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________________ आगम विषय कोश-२ १३९ उपधि वाली क्रमणिका, जो मध्य या अन्यत्र भाग में अखण्ड हो। ४२. क्रमिणका पहनने के हेतु : चक्षुदौर्बल्य आदि ० प्रमाण कृत्स्न-दो, तीन आदि तल वाली क्रमणिका। विह अतराऽसहुसंभम, कोट्ठाऽरिसचक्खुदुब्बले बाले। इसके अनेक प्रकार हैं अज्जा कारणजाते, कसिणग्गहणं अणुण्णायं ॥ खल्लक-आधे चरण को आच्छादित करने वाला अर्धखल्लक कुट्ठिस्स सक्करादीहि वा विभिण्णो कमो मधूला वा। और पूरे चरण को ढकने वाला समस्त खल्लक। बालो असंफरो पुण, अज्जा विहि दोच्च पासादी॥ वागुरा-अंगुलियों को आच्छादित कर पैर के उपरिभाग को (बृभा ३८६२, ३८६५) भी ढकने वाली। दस कारणों से कृत्स्न चर्म का ग्रहण अनुज्ञात हैखपुसा-टखने तक पैर को ढकने वाली। कोशक-पादनखों की सुरक्षा के लिए जिसमें अंगूठे-अंगुलियों ___० बीहड़ मार्ग पार करना हो। ० कोई मुनि ग्लान हो अथवा ग्लान के लिए दवा लाना हो। को डाला जाता है। ० कोई मुनि सुकुमार चरणों वाला (राजकुमार आदि) हो। जंघा-पिंडली को स्थगित करने वाली पादरक्षिका। अर्धजंघा-आधी जंघा को स्थगित करने वाली पादरक्षिका। ० चोर, श्वापद आदि का संक्षोभ हो। कष्ठ रोगी. जिसके रक्त पीब से स्फटित पैरों में कंकर जो कृष्ण आदि पांच वर्षों से उज्ज्वल है, वह वर्णकृत्स्न और तीन से अधिक बन्धनों से बद्ध है, वह बन्धन कृत्स्न है। आदि की चुभन से महती पीड़ा होती हो। ० अर्श या पादगण्ड होने पर क्रमणिका बांधनी पड़ती है। ४१. क्रमणिका का निषेध क्यों? ० असंवृत बाल (जिसके पैरों का संतुलन न हो)। नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा कसिणाई ० आर्या को मार्ग पार कराने के लिए चोर आदि का भय होने चम्माइंधारित्तए वा परिहरित्तए वा॥ (क ३/५) पर वृषभ पदत्राण पहनकर पार्श्व भाग में हैं। गव्वो णिम्मद्दवता, णिरवेक्खो निद्दतो णिरंतरता। ० संघसंबंधी कोई कार्य हो। भूताणं उवघाओ, कसिणे चम्मम्मि छद्दोसा। ० दुर्बल आंखों वाला हो। (पैरों का मर्दन करना, उपानत् (बृभा ३८५६) निर्गन्थ और निर्यन्थी कत्स्न (वर्ण, प्रमाण आदि से पहनना आदि रूप पैर-परिकर्म चक्षु के लाभ के लिए होता पूर्ण) चर्म क्रमणिका का ग्रहण और उपयोग नहीं कर है। -द्र चिकित्सा) सकते। ४३. रजोहरण के प्रकार कृत्स्न चर्म पहनने से छह दोष उत्पन्न होते हैं- कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाइं पंच ० गर्व-मैं उपानद्धारी हूं-ऐसा गर्व हो सकता है। रयहरणाई धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तं जहा-उण्णिए निर्दिवता-पैर स्वभावतः मृदु होते हैं। क्रमणिका कठोर उट्टिए साणए वच्चापिच्चिए मुंजापिच्चिए नामपंचमे। स्पर्श वाली होती है। क्रमणिका से जीवोपघात की अधिक और्णिकम् ऊरणिकानामूर्णाभिर्निर्वृत्तम्, औष्ट्रिकं संभावना रहती है। उष्ट्ररोमभिर्निर्वृत्तम्, सानकं सनवृक्षवल्काद् जातम्, • निरपेक्षता-नंगे पांव चलने वाला कांटों आदि के प्रति वच्चकः-तृणविशेषस्तस्य चिप्पकः-कुट्टितः त्वग्रूपः सतर्क रहता है। क्रमणिकाधारी जीवों के प्रति भी निरपेक्ष हो तेन निष्पन्नं वच्चकचिप्पकम, मुजः-शरस्तम्बस्तस्य जाता है। चिप्पकाद् जातं मुञ्जचिप्पकम्। (क २/२९ वृ) निर्दयता-जीवों के प्रति करुणा का अभाव। ० निरंतरता-क्रमणिका की निरंतर भूमिस्पर्शिता के कारण वच्चक मुंज कत्तंति चिप्पिउं तेहि वूयए गोणी। पैर के नीचे समागत जीव बच नहीं पाता है। पाउरणऽत्थुरणाणि य, करेंति देसिं समासज्ज॥ ० भूतोपघात-प्राणियों का वध। क्वचिद् धर्मचक्रभूमिकादौ देशे वच्चकं दर्भाकारं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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