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________________ आगम विषय कोश-२ आचार १. आचार के प्रकार ३. ज्ञानाचार के प्रकार .."दव्वायारो य भावमायारो।... काले विणये बहुमाने, उवधाने तहा अनिण्हवणे। (निभा ५) वंजणअत्थतदुभए, अट्ठविधो णाणमायारो॥ आचार के दो प्रकार हैं-द्रव्याचार और भावाचार। (निभा ८) ज्ञान आचार के आठ प्रकार हैं-काल, विनय, बहुमान, ० द्रव्य आचार-अनाचार णामण-धोवण-वासण-सिक्खावण-सुकरणाविरोधीणि। उपधान, अनिहवन, व्यंजन (सूत्र), अर्थ, तदुभय (सूत्रार्थ) । दव्वाणि जाणि लोए, दव्वायारं वियाणाहि॥ ४. काल ज्ञानाचार : विद्यासाधन का भी काल को आउरस्स कालो, मइलंबरधोवणे व्व को कालो। णामणं पडुच्च आयारमंतो तिणिसो अणायारमंतो सोपोआयो गानो जदि मोक्खहेउ नाणं, को कालो तस्सऽकालो वा॥ किमिरागो।वासणाए कवेल्लुगादीणि आयारमंताणि, वइरं आहारविहारादिसु, मोक्खधिगारेसु काल अक्काले। अणायारमंतं। सुक-सालहियादिसिक्खावणं पडुच्च जह दिट्ठो तह सुत्ते, विजाणं साहणे चेव। आयारमंताणि, वायस-गोत्थूभगादि अणायारमंताणि। (निभा १०, ११) सुकरणं सुवर्णं आयारमंतं, घंटालोहमणायारमंतं।अविरोहं शिष्य ने पूछा-रोगी का क्या काल? मलिन वस्त्र पडुच्च पयसक्कराणं आयारो, दहितेल्ला य विरोधे । धोने का क्या काल? यदि ज्ञान मोक्ष का हेतु है, तो उसका अणायारमंता। (नि क्या काल और क्या अकाल? गुरु ने कहा-आहार-विहार मोक्ष के साधक हैं, उनका जो द्रव्य विवक्षित रूपों में परिणत हो सकता है, वह भी काल होता है। सत्रका निर्देश है-भिक्षु अकाल में भिक्षाटन आचारवान् है और जो परिणत नहीं हो सकता, वह अनाचारवान् न करे। वर्षाकाल में विहार न करे. ऋतबद्ध काल में करे। है। उसके छह प्रकार हैं रात में न करे, दिन में करे। इसी प्रकार श्रुत अध्ययन का भी आचारवान् द्रव्य अनाचारवान् द्रव्य काल-अकाल होता है। नामन (झुकना) तिनिश . विद्यासाधन का भी काल होता है। कुछ विद्याएं धावन (धोना) कुसुंभराग कृमिराग कृष्णपक्ष की चतुर्दशी या अष्टमी को ही साधी जाती हैं। वासन (सुगंध देना) ईंट, खपरैल वज्र अकाल में साधी गई विद्या उपघातकारी होती है। इसी शिक्षापण (शिक्षण) शुक-सारिका कौआ, बकरा प्रकार काल में पढ़ा हुआ श्रुत निर्जरा का हेतु और अकाल सुकरण (सरलता से रूपांतरण) सुवर्ण घंटालोह में पठित श्रुत उपघातकारक होता है। अविरोधी (अविरुद्ध मिश्रण) दूध-चीनी दही-तैल ५. विनय ज्ञानाचार : हरिकेश-श्रेणिक दृष्टांत २. भाव आचार के प्रकार णीयासणंजलीपग्गहादिविणयो तहिं तु हरिएसो।" नाणे दंसण-चरणे, तवे य विरिये य भावमायारो... हरिएसो"अभयेण गहितो। एस चोरोत्ति रणो उवणीओ। पुच्छीओ सब्भावो कहिओ। राया भणति(निभा ७) जइ विज्जाओ देसि तो जीवसि। तेण पडिस्सुयं-देमि त्ति। आचार के पांच प्रकार हैं आसणत्यो पढियो वाहेति, ण वहइ।अभओ पुच्छिओ किं १. ज्ञान आचार ४. तप आचार ण वहति।अभओ भणति-अविणय गहिया, एस हरिकेसो २. दर्शन आचार ५. वीर्य आचार भूमित्थो तुमंसीहासणत्थो। तओ तस्स अण्णं आसणं दिण्णं। ३. चारित्र आचार राया णीततरो ठितो। सिद्धा। (निभा १३ चू) एरण्ड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016049
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages732
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size17 MB
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