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________________ ग्रंथ परिचय चूला (निशीथ) की नियुक्ति करने की प्रतिज्ञा करते हुए आयारो के दोनों श्रुतस्कंधों के अध्ययनों और उद्देशकों की संख्या का निर्देश किया है। • चूर्णि - यह ग्रंथ की प्राकृत-प्रधान गद्यमय व्याख्या है। परंपरा से इसके कर्त्ता जिनदास महत्तर माने जाते हैं। चूर्णि का शब्दशरीर टीका की अपेक्षा संक्षिप्त है, किन्तु अर्थाभिव्यक्ति और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत मूल्यवान् है। इसमें यत्र-तत्र अनेक संदर्भों में अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रंथों से प्राकृत संस्कृत के अनेक श्लोक उद्धृत किए गए हैं। आचारांग के दोनों श्रुतस्कंधों की चूर्णि ३८२ पृष्ठों में परिसम्पन्न होती है, जिसमें द्वितीय श्रुतस्कंध (आचारचूला) की चूर्णि मात्र ५८ (३२५-३८२) पृष्ठों में वर्णित है। • वृत्ति - आचारांग का तीसरा व्याख्याग्रंथ वृत्ति (टीका) है। चूर्णि और वृत्ति ये दोनों सूत्र और नियुक्ति के आधार पर चलते हैं । वृत्ति का शब्दशरीर उपलब्ध व्याख्याग्रंथों में सबसे बड़ा है । ४३२ पत्रों में आलेखित इस वृत्ति के कर्त्ता शीलांकसूरि हैं । आचारचूला की वृत्ति ११५ (३१८-४३२) पत्रों में व्याख्यायित है । आचारचूलावृत्ति २५५४ श्लोकप्रमाण है । सम्पूर्ण आचारांग वृत्ति का ग्रंथ परिमाण १२००० श्लोक प्रमाण है । ३३ द्वितीय श्रुतस्कंध के प्रारंभ में वृत्तिकार ने श्लोकत्रयी के माध्यम से मध्य मंगल करते हुए चतुर्चूलात्मक अग्रश्रुतस्कंध की व्याख्या करने की प्रतिज्ञा की है । आचारांग की अग्रभूता चार चूलाएं उक्त अनुक्त अर्थसंग्राहिका हैं। निक्षेप पद्धति से द्रव्याग्र, अवगाहनाग्र आदि की सोदाहरण व्याख्या की गई है। सूत्रपदों और निर्युक्तिपदों का सरस भाषा में अर्थबोध कराया गया है । यथा - ' सासियाओ' त्ति जीवस्य स्वाम् आत्मीयामुत्पत्तिं प्रत्याश्रयो यासु ताः स्वाश्रयाः, अविनष्टयोनय इत्यर्थ: ।...'द्विदलकृताः ' ऊर्ध्वपाटिताः 'तिरश्चीनच्छिन्नाः ' कन्दलीकृताः ।----'पिहुयं व' त्ति पृथुकं जातावेकवचनं नवस्य शालिव्रीह्यादेरग्निना ये लाजाः क्रियन्ते ते...... । ' अप्रतिष्ठितः ' न क्वचित् प्रतिबद्धोऽशरीरी वा....'कलंकलीभावात्' संसारगर्भादिपर्यटनाद्':' ।' सूत्र अथवा नियुक्ति के मंतव्य की स्पष्टता - विशदता के लिए अनेक स्थलों में सैकड़ों सुंदर श्लोक उद्धृत किए गए हैं, जो तत्कालीन संस्कृति, परम्परा, मनोविज्ञान, वस्त्रविज्ञान आदि विविध कोणों का स्पर्श करते हैं। यथासूत्र (५/३०) का निर्देश है कि मुनि प्रायोग्य, स्थिर, ध्रुव और धारणीय वस्त्र ग्रहण करे। लक्षणहीन वस्त्र से ज्ञानदर्शन - चारित्र की हानि होती है। इस संदर्भ में दो श्लोक उद्धृत हैं चत्तारि देविया भागा, दो य भागा य माणुसा। आसुरा य दुवे भागा, मज्झे वत्थस्स रक्खसो ॥ देवि सुत्तमो लाभो, माणुसेसु अ मज्झिमो । आसुरेसु य गेलन्नं मरणं जाण रक्खसे ॥ • वार्तिक - श्रीमज्जयाचार्य ने वि. सं. १८९३ में आचार के दूसरे श्रुतस्कंध पर राजस्थानी भाषा में वार्तिक (टबा) लिखा। आचारचूला के चर्चास्पद विषयों के स्पष्टीकरण के लिए १३१ पत्रों में निबद्ध (हस्तलिखित) प्रस्तुत वार्तिक ( बालावबोध) बहुत महत्त्वपूर्ण है । चार छेदसूत्र दशा, कल्प, व्यवहार और निशीथ - ये चार आगम वर्तमान वर्गीकरण के अनुसार छेदसूत्र के वर्गीकरण में १. आनि ३४३-३६८ २. आवृ प ३२३, ४३१ । ३. वही, प ३९६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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