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________________ आगम विषय कोश-२ १५७ कर्म मोहनीय कर्म की दो प्रकृतियां २९. स्थिरनाम ३६. दुःस्वरनाम १. दर्शन मोहनीय २. चारित्र मोहनीय ३०. अस्थिरनाम ३७. आदेयनाम दर्शनमोहनीय की तीन प्रकृतियां ३१. शुभनाम ३८. अनादेयनाम १. सम्यक्त्व वेदनीय २. मिथ्यात्व ३२. अशुभनाम ३९. यश:कीर्त्तिनाम वेदनीय ३. सम्यक्त्वमिथ्यात्ववेदनीय ३३. सुभगनाम ४०. अयश:कीर्तिनाम चारित्रमोहनीय की दो प्रकृतियां ३४. दुर्भगनाम ४१. निर्माणनाम १. कषायवेदनीय २. नोकषायवेदनीय ३५. सुस्वरनाम ४२. तीर्थंकरनाम कषायवेदनीय की सोलह प्रकृतियां गोत्र कर्म की दो प्रकृतियां१-४. अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ १. उच्च गोत्र २. नीच गोत्र ५-८. अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ अन्तराय कर्म की पांच प्रकृतियां९-१२. प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ १. दानान्तराय ४. उपभोगान्तराय १३-१६. संज्वलन क्रोध, मान, माया ,लोभ २. लाभान्तराय ५. वीर्यान्तराय नोकषायवेदनीय की नौ प्रकृतियां ३. भोगान्तराय १. स्त्रीवेद ४. हास्य ७. भय -प्रज्ञा २३/२४-५९) २. पुरुषवेद ५. रति ८. शोक २. भयमोहकर्म की प्रकृतियां ३. नपुंसकवेद ६. अरति ९. जुगुप्सा जे भिक्खू अप्पाणं..."परं बीभावेति। ____ आयुष्यकर्म की चार प्रकृतियां (नि ११/६५, ६६) १. नरकायुष्य ३. मनुष्यायुष्य दिव्व-मणुय-तेरिच्छं, भयं च आकम्हिकं तुणायव्वं। २. तिर्यंचायुष्य ४. देवायुष्य एक्केक्कं पि य दुविहं, संतमसंतं च णायव्वं ॥ * क्षेत्र-काल की स्निग्धता : दीर्घ आयु द्र चिकित्सा कामं सत्तविकप्पं, भयं समासेणं तं पुणो चउहा." __नामकर्म की बयालीस प्रकृतियां रक्खस-पिसाय-तेणाइएसु उदयग्गि-जड्डमाईसु. १. गतिनाम १५. पराघातनाम इहलोकभयं परलोकभयं आदाणभयं आजीवण२. जातिनाम १६. आनुपूर्वीनाम भयं अकस्माद्भयं मरणभयं असिलोगभयं एयं सत्तविहं ३. शरीरनाम १७. उच्छ्वासनाम भयमुत्तं। ४. शरीर अंगोपांग नाम १८. आतपनाम इहलोगभयं मणुयभए समोतरति, परलोगभयं दिव्व५. शरीर बंधन नाम १९. उद्योतनाम तिरियभएसु समोतरति। आदाणे आजीवण-मरण६. शरीर संघात नाम २०. विहायगतिनाम असिलोगभयं च एते चउरो वितिसुदिव्वादिएसुसमोतरंति। ७. शरीर संहनन नाम २१. त्रसनाम (निभा ३३१४, ३३१५, ३३१७ चू) ८. संस्थाननाम २२. स्थावरनाम जो भिक्षु स्वयं को या दूसरों को डराता है, वह प्रायश्चित्त ९. वर्णनाम २३. सूक्ष्मनाम का भागी है। मोहकर्म की उत्तर प्रकृति है भय। वह चार १०. गंधनाम २४. बादरनाम प्रकार से उत्पन्न होता है११. रसनाम २५. पर्याप्तकनाम दिव्यभय-राक्षस, पिशाच आदि से उत्पन्न । १२. स्पर्शनाम २६. अपर्याप्तकनाम मानुष्य भय-चोर आदि से उत्पन्न। १३. अगुरुलघुनाम २७. साधारणशरीरनाम तैरश्चिक भय-जल, अग्नि, वाय. हाथी आदि से उत्पन्न। १४. उपघातनाम २८. प्रत्येकशरीरनाम अकस्मात् भय-निर्हेतुक भय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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