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________________ छेदसूत्र श्रमण भी श्रमण के पास और गीतार्थ श्रमण का योग न होने पर गीतार्थ साध्वी के पास आलोचना करते थे । आर्यरक्षित के पश्चात् श्रमण- श्रमणियों द्वारा श्रमणों के समीप ही आलोचना की जाने लगी। ७. निशीथ ( आचारप्रकल्प ) का उद्गम निसीध नवमा पुव्वा, पच्चक्खाणस्स ततियवत्थूओ । आयारनामधेज्जा, वीसतिमे पाहुडच्छेदा॥ (व्यभा ४३५) चौदहपूर्वी में नौवां पूर्व है ' प्रत्याख्यान पूर्व' । उसमें बीस वस्तु (अर्थाधिकार) । तीसरे वस्तु का नाम है 'आचार वस्तु'। उसमें बीस प्राभृतछेद (उपविभाग ) हैं । निशीथ बीसवें प्राभृतछेद से निर्यूढ है । • निशीथ नियुक्ति का अस्तित्व आयारस्स भगवतो, चउत्थचूलाइ एस निज्जुत्ती । पंचमचूलनिसीहं, तस्स य उवरिं भणीहामि ॥ (आनि ३६६ ) नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु ने कहा- आचारांग की चतुर्थ (विमुक्ति) चूला की यह निर्युक्ति है। उसकी पांचवीं चूला है - निशीथ । उसकी नियुक्ति आगे कहूंगा। भणिया विमुत्तिचूला, अहुणावसरो णिसीहचूलाए। (निचू १ पृ १) निशीथ चूर्णिकार ने अपने मंगलाचरण की गाथा में लिखा है - विमुक्तिचूला की चूर्णि लिखी जा चुकी है, अब निशीथचूला की चूर्णि का अवसर है। इदानीं उद्देसकस्स उद्देसकेन सह संबंधं वक्तुकामो आचार्यः भद्रबाहुस्वामी निर्युक्तिगाथामाह - परिहारतवकिलंतो ..... । (निभा १८९५ की चू) निशीथ के चतुर्थ उद्देशक के साथ पंचम उद्देशक की संबंध-योजना के लिए भद्रबाहुस्वामी ने निर्युक्तिगाथा कही है। ( उल्लिखित नियुक्तिकार की प्रतिज्ञा और चूर्णिकार के उल्लेख से निशीथनियुक्ति का अस्तित्व सहज सिद्ध है ।) Jain Education International २३६ ८. निशीथ के पर्यायवाची नाम आयारपकप्पस्स उ, इमाई गोण्णाइं णामधिज्जाई । आयारमाइआई, पायच्छित्तेणऽहीगारो ॥ आगम विषय कोश - २ निशीथ के गुणनिष्पन्न नाम पांच हैं ० आचार - प्रायश्चित्त सूत्र चरणकरणानुयोग (आचार सूत्र ) के अंतर्गत है, अत: यह आचार है। ० अग्र - चार आचारचूलाएं आचारांग के चार अग्र हैं और निशीथ पांचवां अग्र है । आयारो अग्गं चिय, पकप्प तह चूलिया णिसीहं ति ।" ( निभा २, ३ ) ० प्रकल्प - नौवें पूर्व में इसकी प्रकल्पना - रचना की गई है, अतः यह प्रकल्प है । अथवा यह प्रकल्पन - अतिचारों का छेदन करने वाला है, इसलिए प्रकल्प है। ० • चूलिका - चूला और अग्र समानार्थक हैं । (द्र आगम) ० निशीथ - रात्रि यानी एकांत में पठनीय है, गोपनीय है, अतः निशीथ है। निशीथ प्रायश्चित्त सूत्र है, इसमें प्रायश्चित्तसहित आचार की मीमांसा की गई है। ९. अप्रकाश्य निशीथ के निक्षेप दव्वणिसहं कतगादिसु खेत्तं तु कण्ह-तमुणिरया । कालंमि होति रत्ती, भाव णिसीधं तिमं चेव ॥ जं होति अप्पगासं, तं तु णिसीहं ति लोगसंसिद्धं । जं अप्पगासधम्मं, अण्णं पि तयं निसीधं ति ॥ ( निभा ६८, ६९ ) (निशीथ शब्द का शाब्दिक अर्थ है अर्धरात्रि, जो अंधकार या अप्रकाश की सूचक है। द्रव्य आदि निक्षेपों से निशीथ की व्याख्या की गई है ।) ० द्रव्यनिशीथ - कलुषतायुक्त वस्तु। जैसे अशुद्ध जल में कतकफल का चूर्ण डालने से उसका मैल नीचे जम जाता है। क्षेत्रनिशीथ - अंधकारपूर्ण क्षेत्र । जैसे कृष्णराजि, तमस्काय, सीमंतक आदि नरक । ० कालनिशीथ - रात्रि | • भावनिशीथ - निशीथ सूत्र ( प्रकल्पाध्ययन), क्योंकि यह सूत्र - अर्थ की दृष्टि से अप्रकाश्य है, रहस्यमय है, अपवादबहुल है, अनधिकारी के सम्मुख प्रकाश्य नहीं है। जो अप्रकाशधर्मा ० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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