से उत्पन्न होते हैं। उनके जन्मस्थान को उपपातसभा कहा जाता है। उस सभा में देवशय्या होती है। उस पर एक प्रच्छदपट बिछा होता है। वह शय्या देवदूष्य से www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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