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________________ आगम विषय कोश - २ * अचौर्य महाव्रत की सूक्ष्मता * अतिचार : चारित्र और भाव ९. चारित्र से संबंधित शबल दोष १०. शबल और उसका सीमानिर्धारण ११. शबल दोष से विराधना : घट दृष्टांत १२. प्रथम पांच शबल: गुरु प्रायश्चित्त १३. बारहवें शबल का स्वरूप १४. दर्शन- ज्ञान - शबल १५. छेदार्ह प्रायश्चित्त तक शबल १६. चारित्र बिना निर्वाण नहीं | १७. चारित्र की विशुद्धि आज भी है १८. चारित्र कब तक ? १९. चारित्र से तीर्थ की अवस्थिति * चारित्र और प्रायश्चित्त..... * चारित्र उपसम्पदा * चारित्र में श्लथता के स्थान * प्रतिसेवना और सचारित्र तीर्थ १. चारित्र (संयम) के वर्गीकरण गविहो पुण सो संजमो त्ति अज्झत्थ- बाहिरो य दुहा । मण-वय-काय तिविहो, चउव्विहो चाउजामो उ॥ पंच य महव्वयाई, तु पंचहा राइभोयणे छट्ठा । सीलंगसहस्साणि य, आयारस्सप्पवीभागा ॥ (आनि ३१३, ३१४) 'संयम के विभिन्न वर्गीकरण हैंएकविध संयम - अविरति की निवृत्ति । दो प्रकार का संयम - अध्यात्म तथा बाह्य । तीन प्रकार का संयम - मनः संयम, वचनसंयम, कायसंयम । चार प्रकार का संयम पांच प्रकार का संयम छह प्रकार का संयम व्रत । - Jain Education International द्र महाव्रत द्र आचार - द्र प्रायश्चित्त चार याम। -पांच महाव्रत । पांच महाव्रत तथा रात्रिभोजनविरमण हजार शीलांग परिमाण वाला हो जाता है। * अठारह हजार शीलांग यंत्र २०५ द्र उपसम्पदा द्र प्रतिसेवना इस प्रकार आचार- संयम विभक्त होता हुआ अठारह द्र श्रीआको १ चारित्र चारित्र २. वृद्धि - हानि की अपेक्षा चारित्र के विकल्प वति हायति उभयं, अवट्टियं च चरणं भवे चउहा । खइयं तहोवसमियं, मिस्समहक्खाय खेत्तं च ॥ कामं आसवदारेसु वट्टियं पलवितं बहुविधं च । लोगविरुद्धा य पदा, लोउत्तरिया य आइण्णा ॥ नय बंधहे उविगलत्तणेण कम्मस्स उवचयो होति ।" (बृभा ६२२५- ६२२७) वृद्धि आदि की अपेक्षा से चारित्र के चार विकल्प हैं१. वृद्धि - क्षपक श्रेणि में क्षायिक चारित्र वर्धमान होता है। २. हानि - उपशम श्रेणि से गिरते समय औपशमिक चारित्र की हानि होती है। ३. वृद्धि - हानि - क्षायोपशमिक चारित्र की राग-द्वेष के उत्कर्षअपकर्ष से हानि और वृद्धि दोनों होती है। ४. अवस्थित --राग-द्वेष के उदय के सर्वथा अभाव के कारण यथाख्यात चारित्र की न हानि होती है और न वृद्धि । ५. क्षिप्तचित्त साधु परवशता से सारी प्रवृत्तियां करता है अतः उसका चारित्र भी अवस्थित है। यद्यपि यह सही है कि उसने चिरकाल तक आश्रवों का सेवन किया है, बहुत प्रकार से असमंजस प्रलाप किया है तथा लोक व लोकोत्तर विरुद्ध आचरण किया है, फिर भी क्षिप्तचित्तता के कारण वह बंध तुओं से विकल है इसलिए उसके कर्म का सघन उपचय नहीं होता । ३. शैक्षभूमि : सामायिक चारित्र की कालमर्यादा तओ सेहभूमीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- जहण्णा मज्झिमा उक्कोसा। सत्तराइंदिया जहण्णा, चाउम्मासिया मज्झिमा, छम्मासिया उक्कोसा। (व्य १०/२० ) तीन शैक्षभूमियां हैं - १. जघन्य सात अहोरात्र की । २. मध्यम चार महीनों की । ३. उत्कृष्ट छह महीनों की । (जो अचिर प्रव्रजित है, सामायिक चारित्र की कालमर्यादा में स्थित है, छेदोपस्थापनीय चारित्र में अनारोपित है, वह शैक्ष है। जो ग्रहणशिक्षा और आसवेन शिक्षा ग्रहण करता है, वह शैक्ष है । - तभा ९/२४ भिक्षु सीखता है, इसलिए शैक्ष कहलाता है। शील For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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