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________________ प्रस्तुति "अर्हतों के अनुभवों का आगमों में सार है। वह हमारी साधना का प्राणमय आधार है।" "सत्य की अभिव्यक्ति में अक्षर सहज अक्षर बना। वन्दना उस आप्त-वाणी की करें पुलकितमना॥ भारती कैवल्य-पथ से अवतरित अधिगम्य है। सुचिर-संचित तमविदारक रम्य और प्रणम्य है।" परमाराध्य आचार्यश्री तुलसी-महाप्रज्ञ द्वारा प्रणीत ये रत्न-पंक्तियां 'श्री भिक्षु आगम विषय कोश' के लिए प्रेरणामय दीपशिखाएं हैं। आगम, निग्रंथ-प्रवचन सत्य है, अनुत्तर है, प्रतिपूर्ण है, निर्याणमार्ग और निर्वाणमार्ग है। आगम हमारा प्राण है, श्वासोच्छ्वास है। आगम असंदीन द्वीप है, असंदीन दीप है। आगम का अनुशीलन आत्मा को आह्लाद और आलोक से भर देता है। प्रस्तुत कोश उसी की एक रश्मि है। ___ वाचनाप्रमुख युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी-महाप्रज्ञ की दिव्य सन्निधि में हमें श्रुत-आराधना का एक दुर्लभ अवसर उपलब्ध हुआ है। पूज्यप्रवरचतुष्टयी (श्रीतुलसी-महाप्रज्ञ-महाश्रमण-महाश्रमणी) ने हमें आगम कोश कार्य में नियोजित कर हमारे अहोभाग्य को अभिव्यंजित किया है। पूज्यवरों के अनुग्रह-आशीर्वादमय मार्गदर्शन और आगम मनीषी मुनिश्री दुलहराजजी के निर्देशन के परिणामस्वरूप हमने सन् १९९६, जैन विश्व भारती, लाडनूं में श्रीभिक्षु आगम विषय कोश का प्रथम भाग श्रीचरणों में समर्पित किया। लगभग दो वर्ष तक इस कार्य पर विराम चिह्न लगा रहा। प्रथम भाग की सामग्री का अवलोकन कर ख्यातिप्राप्त विद्वान् स्व. डॉ. नथमल टाटिया, डॉ. सत्यरंजन बनर्जी आदि ने हमें पुन:-पुन: प्रेरित किया कि अब इस कोश का दूसरा भाग शीघ्र सामने आए। परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाप्रज्ञ के आदेश-निर्देश-अनुज्ञा-अनुयोग पुरस्सर आशीर्वाद से पुनः पांच आगमों-आचारचूला और चार छेदसूत्र-निशीथ, दशा, कल्प और व्यवहार तथा इनके व्याख्या साहित्य के कार्य का लक्ष्य बनाया गया। प्रारंभ में यद्यपि इस कोशखंड में छेदसूत्रों के संग्रहण की परिकल्पना-परियोजना थी. किन्त आचारचला और निशीथ में प्रतिषेध और प्रायश्चित्त की संबंध-श्रृंखला के कारण हमने आचारचूला का भी इस कोश में संग्रहण किया है। आचारचूला प्रतिषेध सूत्र है, इसमें आचार संबंधी विधिनिषेधों का निरूपण है। निशीथ प्रायश्चित्त सूत्र है, इसमें आचार-भंग की प्रायश्चित्त विधि प्रतिपादित है। हमारी श्रुतयात्रा का दूसरा प्रस्थान प्रारंभ हुआ। यह यात्रा उस यात्रा की अपेक्षा अधिक जोखिमभरी थी क्योंकि इस बार हमें छेदसूत्रों की पदयात्रा करनी थी। छेदसूत्रों के लघुतम शब्द शरीर से विराट् अर्थ तक पहुंचना, उत्सर्ग और अपवाद की व्यापक सीमा रेखाओं के मर्म को समझकर ग्राह्य का संग्रहण करना तथा उन्हें विषयों में आबद्ध करना दुरूह कार्य था, किन्तु गुरु का अनुग्रह बरसा, सक्रिय मार्गदर्शन प्राप्त हुआ, तब ऊबड़-खाबड़ मार्ग भी राजमार्ग बन गया। अंधेरा ढल गया। प्रकाश का अवतरण हो गया। लगभग साढे छह हजार (६५००) पृष्ठों वाले इस विपुल साहित्य में समाविष्ट समग्र विषयों का संग्रहण न कर उन विषयों का चुनाव किया गया है, जो हमारी दृष्टि में प्रधानता से समवसृत हुए हैं। श्री भिक्षु आगम विषय कोश के इस द्वितीय भाग में मात्र एक सौ चौबीस (१२४) विषय अकारादि क्रम से समवतरित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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