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________________ आगम विषय कोश-२ २८३ तीर्थंकर पांचवां पक्ष-आश्विन मास का कृष्ण पक्ष, त्रयोदशी तिथि, त्रिशला क्षत्रियाणी मध्यरात्रि के समय अर्धजागृत बयासी रात्रियां बीतने पर तैंयासीवीं मध्यरात्रि में त्रिशला अवस्था में बार-बार ऊंघती हुई चौदह महास्वप्न देखकर क्षत्रियाणी की कुक्षि से अशुभ पुद्गलों का अपहार कर, शुभ जाग उठी। यथा-हाथी, वृषभ, सिंह, लक्ष्मी, फूलों की पुद्गलों का प्रक्षेप कर गर्भ का संहरण किया-प्रवेश कराया। माला, चांद, सूर्य, ध्वजा, कुंभ, पद्मसरोवर, सागर, देवविमान, जो त्रिशला क्षत्रियाणी की कुक्षि में गर्भ था, उसे भी रत्नराशि और अग्नि। देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि में संहृत (स्थापित) किया। त्रिशला ने राजा सिद्धार्थ से कहा-स्वामिन ! आज मैं ___ (देवेन्द्र शक्र की आज्ञप्ति से हरि-नैगमेषी देव ने महावीर गज, वृषभ आदि चौदह महास्वप्न देखकर जाग उठी।स्वामिन्! का गर्भ-संहरण किया था। दशा ८ परि सू१४-१७ क्या मैं मानूं इन उदार चौदह महास्वप्नों का कल्याणकारी __शक्र का दूत हरि-नैगमेषी देव "सुखपूर्वक योनि से विशिष्ट फल होगा? गर्भ में संहरण करता है। वह स्त्री के गर्भ का नख के राजा सिद्धार्थ ने स्वप्नपाठकों को स्वप्न-फल पूछा। अग्रभाग अथवा रोमकूप से संहरण अथवा निर्हरण करने में स्वप्नपाठकों ने कहा-इन स्वप्नों के अनुसार त्रिशला क्षत्रियाणी समर्थ है। ऐसा करते समय वह गर्भ को किंचिद् भी आबाधा- एक सुंदर बालक को जन्म देगी। वह बालक युवावस्था को विबाधा उत्पन्न नहीं करता है और न उसका छविच्छेद करता प्राप्त कर पराक्रमी, चातुरन्त चक्रवर्ती राजा बनेगा अथवा है।-भ५/७६, ७७ त्रिलोकनाथ श्रेष्ठ धर्मचक्रवर्ती जिन होगा। सुलसा ने हरि-नैगमेषी की प्रतिमा बनाकर उसकी ७. महावीर द्वारा गर्भ में प्रतिज्ञा आराधना की थी। हरि-नैगमेषी ने सुलसा के मृत पुत्रों को "समणे भगवं महावीरे माउअणुकंपणवाए निच्चले करतल-सम्पुट में उठाकर देवकी के पास और देवकी के पुत्रों णिप्फंदे निरयणे अल्लीणपल्लीणगुत्ते या वि होत्था॥ को सुलसा के पास रखा था।-अंत ३/३५-४१) तए णं तीसे तिसलाए चिंतासोगसागरं संपविट्ठा" ६. त्रिशला के स्वप्न और उनका फलित महावीरे माऊए अयमेयारूवं"विजाणित्ता एगदेसेणं एयइ॥ ___"तिसलाए खत्तियाणीए"पुव्वरत्तावरत्तकाल तएणं सा तिसला खत्तियाणी हट्टतुट्टा"तए णं समणे समयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी-ओहीरमाणी इमेयारूवे भगवं महावीरे गब्भत्थे चेव इमेयारूवं अभिग्गहं अभिओराले जाव चोदस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, तं गिण्हइ-नो खलु मे कप्पइ अम्मापिईहिं जीवंतेहिं मुंडे • भवित्ता अगारवासाओ अणगारियं पव्वइत्तए॥ गय वसह सीह अभिसेय दामससि दिणयरं झयं कुंभं। (दशा ८ परि सू ५३-५७) पउमसर सागर विमाणभवण रयणुच्चय सिहिं च॥ तए णं सा तिसला खत्तियाणी.सिद्धत्थं खत्तियं श्रमण भगवान महावीर माता की अनुकंपा के लिए "एवंवयासी-एवंखलुअहंसामी!"चोहस महा-समिणे निश्चल, निस्पंद, निष्कंप, आलीन-प्रलीनगुप्त हो गए। इससे पासित्ताणं पडिबद्धा...। तं एतेसिं सामी!...के मन्ने त्रिशला चिंताशोकसागर में डूब गई। महावीर ने मां को इस कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सइ ?.... प्रकार देखकर कुछ हलन-चलन किया। माता त्रिशला प्रसन्न तएणं सिद्धत्थे खत्तिए समिणलक्खणपाढए एवं हुई। श्रमण भगवान महावीर ने गर्भ में ही अभिग्रह ग्रहण वयासितएणं ते समिणलक्खणपाढगा"एवं वयासी.. किया कि मैं माता-पिता के जीवित रहते मुंड होकर अगारवास तिसला खत्तियाणी"सुरूवं दारयं पयाहिइ से वि य णं से अनगारता में प्रवजित नहीं होऊंगा। दारए ''जोव्वणगमणुप्पत्ते सूरे "चाउरंतचक्कवट्टी रज्ज- जन्म वई राया भविस्सइ, जिणे वा तेलोक्कनायए धम्मवर- ..."णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं, अद्धट्ठमाणं चक्कवट्टी"। (दशा ८ परि सू २०, ३७, ४६, ४७) राइंदियाणं वीतिक्कंताणं, जे से गिम्हाणं पढमे मासे, दोच्चे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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