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________________ चूला २३२ आगम विषय कोश-२ चूला–अग्र, शिखर। तिविधा य दव्वचूला, सचित्ता मीसिगा य अचित्ता। कुक्कुडसिह मोरसिहा, चूलामणि अग्गकुंतादी॥ अह-तिरिय-उड्डलोगाण, चूलिया होंतिमा उ खेत्तंमि। सीमंत-मंदरे वि य, ईसीपब्भारणामा य॥ अहिमासओ उ काले, भावे चूला तु होइमा चेव। चूला विभूसणं ति य, सिहरं ति य होंति एगट्ठा॥ (निभा ६४-६६) चूला के चार निक्षेप हैं१. द्रव्यचूला-इसके तीन प्रकार हैं। १. सचित्त-कुक्कुट की चूला (मांसपेशी)। २. मिश्र-मयूरशिखा (रोमयुक्त मांसपेशी) । ३. अचित्त-चूडामणि कुंताग्र आदि। २. क्षेत्रचूला-अधोलोकचूला-सीमंतक–रत्नप्रभा पृथ्वी का प्रथम नरक। तिर्यक्लोकचूला-मंदर पर्वत अथवा उसके ऊपर की चवालीस योजन की चूला । ऊर्ध्वलोकचूला-सर्वार्थसिद्धविमान के ऊपर बारह योजन वाली ईषत्प्रारभारा पृथ्वी। ३. कालचूला-अधिक मास वाला अभिवर्धित वर्ष । अथवा कालचक्र का अंतिम भाग। यथा-अवसर्पिणी का छठा अरदुःषमदुःषमा काल। ४. भावचूला-प्रकल्पाध्ययन (निशीथ)द्र छेदसत्र चूला, विभूषण और शिखर-ये एकार्थक हैं। चूला का अर्थ है-मूलग्रंथ का उत्तरग्रंथ। द्र आगम छेदप्रायश्चित्त-प्रायश्चित्त का एक प्रकार । अपराधों का उपचय और शासनविरुद्ध समाचरण होने पर तथा तप के योग्य प्रायश्चित्त का अतिक्रमण होने पर प्रव्रज्या के पांच दिन आदि का छेद करना। छेदसूत्र-मुनि आचार के विधि-निषेधों के प्रतिपादक ग्रंथ। चारित्रविशोधिकारक ग्रंथ, प्रायश्चित्त सूत्र। | १. छेदसूत्र-निर्वृहण का प्रयोजन २. छेदसूत्र बलवान् क्यों? * छेदसूत्र और दृष्टिवाद उत्तम श्रुत द्र आगम ३. छेदश्रुतज्ञाता अरहस्यधारक | ४. छेदसूत्र किस अनुयोग में? ५. छेदसूत्र के योग्य ० छेदसूत्र की अर्थवाचना के अयोग्य ० प्रकीर्णप्रश्न-प्रकीर्णविद्य ० गुरुनिह्नवी : परिव्राजक दृष्टांत | ६. साध्वी को छेदसूत्र की वाचना कब तक? * छेदसूत्र और गीतार्थ द्र गीतार्थ * छेदसूत्रज्ञ श्रुतव्यवहारी द्र व्यवहार * छेदसूत्र और मुनिपर्याय द्र श्रुतज्ञान | ७. निशीथ (आचारप्रकल्प) का उद्गम ० निशीथ नियुक्ति का अस्तित्व ८. निशीथ के पर्यायवाची नाम ९. अप्रकाश्य निशीथ के निक्षेप ० निर्वचन और प्रतिपाद्य * आचारांग-आचारचूला-निशीथचूला द्र आगम १०. निशीथ : पांचवीं चूला * निशीथ : भावचूला द्रचूला ११. निशीथ के चार कल्प |१२. प्रकल्पधर : प्रायश्चित्तदान का अधिकारी |१३. चतुर्विध अनुयोग : उद्देशकों की विषयवस्तु १४. निशीथ में चतुर्विध प्रायश्चित्त १५. प्रायश्चित्त सूत्रों का परिमाण १६. निशीथवाचना के अयोग्य-योग्य १७. निशीथपीठिका के अयोग्य-योग्य | १८. गणधारण में निशीथ की भूमिका १९. निशीथविस्मृति के हेतु : वैद्य दृष्टांत २०. निशीथ की विस्मृति : गणदायित्व का निषेध ० स्थविर के लिए निषेध नहीं | विस्मृतश्रुता को जानने की प्रक्रिया २१. दशा-कल्प-व्यवहार के निर्वृहणकर्ता २२. कल्प-व्यवहार का प्रणयन क्यों? २३. दशा-कल्प-व्यवहार का उद्गम | २४. दशाश्रुतस्कंध का निर्वृहण ___० दशा : छेदसूत्रों में प्रमुखभूत २५. कल्प शब्द के अर्थ २६. कल्प और व्यवहार २७. कल्पाध्ययन और व्यवहार का विषय-भेद ० कल्प-व्यवहार का विस्तार पूर्वाचार्यकृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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