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________________ आगम विषय कोश-२ २७७ तप तप-कर्मशरीर को तपाने वाला अनुष्ठान। भेद हैं। (श्रमण महावीर के शासन में उत्कृष्ट इत्वरिक तप तप का निर्वचन छहमासिक है। -द्र प्रायश्चित्त) । यावज्जीवन के लिए तपःकर्म स्वीकार करना तप्पते अणेण पावं कम्ममिति तपो। 'रस-रुधिर-मांस-मेदोऽस्थि-मज्ज-शुक्राण्यनेन तप्यते। ___ यावत्कथिक तप है।-द्र अनशन कर्माणि चाशुभानीत्यतस्तपो नाम नैरुक्तम्॥' रत्नावलि आदि तप । (निभा ४६ की चू) ....... तवो रयणमादी॥ जिससे पापकर्म तप्त-विनष्ट होता है, वह तप है। तवोकम्मरयणावली कणगावली सीहनिक्की जिससे रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और लियं जवमझं वइरमझं चंदाणयं। (निभा २८७३ चू) शुक्र-ये धातुएं तथा अशुभ कर्म संतप्त-क्षीण होते हैं, वह तपोयोग के अनेक प्रकार हैं-रत्नावलि, कनकावलि, तप है-यह तप का निर्वचन है। सिंहनिष्क्रीडित, यवमध्यचन्द्रप्रतिमा, वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा आदि। तप के बारह प्रकार * यवमध्यचन्द्रप्रतिमा, मोयप्रतिमा आदि द्र प्रतिमा बारसविहम्मि वि तवे, सब्भितरबाहिरे कुसलदिटे।" * भिक्षुप्रतिमा और तप द्र भिक्षुप्रतिमा (बृभा ११६९) परिहारविशुद्धि तप द्र परिहारविशुद्धि अर्हत् द्वारा तप के बारह प्रकार प्रज्ञप्त हैं । वे दो * शुद्धतप और परिहार तप द्र परिहारतप * तपयोग्य प्रायश्चित्त स्थान भागों में विभक्त है-बाह्य तप और आभ्यन्तर तप। द्र प्रायश्चित्त * तप पारांचिक द्र पारांचित बाह्य तप के छह प्रकार हैं * तप: आचार का एक भेद द्र आचार १. अनशन (द्र अनशन) तप भावना द्र जिनकल्प २. ऊनोदरिका (द्र आहार) कृतकरण : तप से भावित द्र कृतयोगी ३. भिक्षाचर्या (द्र स्थविरकल्प) * उपवास से चिकित्सा द्र चिकित्सा ४. रस-परित्याग (द्र स्वाध्याय) * तपस्वी के गोचरकाल द्रपिण्डैषणा ५. कायक्लेश (द्र कायक्लेश) * वर्षाकालीन तप से बलवृद्धि द्र पर्युषणाकल्प ६. प्रतिसंलीनता (द्र प्रतिमा) * तप हेतु चारित्र उपसंपदा द्र उपसम्पदा आभ्यन्तर तप के छह प्रकार हैं * आगाढयोगवहन द्र स्वाध्याय १. प्रायश्चित्त ३. वैयावृत्त्य ५. ध्यान * श्रेणि-प्रतर आदि तप द्र श्रीआको १ तप २. विनय ४. स्वाध्याय ६. व्युत्सर्ग (० रत्नावलि तप-रत्नों की पंक्ति रत्नों के हार में होती है -द्र सम्बद्ध नाम इसलिए यह तप हार की कल्पना के अनुसार किया जाता है। इत्वरिक तप-यावत्कथिक तप हार में ऊपर दोनों ओर दो दाडिमपुष्प होते हैं और नीचे की खमणित्ति चउत्थं छठें अट्ठमं दसमं दुवालसमं ओर बीच में एक बड़ा दाडिमपुष्प होता है। उसी कल्पना के अद्धमासखमणं मास-दुमास-तिमास-चउमास-पंचमास- अनुसार इस तप की विधि यह हैछम्मासा, सव्वं पि इत्तरं। आवकहियं वा। काहिलिका के रूप में उपवास, बेला और तेला (निभा २ क्रमश: किया जाता है, फिर दाडिमपुष्प के रूप में ८ बेले उपवास, बेला, तेला, चोला, पंचोला (पांच उपवास), किए जाते हैं, उसके नीचे सारिका आती है, उसमें उपवास अर्धमासक्षपण (पखवाड़ा), मासक्षपण, दो मास, तीन मास, चार से लेकर क्रमशः १६ दिन तक का तप किया जाता है। नीचे मास, पांच मास और छह मास का तप-ये सब इत्वरिक तप के के बड़े दाडिमपुष्प में ३४ बेले फिर १६ दिन के तप से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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