SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 742
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामायिक और कर्मस्थिति सामायिक सिद्ध नहीं बन सकता, अतः ये दोनों सामायिक सब सिद्धों यास्तु प्रथमसम्यक्त्वलाभकालेऽन्तरकरणप्रविष्टस्याद्वारा स्पृष्ट है । सब सिद्धों को बुद्धि से कल्पित असंख्येय वस्थिताध्यवसायस्य सम्यक्त्वादिलब्धयो भवन्ति ता भागों में विभक्त करने पर कहा जा सकता है कि देश- अनाकारोपयोगेऽपि भवन्ति न कश्चिद् दोषः । अन्तरकरणे विरति सामायिक असंख्येय भाग न्यून सिद्धों के द्वारा च वर्तमानः सम्यक्त्वश्रतसामायिकलाभसमकालमेव स्पृष्ट है। कोई जीव देशविरति सामायिक का स्पर्श किये कश्चिदतिविशुद्धत्वाद् देशविरतिम्, अपरस्त्वतिविशुद्धबिना ही मुक्त हो जाते हैं । जैसे-मरुदेवी। तरत्वात् सर्वविरतिमपि प्रतिपद्यते, इत्यौपशमिकसम्य६. सामायिक और ज्ञान क्त्वलाभकालेऽवस्थितपरिणामस्यानाकारोपयोगवतिनोऽपि दोसु जुगवं चिय दुगं भयणा देसविरइए य चरणे य।। चत्वार्यपि सामायिकानि भवन्ति । ओहिम्मि न देसवयं पडिवज्जइ होइ पडिवन्नो ।। (विभामवृ २ पृ१६०) देसव्वयवज्ज पवनो माणसे समंपि च चरित्तं । सर्वप्रथम सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय अंतरकरण भवकेवले पवन्नो पुव्वं सम्मत्त-चारित्तं ॥ में प्रविष्ट जीव के परिणाम अवस्थित होते हैं । अवस्थित (विभा २७२८,२७२९) परिणाम के कारण अनाकार उपयोग में भी सम्यक्त्व • मतिज्ञान और श्रुतज्ञान में सम्यक्त्व और श्रत सामा- आदि लब्धियां प्राप्त हो सकती हैं। यिक की प्राप्ति युगपत होती है । देशविरति और सम्यक्त्व और श्रुत की प्राप्ति के साथ ही परिणामसर्वविरति सामायिक की भजना है। विशुद्धि के कारण देशविरति और सर्वविरति सामायिक ० अवधिज्ञान में सम्यक्त्व, श्रुत और देश विरति सामा- भी प्राप्त हो सकते हैं । इस प्रकार औपशमिक सम्यक्त्व यिक पूर्व-प्रतिपन्न होते हैं। उसमें देशविरति सामा- प्राप्ति के समय अवस्थित परिणामी जीव अनाकार उपयिक की प्रतिपत्ति नहीं होती, सर्व विरति सामायिक योग में भी चारों सामायिक प्राप्त कर सकता है। की प्रतिपत्ति हो सकती है। ० मन:पर्यवज्ञान में देशविरति सामायिक को छोड़कर . ११. सामायिक और कर्मस्थिति तीन सामायिक पूर्व प्रतिपन्न होते हैं। चारित्र अट्ठण्हं पयडीणं उक्कोसट्ठिइइ वट्टमाणो उ । सामायिक मनःपर्यवज्ञान के साथ भी प्राप्त हो जीवो न लहइ सामाइयं चउण्हपि एगयरं ॥ सकता है। सत्तण्हं पयडीणं अभितरओ उ कोडिकोडीणं । ० भवस्थ केवली के सम्यक्त्व और चारित्र सामायिक काऊण सागराणं जह लहइ चउण्हमण्णयरं ।। पूर्वप्रतिपन्न होते हैं। (आवनि १०५,१०६) आठों कर्मप्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति में वर्तमान १०. सामायिक और उपयोग जीव सामायिक चतुष्टयी में से एक भी सामायिक प्राप्त "सम्बाओ लद्धीओ जइ सागारोवओगभावम्मि । नहीं कर सकता। इह कहमुवओगदुगे लब्भइ सामाइयचउक्कं ॥ आयुष्य को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों की स्थिति सो किर निअमो परिवड्ढमाणपरिणामयं पइ इहं तु। जब अंत: कोटि-कोटि सागरोपम रहती है, तब जीव जोऽवट्रियपरिणामो लभेज्ज स लभिज्ज बीए वि॥ चारों में से कोई भी सामायिक प्राप्त कर सकता है। - (विभा २७३१,२७३२) उक्कोसयट्रितीए पडिवज्जते य णत्थि पडिवण्णो। यदि सारी लब्धियां साकार उपयोग में ही उत्पन्न अजहण्णमणुक्कोसे पडिवज्जते य पडिवणे ॥ होती हैं तब साकार और अनाकार—दोनों में चारों . (आवनि ८१७) सामायिक की प्राप्ति कैसे हो सकती है ? आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष कर्मों की उत्कृष्ट साकार उपयोग की बात परिवर्धमान परिणामों की स्थिति में संक्लिष्ट परिणामों के कारण जीव कोई भी अपेक्षा से कही गई है। अवस्थित परिणाम की अपेक्षा सामायिक प्राप्त नहीं कर सकता। कर्मों की मध्यम स्थिति अनाकार उपयोग में भी चारों सामायिक प्राप्त हो सकते होने पर ही जीव के चारों सामायिक पूर्व प्रतिपन्न भी हो सकते हैं और प्राप्त भी हो सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy