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________________ आगम विषय कोश - २ माया के चार प्रकार हैं- बांस की जड़ के समान, मेंढे सींग के समान, गोमूत्रिका के समान तथा छिलते बांस की छाल के समान । लोभ के चार प्रकार हैं- कृमिराग के समान, कर्दम के समान, कुसुंभराग के समान तथा हरिद्राराग के समान । ( क्रोध, मान, माया और लोभ के चार-चार प्रकारों में प्रत्येक का प्रथम प्रकार – अनंतानुबंधी द्वितीय प्रकार तृतीय प्रकार चतुर्थ - अप्रत्याख्यानी प्रत्याख्यानी संज्वलन Jain Education International १७३ - द्र श्रीआको १ कषाय) २. मान में क्रोध की नियमा कोमा अथवा वा। माणे पुण कोहो णियमा अथ । तम्हा कोहीओ माणी बहुदोसतरो । (निभा ३११३ की चू) क्रोध में मान वैकल्पिक है। मान में क्रोध की नियमा है । अतः क्रोधी से मानी बहुतर दोष वाला है । ३. कषाय और दृष्टांत अवहंत गोण मरुए, चउण्ह वप्पाण उक्करो उवरिं । छोढुं मए मुवट्ठाऽतिकोवे ण देमु पच्छित्तं ॥ वणिधूयाऽचकारियभट्टा अट्ठसुयमग्गतो जाया । वरग पडिसेह सचिवे, अणुयत्तीह पदाणं च ॥ निवचिंत विकालपडिच्छणा यदारं न देमि निवकहणा । खिंसा निसिनिग्गमणं, चोरा सेणावतीगहणं ॥ नेच्छति जलूगवेज्जगगहणं तं पि य अणिच्छमाणी उ । गिण्हावेइ जलूगा, धणभाउग कहण मोयणया ॥ सयगुणसहस्सपागं, वणभेसज्जं जतिस्स जायणता । तिक्खुत्त दासिभिंदण, न य कोव सयं पदाणं च ॥ पासत्थि पंडरज्जा, परिण्ण गुरुमूल णातअभियोगा । पुच्छा तिपडिक्कमणे, पुव्वब्भासा चउत्थम्मि ॥ अडिक्कमसोहम्मे अभिओगा, देवि सक्कओसरणे । हत्थिणि वायणिसग्गो, गोतमपुच्छा य वागरणं ॥ महुरा मंगू आगम, बहुसुत वेरग्ग सड्डपूया य । सातादिलोभ णितिए, मरणे जीहा य णिद्धमणे ॥ (दशानि १०५ - ११२ ) कषाय • क्रोध : मरुक दृष्टांत एक ब्राह्मण बैल को लेकर खेत जोतने के लिए गया । खेत जोतता हुआ बैल श्रांत होकर गिर गया। ब्राह्मण ने उसे चाबुक मारा। बैल उठ नहीं सका। ब्राह्मण ने चार केदारों के ढेलों से उसे पीटा। बैल मर गया। वह ब्राह्मण गोहत्या के पाप की विशुद्धि के लिए अन्य ब्राह्मणों के पास उपस्थित हुआ । उन्हें सारी घटना सुनाई। ब्राह्मणों ने कहा- तुम अति क्रोधी हो अतः तुम्हें प्रायश्चित्त नहीं देंगे। ० मान: अत्वंकारी भट्टा दृष्टांत धनश्रेष्ठी के आठ पुत्रों के पश्चात् एक पुत्री हुई, जिसका नाम भट्टा रखा गया। माता-पिता ने सभी से कह रखा था कि इसे कोई 'चूं' तक न कहे। अतः उसका नाम अच्चकारीअत्यंकारी भट्टा हो गया। वह रूपवती थी । अनके व्यक्ति उससे विवाह करना चाहते थे, तब पिता ने कहा- जो इसकी आज्ञा में रहेगा, अपराध होने पर भी इसे कुछ नहीं कहेगा, वही इसका जीवनसाथी बनेगा। मंत्री सुबुद्धि ने इस संकल्प को मान्य किया । विवाह हुआ । भट्टा ने पति से कहा- आप सायं राजकार्य से निवृत्त हो शीघ्र आया करें। मंत्री ने वैसा ही किया। राजा ने सोचा- यह इतनी जल्दी क्यों जाता है ? पूछताछ करने पर राजपुरुषों ने बताया - यह अपनी पत्नी की आज्ञानिर्देश का पालन करता है। एक दिन राजा ने उसे रोका। विलम्ब से घर पहुंचा। भट्टा ने द्वार नहीं खोला, अवहेलना की। मंत्री ने कहा- मैं जाता हूं, तुम गृहस्वामिनी बनकर रहना । उसने द्वार खोला और अभिमान वश अकेली जंगल में चली गई। चोर उसे पकड़कर अपने सेनापति के पास ले गए। सेनापति ने भोगों की प्रार्थना की, प्रस्ताव अस्वीकृत करने पर उसे जलौक वैद्य के हाथों बेच दिया। उसने भी भोगप्रार्थना की। भट्टा ने स्वीकृति नहीं दी, तब वैद्य ने रोष में कहा- पानी में से मेरे लिए जलौका लेकर आओ। वह शरीर पर मक्खन चुपड़ कर जल में अवगाहन करती और जौंक पकड़ती। वैद्य उसके शरीर से रक्त निकाल कर बेचता । न चाहते हुए भी शील की रक्षा के लिए उसने यह कार्य किया। रक्तस्राव के कारण वह रूपलावण्यविहीन हो गई। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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