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________________ सिदः ७०० सिद का निर्वचन १५. सामायिक का महत्त्व रहा है, किंतु मिथ्यात्व को अभी तक प्राप्त तत्थज्झयणं सामाइयं ति समभावलक्खणं पढमं । नहीं हुआ है, उसकी आत्म-विशुद्धि । गुणस्थान .जं सव्वगुणाहारो वोमं पिव सव्वदव्वाणं ।। का दूसरा प्रकार। (द्र. गुणस्थान) (विभा ९०५) सिद्ध-कर्मबंधन से मुक्त जीव, परमात्मा । समभावलक्खणं सव्वचरणादिगणाधारं वोमंपिव सव्वदवाणं सव्वविसेसलद्धीण य हेतुभूतं पायं पावअंकुस १. सिद्ध का निर्वचन दाणं । (अनुचू पृ१८) २. सिद्धों का स्वरूप आवश्यक सूत्र का प्रथम अध्ययन है-सामायिक। ३. सिद्ध मंगल सामायिक का लक्षण है-समभाव । जैसे आकाश ४. सिद्ध के एकार्थक सब द्रब्यों का आधार है, वैसे ही यह चारित्र आदि गुणों ५. सिद्ध के निक्षेप ६. सिद्धकेवलज्ञान के प्रकार का आधार है। यह सब विशिष्ट लब्धियों में हेतुभूत बनता है। इससे पापों पर अंकुश लगता है। ७. सिद्धों के प्रकार • तीर्थ सिद्ध, अतीर्थ सिद्ध.... अहवा तब्भेय च्चिय सेसा जंदसणाइयं तिविहं । • सिद्ध होने के स्थान न गुणो य नाण-दसण-चरणब्भहिओ जओ अत्थि ।। * प्रत्येकबुद्ध सिद्ध (विभा ९०६) (द्र. प्रत्येकबुद्ध) * सिद्धि का मार्ग : साध्य-सिद्धि का क्रम षडावश्यक में सामायिक प्रथम आवश्यक है। (द्र. मोक्ष) चविशति आदि शेष पांच आवश्यक एक अपेक्षा से * कर्मक्षय की प्रक्रिया (द्र. गुणस्थान) सामायिक के ही भेद हैं। क्योंकि सामायिक ज्ञान-दर्शन * अनादि कर्मसंबंध का अंत कैसे? (द. कर्म) चारित्र रूप है और चविंशति आदि में इन्हीं गुणों का * सिद्धिगमन के योग्य (द्र. भव्य) समावेश है । ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही प्रधान गुण हैं । ८. सिद्धों के गुण .."सामाइएणं सावज्जजोगविरई जणयइ। ९. सिद्धों का सुख (उ २९९) १०. सिद्ध अनादि सामायिक से सावद्ययोग-असत् प्रवृत्ति की विरति ११. सिद्धों की कडवं गति होती है। १२. सिखों की अवगाहना चौदह पूर्वो का सार १२. सिद्ध होने से पूर्व की अवगाहना संखिवणं संखेवो सो जं थोवक्खरं महत्थं च । १४. सिद्धों का संस्थान सामाइयं संखेवो चोहसपूव्वत्थपिंडो त्ति ।। १५. सिद्धों की अवस्थिति (विभा २७९६) . सिद्धों का अवगाह क्षेत्र और स्पर्शना - सामायिक का एक निर्वचन है-संक्षेप । इसमें अक्षर । * सिद्धालय (द. ईषत्-प्रारभारा) कम और अर्थ महान् है। संक्षेप में सामायिक चौदह १६. परिमित क्षेत्र में अनंत सिद्ध कैसे? पूर्षों का सार है । सास्वादन सम्यक्त्व-औपशमिक-सम्यक्त्व से १. सिद्ध का निर्वचन गिरने वाला जीव जब मिथ्यात्व को प्राप्त दीहकालरयं जं तु कम्मं से सिअमट्टहा । होता है, तब अन्तराल काल में प्राप्त होने सियं धंतं ति सिद्धस्स सिद्धत्तमुवजाय ॥ वाला सम्यक्त्व । (द्र. सम्यक्त्व) सितं बद्धं.."मातं"ध्यानानलेन दग्धं "सिद्धः सास्वादन सम्यग्दृष्टि - जो जीव उपशम सम्यक्त्व (आवनि ९५३ हाव १ पृ.२९३) से च्युत होकर मिथ्यात्व की ओर अग्रसर हो सित का अर्थ है-बद्ध और ध्मात का अर्थ है-दग्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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