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________________ आचार्य ६२ आगम विषय कोश-२ अफरुस-अणवल-अचवलमकुक्कुयमदंभगोमसीभरगा। • समाहित-उसका चित्त उपधान आदि करने में सम्यक् सहित-समाहित-उवहित-गुणनिधि आयारकुसलो उ॥ प्रतिष्ठित होता है। वह उपशम भाव में रहता है। अब्भुटाणं गुरुमादी, आसणदाणं च होति तस्सेव। ० उपहित-ज्ञान आदि में रमण करता हुआ आत्मा की अधिक गोसे व य आयरिए, संदिसहे किं करोमि त्ति॥ निर्मलता चाहता हुआ, सदा गुरुसन्निधि में रहता है। अब्भासकरणधम्मुज्जुयाण अविभत्तसीसपाडिच्छे। , पडिरूवजोग जह पेढियाय जुंजण करेति धुवं॥ ___ आचारचूला-आचारांग का द्वितीय श्रुतस्कंध। पूयं जधाणुरूवं, गुरुमादीणं करेति कमसो उ। द्र आगम ल्हादीजणणमफरुसं, अणवलया होतऽकुडिलत्तं॥ आचार्य-परम आचार कुशल और सामाचारी-प्रशिक्षण अचवलथिरस्स भावो, अप्फंदणया य होति अकुयत्तं। में निपुण । तीर्थंकर की अनुकृति । जो शिष्यों उल्लावलालसीभर, सहिता कालेण नाणादी॥ की वाचना देने वाले। सम्मं आहितभावो, समाहितो उवहितो समीवम्मि। नाणादीणं तु ठितो, गुणनिहि जो आगर गुणाणं॥ १. आचार्य कौन? अर्हता के स्थान (व्यभा १४८१-१४८७) २. प्रशस्य आचार्य : आगाढप्रज्ञ आदि ३. गणधारण का लक्ष्य : सागर की उपमा आचारकुशल वह होता है, जो ० चन्द्र, सरोवर एवं चक्री की उपमा ० अभ्युत्थान--गुरु आदि के आने पर खड़ा होता है। ० श्रीगृह की उपमा : तोसलिक दृष्टांत ० आसन-उन्हें आसन प्रदान करता है। * आचार्य अर्हत् की अनुकृति द्र संघ ० किंकर-प्रात: गुरुचरणों में उपस्थित हो पछता है-किं ४. आचार्य के प्रकार : प्रवाजनाचार्य..... करोमि-मुझे क्या करना है? आज्ञा दें। * वाचनाचार्य के प्रकार द्र वाचना ० अभ्यासकरण-सदा गुरु के उपपात में रहता है। * वाचना से महानिर्जरा द्र वैयावृत्त्य ० अविभक्ति-शिष्य और प्रतीच्छकों में अभेदबुद्धि रखता है। * आचार्य (अनुयोगदाता) के छत्तीस गुण० प्रतिरूपयोग-कायिक विनय आदि में जागरूक होता है। * आर्यकालक का स्वर्णभूमि-गमन - द्र अनुयोग ० नियोग-वस्त्र आदि के उत्पादन में जो नियोजनीय है, उसे * आचार्य अर्थ के उत्प्रेक्षक उस कार्य में नियुक्त करता है। * उपाध्याय सूत्रवाचक द्र संघ ० पूजा-गुरु आदि का यथायोग्य सम्मान-बहुमान करता है। | ५. बहुश्रुत-गीतार्थ-चतुर्भंगी : गणधारण के अर्ह ० अपरुष-मन:प्रह्लादकारी वचन बोलता है। ___* भावी आचार्य : देशाटन अनिवार्य द्रविहार ० अवलय-ऋजु होता है। ६. गणधारण के योग्य की परीक्षाविधि ० अचपल-स्वभाव से स्थिर होता है। ७. गणधारण से पूर्व स्थविर पृच्छा _ . गणधारक को तीन शिष्य ० अकुत्कुच-मुख आदि से विरूपचेष्टा नहीं करता। ८. एकपाक्षिक आचार्य-पदयोग्य ० अदम्भक-वंचनायुक्त वचन नहीं बोलता। । ० एकपाक्षिक के विकल्प ० असीभरक-बोलता हुआ दूसरों पर थूक नहीं उछालता। ० एकपाक्षिक न होने से हानि : अन्य विकल्प उल्लिखित अभ्युत्थान आदि क्रियाएं विनयबहुल ९. नवनिर्वाचित आचार्य का दायित्व वीर्याचार की सूचक हैं। |१०. आचार्य आदि पद : न्यूनतम संयमपर्याय-श्रुत ० सहित-यह 'काले कालं समायरे' का प्रतिरूप है। आचार ११. अल्प पर्याय वाला श्रमण आचार्य क्यों? कैसे? कुशल साधु स्वाध्याय, प्रतिलेखना, तप आदि सब कार्य * अभिषेक : आचार्य पदयोग्य द्र अभिषेक समय पर करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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