SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम विषय कोश - २ जेण पव्वावितो उ जस्स व अधीत पासम्मि । अधागुरू अथवा अधागुरू खलु हवंति रातीणियतरा उ ॥ तेसिं अब्भुवाणं, दंडग्गह तह य होति आहारे । उवधीवहणं विस्सामणं च संपूयणा एसा ॥ (व्यभा ४११८ - ४१२३) संग्रहपरिज्ञा संपदा (संघव्यवस्था कौशल) के चार प्रकार हैं १. बहुजनप्रायोग्यक्षेत्र — वर्षावास में ऐसे क्षेत्र की प्रतिलेखना करना, जो विस्तीर्ण और समूचे संघ - बाल, दुर्बल, ग्लान, तपस्वी, आचार्य, प्राघूर्णक आदि के लिए उपयुक्त हो। ऐसे क्षेत्र की प्रत्युपेक्षा न करने से योगवाही साधुओं का संग्रह नहीं हो सकता और वे दूसरे गच्छों में भी जा सकते हैं। २. पीठ - फलक संप्राप्ति - प्रातिहारिक (लौटाने योग्य) पीठफलक, शय्या - संस्तारक आदि की उचित व्यवस्था करना । वर्षाकाल में मुनि अन्यत्र विहार नहीं करते तथा उस समय वस्त्र आदि भी नहीं लेते। वर्षाकाल में पीठ-फलक के ग्रहण के बिना संस्तारक आदि मैले हो जाते हैं तथा भूमि की शीतलता से कुन्थु आदि जीवों की उत्पत्ति भी होती है । ३. कालसमानयन—यथासमय स्वाध्याय, उपधि की प्रत्युपेक्षा, भिक्षाटन आदि की व्यवस्था करना । ४. गुरु- पूजा - यथोचित विनय की व्यवस्था बनाए रखना । प्रव्रज्या देने वाले, अध्यापन करने वाले और दीक्षापर्याय में बड़े मुनि - इन तीनों प्रकार के गुरुओं की पूजा करना अर्थात् उनके आने पर खड़े होना, उनके दंड (यष्टि) को ग्रहण करना, उनके योग्य आहार का संपादन करना, विहार में उपकरणों का वहन तथा उनकी विश्रामणा आदि रूप वैयावृत्त्य करना । गीतार्थ - सूत्रार्थ का ज्ञाता मुनि । बहुश्रुत । १. गीतार्थ कौन ? २. गीतार्थ - बहुश्रुत के प्रकार • बहुश्रुत नियमतः चिरप्रव्रजित ० बहुसूत्र - श्रुतबहुश्रुत- बहुआगम ३. अबहुश्रुत की गीतार्थता....... * 'बहुश्रुत - गीतार्थ की चतुर्भंगी... 'अबहुश्रुत-अगीतार्थ आचार्य ........ * आचार्य के प्रकार : गीतार्थ........ * Jain Education International १९९ द्र आचार्य ४. गीतार्थ : कालज्ञ और उपायज्ञ ५. गीतार्थ और केवली : प्रज्ञप्ति में तुल्य ६. गीतार्थ और कृतयोगी में अंतर * गीतार्थ का गीतार्थं के साथ व्यवहार * गीतार्थ ही गणावच्छेदक * स्थापनाकुल और गीतार्थ * अनशन में गीतार्थ की मार्गणा * गीतार्थ और विहार * जिनकल्प आदि और गीतार्थ * दर्पिका प्रतिसेवना से अगीतार्थ * गीतार्थ और प्रायश्चित्त गणिसम्पदा ] द्र व्यवहार द्र संघ द्र स्थापनाकुल द्र अनशन द्र विहार द्र प्रतिसेवना द्र प्रायश्चित्त १. गीतार्थ कौन ? गीयं मुणितेग, विदियत्थं खलु वयंति गीयत्थं । गएण य अत्थेण य, गीयत्थो वा सुयं गीयं ॥ गीण होइ गीई, अत्थी अत्थेण होइ नायव्वो ।... ......परिज्ञातोऽर्थः छेदसूत्रस्य येन तं विदितार्थं खलु वदन्ति गीतार्थम् । सूत्रधरो नामैको नार्थधरः १ । अर्थधरो नामैको न सूत्रधरः २ । एकः सूत्रधरोऽप्यर्थधरोऽपि ३ |------ तृतीयभंगवर्त्येव तत्त्वतो गीतार्थशब्दमविकलमुवोढुमर्हति । (बृभा ६८९, ६९० वृ) For Private & Personal Use Only गीत, मुणित और परिज्ञात एकार्थक हैं। जो छेदसूत्रों के अर्थ को जानता है, वह निश्चित रूप से गीतार्थ है । अथवा गीत का अर्थ है सूत्र । जो गीत को सम्यक् प्रकार से जान लेता है, वह गीती है। जो अर्थ को सम्यक् प्रकार से लेता है, वह अर्थी है। जो सूत्र और अर्थ - दोनों को जानता है, वह गीतार्थ होता है। सूत्र - अर्थधर के तीन भंग हैं - १. एक सूत्रधर है, अर्थधर नहीं । २. एक अर्थधर है, सूत्रधर नहीं । ३. एक सूत्रधर भी है, अर्थधर भी है। तृतीय भंगवर्ती मुनि ही वस्तुतः गीतार्थ शब्द की अविकल अर्थवत्ता को वहन करने योग्य है । traणसी अगीयत्थो सुत्तेण अव्वत्तो, सुत्तेण गीयत्थो वत्तो । (निभा २७३६ की चू) जिसने निशीथसूत्र नहीं पढ़ा, वह अगीतार्थ सूत्र से www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy