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________________ आगम विषय कोश- २ गमणं पुव्वाउत्तेचाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलंगसूवे, कप्पति से चाउलोदणे पडिगाहित्तए नो से कप्पति भिलंगसूवे डिगाहित्तए । तस्स णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविट्ठस्स कप्पति एवं वदित्तए - समणोवासगस्स पडिमापडिवन्नस्स भिक्खं दलयह। तं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणं केइ पासित्ता वदिज्जा - केइ आउसो ! तुमंसि वत्तव्वं सिया । समणोवासए पडिमापडिवन्नए अहमंसीति वत्तव्वं सिया । से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे एक्कारस मासे विहरेज्जा ।..... (दशा ६/१, ८-१८) १५३ ***** ग्यारह उपासक - प्रतिमाएं प्रज्ञप्त हैं१. दर्शन श्रावक - यह पहली प्रतिमा है। इसमें सर्वधर्म विषयक रुचि होती है, किन्तु अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान और पौषधोपवास सम्यक् प्रतिष्ठित नहीं होते । २. कृतव्रतधर्म -- यह दूसरी प्रतिमा है। इसमें सर्वधर्म विषयक रुचि होती है और प्रतिमाधारी उपासक अनेक शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि का सम्यक् प्रतिष्ठापन करता है, किन्तु वह सामायिक और देशावकाशिक का सम्यक् अनुपालन नहीं करता। (शील - चार शिक्षाव्रत । व्रत - पांच अणुव्रत । गुण - तीन गुणव्रत । विरमण - विषयों का यथाशक्ति परित्याग । प्रत्याख्यान - नमस्कारसहिता आदि का स्वीकार । पौषधशरीर-संस्कार वर्जन तथा ब्रह्मचर्य का स्वीकार । उपवासआहार का परित्याग । - सू. २/२/७२ का भाष्य) ३. कृतसामायिक – यह तीसरी प्रतिमा है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धि के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक सामायिक और देशावकाशिक व्रत का सम्यक् अनुपालन करता है । ४. पौषधोपवासनिरत- यह चौथी प्रतिमा है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा को प्रतिपूर्ण पौषध का सम्यक् अनुपालन करता है। 1 Jain Education International ५. एकरात्रिकी - यह पांचवीं प्रतिमा है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक 'एकरात्रिकी उपासक प्रतिमा उपासकप्रतिमा का सम्यक् अनुपालन करता है तथा स्नान नहीं करता, दिवाभोजी होता है, धोती के दोनों अंचलों को कटिभाग में टांक लेता है-नीचे से नहीं बांधता, दिवा ब्रह्मचारी होता है, रात्रि में अब्रह्मचर्य का परिमाण करता है। वह इस विहारचर्या से विहरण करता हुआ जघन्य एक दिन या दो दिन या तीन दिन यावत् उत्कृष्ट पांच मास तक इस प्रतिमा का पालन करे। ६. दिन और रात में ब्रह्मचारी - यह छठी प्रतिमा है । इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक दिन और रात में ब्रह्मचारी रहता है, किन्तु सचित्त का परित्याग नहीं करता । कालमान छह मास । ७. सचित्त - परित्यागी - यह सातवीं प्रतिमा है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक सम्पूर्ण सचित्त का परित्याग करता है। कालमान सात मास । ८. आरम्भ-परित्यागी—– यह आठवीं प्रतिमा है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक आरम्भहिंसा का परित्याग करता है। कालमान आठ मास । ९. प्रेष्यारम्भ - परित्यागी - यह नौवीं प्रतिमा है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक प्रेष्य आदि से हिंसा करवाने का परित्याग करता है। कालमान नौ मास । १०. उद्दिष्ट भक्त - परित्यागी - यह दसवीं प्रतिमा है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक उद्दिष्ट भोजन का परित्याग करता है। वह शिर को क्षुर से मुंडवा लेता है या चोटी रख लेता है। घर के विषय में एक बार या बार-बार पूछे जाने पर वह दो प्रकार की भाषा बोल सकता है - जानता हो तो कहता है- 'मैं जानता हूं' और न जानता हो तो कहता है- 'मैं नहीं जानता ।' कालमान दस मास । ११. श्रमणभूत—यह ग्यारहवीं प्रतिमा है। इसमें पूर्वोक्त उपलब्धियों के अतिरिक्त प्रतिमाधारी उपासक क्षुर से मुंडन करता या लुंचन करता है। वह साधु का आचार, भांडउपकरण एवं वेश धारण करता है। श्रमण-निर्ग्रथों के धर्म का सम्यक् प्रकार से काया से स्पर्श करता है, पालन करता है, चलते समय युगप्रमाण ( चार हाथ ) भूमि को देखता हुआ चलता है, त्रस प्राणियों को देखकर अपने पैर उठा लेता है, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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