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________________ जीवनिकाय २७० आगम विषय कोश-२ सचित्त पदार्थ शस्त्र से उपहत नहीं होने पर भी अपनी उत्पल और पद्म धूप में रखने से प्रहर-मात्र समय आयुस्थिति के क्षय होने पर स्वतः अचित्त हो जाते हैं। से पहले ही अचित्त हो जाते हैं। मोगरा और जूही के फूलों १६. सचित्त-अचित्त जल के विकल्प की योनि उष्ण होती है। अत: वे फूल धूप में रखने पर सीतोदे उसिणोदे, फासुगमफासुगे य चउभंगो।" चिरकाल तक सचित्त ही रहते हैं। धारोदए महासलिलजले संभारिते व्व दव्वेहिं ।' मगदन्तिका पुष्प को जल में डालने से वह प्रहरमात्र चउमूल पंचमूलं, तालोदाणं च तावतोयाणं।" भी सजीव नहीं रह सकता। जल में क्षिप्त उत्पल और पद्म धारोदकं नाम गिरिनिर्झरजलम, यथा उज्जयन्तादौ, चिरकाल तक सचित्त रह सकते हैं क्योंकि वे उदकयोनिक हैं। आन्तरिक्षंवा धारोदकम्।...| पत्र-पुष्प, गुठलीविहीन फल और हरित (बथुआ चतर्मलं नाम चतर्भिः सरभिमलैर्भावितम। एवं आदि)-इनके वृन्त (मूलनाल) म्लान होने पर इन्हें जीवयत् पञ्चभिः सुरभिमूलै वितं तत् पञ्चमूलम्।तालोद- विप्रमुक्त (अचित्त) जानना चाहिए। कानि यथा तोसलिविषये। तापतोयानि राजगृहादौ। १८. शालि आदि का योनिविध्वंस (बृभा ३४२०, ३४२२, ३४२९ ) तिगसंवच्छर तिग दुग, एगमणेगे य जोणिघाए r. जल के चार विकल्प हैं (बृभा १९५४) १. प्रासुक शीतोदक-गर्म किया हुआ शीतीभूत जल अथवा तीन साल के बाद शालि और व्रीहि विध्वंसयोनिक तंदुल का धोवन आदि। हो जाते हैं, उनकी उत्पादक शक्ति नष्ट हो जाती है। २. अप्रासुक शीतोदक-स्वाभाविक शीतल जल। तिल, मूंग आदि पांच वर्ष के बाद तथा अतसी, कंगु ३. प्रासुक उष्णोदक-त्रिदण्डउद्वत्त गर्म जल। आदि सात वर्ष के बाद विध्वंसयोनिक हो जाते हैं। ४. अप्रासुक उष्णोदक-तापोदक आदि। (शालि, व्रीहि, गेहूं आदि धान्यों को कोठे आदि में सचित्त उदक के अन्य प्रकार भी हैं। यथा डालकर उनके द्वारदेश को लीप देने, मिट्टी से मुद्रित कर देने ० धारोदक-उज्जयंत आदि पहाड़ी झरनों का जल अथवा पर उनकी योनि (उत्पादक शक्ति) जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, अंतरिक्ष का जल। उत्कर्षतः तीन वर्ष तक रहती है। उसके बाद योनि म्लान हो ० महासलिला जल-गंगा, सिन्धु आदि महानदियों का जल। जाती है, बीज अबीज हो जाता है। मटर, मसूर, तिल आदि ० संभारित जल-कपूर, गुलाब आदि द्रव्यों से वासित जल। की योनि पांच वर्ष तक तथा अलसी, कुसुंभ, कोदव आदि ० चतुर्मूल-चार सुरभि मूलों से भावित जल। की योनि सात वर्ष तक रहती है।-भ६/१२९-१३१ ० पंचमूल-पांच सुरभिमूलों से भावित जल। ओदन, कुल्माष आदि पूर्व पर्याय-प्रज्ञापन की अपेक्षा ० तालोदक-तोसलि आदि क्षेत्रों में प्राप्त जल। से वनस्पतिजीवों के शरीर हैं। अग्निपरिणत होने पर उन्हें ० तापोदक-राजगृह आदि में प्राप्त जल। अग्निजीवों का शरीर कहा जा सकता है। लोहा, ताम्बा आदि १७. उत्पल आदि के अचित्त होने का कालमान पृथ्वीजीवों के शरीर हैं, अग्निरूप में परिणत होने पर उन्हें उप्पल पडसाई पण उण्ड दिन्नाई जाम न धरिती। अग्निजीवों का शरीर कहा जा सकता है। अस्थि, चर्म, रोम मोग्गरग-जहियाओ, उण्हे छुढा चिरं होंति॥ आदि त्रसजीवों के शरीर हैं, अग्निपरिणत होने पर उन्हें अग्निजीवों मगदंतियपुप्फाई, उदए छूढाइँ जाम न धरिती। का शरीर कहा जा सकता है।-भ ५/५१-५३) उप्पल-पउमाई पुण, उदए छूढा चिरं होंति॥ १९. सूक्ष्म जीवों के आठ प्रकार पत्ताणं पुष्फाणं, सरडुफलाणं तहेव हरियाणं। "अट्ठ सुहुमाइं"तं जहा-पाणसुहुमं पणगसुहमं विंटम्मि मिलाणम्मी, नायव्वं जीवविप्पजढं॥ बीयसुहुमं हरियसुहुमं पुष्फसुहुमं अंडसुहुमं लेणसुहुमं (बृभा ९७८-९८०) सिणेहसुहुमं। (दशा ८ परि सू २६२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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