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________________ आगम विषय कोश-२ २१९ चिकित्सा वा मरेज्ज, असमाधाणं वा से हवेज्ज। कण्टकादिवेधस्थानानामंगुष्ठादिना परिमर्दनम्। (निभा १६७५ की चू) तदनन्तरं दन्तमलादिना आदिशब्दात्कर्णमलादिपरिग्रहः मल-मूत्र और वायु का निरोध करने से तीव्र रोग हो पूरणं कण्टकादिवेधानाम्। (व्यभा ६६३ वृ) जाता है, मूर्छा आने लगती है, असमाधि उत्पन्न होती है। पैर आदि में कांटा आदि चुभने पर उसे निकालकर वेगनिरोध से मृत्यु तक हो जाती है। वेधस्थान को अंगूठे आदि से मसला जाता है, फिर उसमें दांत २१. पैरधूलि से चक्षु उपहत या कान का मैल डालने से वह भर जाता है। ____ पायणहेसुदीहेसु अंतरंतरे रेणू चिट्ठति, तीए चक्खू २३. चंक्रमण से स्वस्थता उवहम्मति। (निभा १५१९ की चू) वायाई सट्ठाणं, वयंति कुविया उ सन्निरोहेणं। पैरों के लम्बे नखों में रजकण रहते हैं, तो उनसे आंख लाघवमग्गिपडुत्तं, परिस्समजतो उ चंकमतो॥ उपहत होती है। (बृभा ४४५६) चंक्रमण से चार लाभ होते हैं० पैर का परिकर्म चक्षु-उपकारक जो चक्खुसा दुब्बलो सो वेज्जोवएसेण कमेसु १. लम्बे समय तक एक स्थान पर बैठे रहने से वायु आदि कमणीओ पिणद्धि।जं पाएसु अब्भंगणोवाणहाइ-परि धातुएं कुपित (अपने स्थान से चलित) हो जाती हैं । चंक्रमण कम्मं कज्जति तं चक्खूवगारगं भवति।जओ उत्तं करने से वे धातुएं पुनः अपने स्थान में स्थित हो जाती हैं। दंतानामञ्जनं श्रेष्ठ, कर्णानां दन्तधावनम्। २. शरीर में लाघव (हल्केपन)का अनुभव होता है। ३. जठराग्नि प्रदीप्त होती है। शिरोऽभ्यंगश्च पादानां, पादाभ्यङ्गश्च चक्षुषाम्॥ ४. परिश्रम से होने वाली थकान दूर हो जाती है। (निभा ९३३ की चू) २४. अगद (विषनाशक औषधि), तैल आदि जिसकी आंखें कमजोर होती है, वह वैद्य के निर्देशा ...."अगतोसहादिदव्वं कल्लाणग-हंसतेल्लादी। नुसार पैरों में जूते/चप्पल पहनता है। अगतं नकुलाद्यादि, औषधं एलाद्यचूर्णगादि, __ पैरों का अभ्यंजन करना, उपानद् पहनना-यह सारा परिकर्म चक्षु के लिए उपकारक होता है। कहा गया है कल्लाणगं च घृतं, 'हंसतेल्लं' हंसो पक्खी भण्णति, सो दांतों के लिए अंजन, कानों के लिए दन्तधावन, पैरों फाडेऊण मुत्तपुरीसाणिणीहरिजंति, ताहेसो हंसो दव्वाण के लिए सिर की मालिश और आंखों के लिए पैर-अभ्यंग भरिज्जति, ताहे पुणरवि सो सीविज्जति, तेण तदवत्थेण श्रेष्ठ होता है। तेल्लंपच्चति, तंहंसतेल्लं भण्णति।आदि सद्दातो सतपाग सहस्सपागा य तेल्ला घेप्पंति। (निभा ३४८ चू) मुह-नयण-दंत-पायादिधोव्वणे अग्गि-मति-वाणिपडुया, होति अणोत्तप्पया चेव॥ . चिकित्सा में प्रयुक्त होने वाली कुछ वस्तुएं ये हैं ० अगद-नकुलाद्य आदि। (व्यभा २६८३) ० औषध-एलाद्य चूर्ण आदि। मुख, दांत आदि को धोने से जठराग्नि की प्रबलता ० कल्याणक-घृतविशेष। होती है, आंख, पैर आदि धोने से बुद्धि और वाणी की पटुता ० हंसतैल, शतपाक तैल, सहस्रपाक तैल आदि। बढ़ती है तथा शरीर का सौन्दर्य भी बढ़ता है। ० हंसतैल-निर्माणविधि-हंस पक्षी के शरीर को चीर कर २२. कंटकविद्ध की चिकित्सा उससे मलमूत्र बाहर निकालकर, अन्य द्रव्यों से भरकर उसकी ...."परिमद्दण दंतमलादी......... ॥ सिलाई की जाती है। फिर उस अवस्था में उसे तैल में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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