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________________ आगम विषय कोश-२ २९९ दीक्षा रोगी, स्तेन, राजा के अपकारी, उन्मत्त, अचक्षु, दास, दुष्ट, अकरणीय से निवृत्त होता है, वह मध्यम बाल है। जघन्य मूढ, ऋणी, मुंगिक, अवबद्ध (शिल्पकार, ग्वाल आदि), बाल वह है, जो हाथ पकड़कर रोकने पर भी नहीं मानता है। भृतक और शैक्षस्तेन (अभिभावक की आज्ञा अप्राप्त)। (वह दायें हाथ से फूल तोड़ रहा है। कोई उसके उस हाथ ०बीस प्रकार की स्त्रियां-बाला, वृद्धा आदि उल्लिखित को पकड़ता है तो वह बाएं हाथ से तोड़ने लगता है)। अठारह प्रकार तथा गर्भवती और बालवत्सा। अथवा पहले को जैसा कहा जाता है, वैसा कर लेता ० दस प्रकार के नपुंसक है। दूसरा रोकने पर रुक जाता है। तीसरा निवारण करने पर १. पंडक-स्त्री स्वभाव वाला। स्त्री, पुरुष-दोनों में आसक्त। भी निवृत्त नहीं होता है। २. वातिक-वायुदोष से स्तब्ध वस्ति वाला। ० न्यून अष्टवर्षीय बालक दीक्षायोग्य नहीं ३. क्लीव-कामेच्छा से विकृत सागारिक वाला। ऊणद्वे णत्थि चरणं, पव्वावेंतो वि भस्सते चरणा। ४. कुंभी-वातदोष से शोथयुक्त वस्ति वाला। मूलावरोहिणी खलु, णारभति वाणितो चेटुं॥ ५. ईर्ष्यालु-प्रतिसेवना करते देख उत्पन्न कामेच्छा वाला। जेण ण भस्सति तं पव्वावेति। (निभा ३५३२ चू) ६. शकुनि-गृहचटक की भांति अभीक्ष्ण प्रतिसेवना प्रसक्त। आठ वर्ष से न्यून वय वाले बालक में चारित्र नहीं ७. तत्कर्मसेवी-निसृष्टबीज को श्वान की भांति चाटने वाला। होता। जो उसे प्रव्रजित करता है, वह भी चारित्र से भ्रष्ट हो ८. पाक्षिकपाक्षिक-एक पक्ष (कृष्ण या शुक्ल) में उत्कट जाता है। लाभार्थी वणिक् मूल पूंजी-नाशक व्यापार नहीं मोहोदय, अपर पक्ष में अल्प मोहोदय। करता। जिससे चारित्रविनाश की संभावना न हो, तो उसे ९. सौगंधिक-सागारिक-गंध को सुगंध मानने वाला। प्रव्रजित किया जा सकता है। १०. आसिक्त-स्त्रीशरीर में अत्यंत आसक्त। ० दीक्षाह की न्यूनतम वय ९. बाल के प्रकार एवं लक्षण तिविहो यहोति बालो, उक्कोसोमझिमो जहण्णो या" कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा खुड्डगं वा सत्तट्ठगमुक्कोसो, छप्पणमझो तु जाव तु जहण्णो। खुड्डियं वा साइरेगट्ठवासजायं उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा॥ एवं वयणिप्फण्णं, भावो वि वयाणुवत्ती वा॥ (व्य १०/२२) उक्कोसो दट्ठणं, मज्झिमओ ठाति वारितो संतो। ऊणऽट्ठए चरित्तं, न चिट्ठए चालणीय उदगं वा।" जो पुण जहण्णबालो, हत्थे गहितो वि ण वि ठाति॥ काय-वइ-मणोजोगो, हवंति तस्स अणवट्ठिया जम्हा।" जह भणितो तह चिट्ठइ, पढमो बितिएण फेडियं ठाणं। (व्यभा ४६४६, ४६४७) ततितो ण ठाति ठाणे ........ । निर्ग्रन्थ अथवा निर्ग्रन्थी कुछ अधिक आठ वर्ष वाले (निभा ३५१०-३५१२, ३५१६) बालक या बालिका को उपस्थापित कर सकते हैं (बड़ी दीक्षा बाल के तीन प्रकार हैं दे सकते हैं), उनके साथ एक मण्डली में आहार कर सकते हैं। उत्कृष्ट बाल-सात-आठ वर्ष का बालक। जो बालक आठ वर्ष से कम उम्र वाला होता है, मध्यम बाल-पांच-छह वर्ष का बालक। चालनी में जल की भांति उसमें चारित्र नहीं टिकता। उसके जघन्य बाल-एक से चार वर्ष तक का बालक। मन, वचन और काया के योग चंचल होते हैं। यह वयनिष्पन्न बालत्व है अथवा भाव प्रायः वय का १०. बाल-वृद्ध -दीक्षा के अपवाद अनुवर्तन करते हैं। पव्वाति जिणाखलु, चोहसपुव्वी यजोय अइसेसी उत्कृष्ट बालक वह है, जो गुरु आदि के दृष्टिपात सत्थाए अइमुत्तो, मणओ सेज्जंभवेण पुव्वविदा। मात्र से अकार्य से निवृत्त हो जाता है। जो निषेध करने पर पव्वाविओ य वइरो, छम्मासो सीहगिरिणा वि॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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