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________________ चारित्र ९. चारित्र से संबंधित शबल दोष ......एक्कवीसं सबला पण्णत्ता, तं जहा १. हत्थकम्मं करेमाणे सबले । २. मेहुणं पडिसेवमाणे सबले । ३. राती भोयणं भुंजमाणे सबले । ४. आहाकम्मं भुंजमाणे सबले । ५. रायपिंडं भुंजमाणे सबले । ६. कीयं पामिच्चं अच्छिज्जं अणिसिट्टं आहट्टु दिज्जमाणं भुंजमाणे सबले । ७. अभिक्खणं पडियाक्खित्ताणं भुंजमाणे सबले । ८. अंतो छण्हं मासाणं गणातो गणं संकममाणे सबले । ९. अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले । १०. अंतो मासस्स ततो माइट्ठाणे करेमाणे सबले । ११. सागारियपिंडं भुंजमाणे सबले । १२. आउट्टियाए पाणाइवायं करेमाणे सबले । १३. आउट्टियाए मुसावायं वदमाणे सबले । १४. आउट्टियाए अदिन्नादाणं गिण्हमाणे सबले । १५. आउट्टियाए अणंतरहियाए पुढवीए ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले । १६. आउट्टियाए ससणिद्धाए पुढवीए ससरक्खाए पुढवीए ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले । १७. आउट्टियाए चित्तमंताए सिलाए चित्तमंताए लेलुए कोलावासंसि वा दारुए जीवपइट्ठिए सअंडे सपाणे सबीए सहरिए सउस्से सउत्तिंग-पणग-दगमट्टी-मक्कडासंताणए ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणे सबले । १८. आउट्टियाए मूलभोयणं वा कंदभोयणं वा खंधभोयणं वा तयाभोयणं वा पवालभोयणं वा पत्तभोयणं वा पुप्फभोयणं वा फलभोयणं वा बीयभोयणं वा हरियभोयणं वा भुंजमा सबले । १९. अंतो संवच्छरस्स दस दगलेवे करेमाणे सबले । २०. अंतो संवच्छरस्स दस माइट्ठाणाई करेमाणे सबले । २१. आउट्टियाए सीतोदगवग्घारिएण हत्थेण वा मत्तेण वा वीए भायणेण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा डिग्गात्ता भुंजमाणे सबले । (दशा २/३ ) Jain Education International २०८ शबल इक्कीस हैं, जैसे आगम विषय कोश - २ १. हस्तकर्म करने वाला । २. मैथुन का प्रतिसेवन करने वाला । ३. रात्रिभोजन करने वाला । ४. आधाकर्म आहार करने वाला । ५. राजपिंड खाने वाला । ६. क्रीत, प्रामित्य, आच्छेद्य, अनिसृष्ट और सामने लाकर दिया गया भोजन करने वाला । ७. बार-बार अशन आदि का प्रत्याख्यान कर उसे खाने वाला। ८. छह माह में एक गच्छ से दूसरे गच्छ में संक्रमण करने वाला । ९. एक महीने में तीन उदक- लेप लगाने वाला ( नाभिप्रमाण जल का अवगाहन करने वाला) । १०. एक महीने में तीन माया-स्थान का सेवन करने वाला । ११. शय्यातरपिंड खाने वाला । १२. अभिमुखतापूर्वक (जानकर) प्राणातिपात करने वाला । १३. अभिमुखतापूर्वक मृषावाद बोलने वाला । १४. अभिमुखतापूर्वक अदत्तादान लेने वाला। १५. अभिमुखतापूर्वक अव्यवहित (बिछौने के द्वारा व्यवधान डाले बिना) पृथ्वी पर स्थान या निषद्या करने वाला । १६. अभिमुखतापूर्वक जल- स्निग्ध तथा सचित्त रज से संश्लिष्ट पृथ्वी पर स्थान या निषद्या करने वाला । १७. अभिमुखतापूर्वक सचित्त पृथ्वी, सचित्त शिला, सचित्त प्रस्तरखंड, घुण-काष्ठ (तथा इसी प्रकार से अन्य) जीवप्रतिष्ठित, अंडों सहित, प्राण सहित, बीज सहित, हरित सहित, चींटियों के बिल, फफुंदी, कीचड़ और मकड़ी के जाल वाले आश्रय में स्थान या निषद्या करने वाला। १८. अभिमुखतापूर्वक मूल भोजन, कंदभोजन, स्कंधभोजन, त्वक भोजन, प्रवालभोजन, पत्रभोजन, पुष्पभोजन, फलभोजन, बीजभोजन और हरितभोजन करने वाला । १९. एक वर्ष में दस उदकलेप लगाने वाला। २०. एक वर्ष में दस मायास्थान का सेवन करने वाला । २१. बार-बार सचित्त जल से लिप्त हाथ, पात्र, दर्वी या भाजन से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य को ग्रहण कर भोगने वाला । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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