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________________ संहनन संहनन संहनन-अस्थि-संरचना। वज्जरिसभणारायं पढमं बितियं च रिसभणारायं । णाराय अद्धणारायं कीलिया तह य छेवढें ॥ रिसभो उ होइ पट्टो वज्ज पुण कीलिया मुणेयव्वा । उभओ मक्कडबंधं णारायं तं वियाणाहि ॥ (आवहावृ १ पृ २२५) संहनन वजऋभनाराच Mir गि R ऋवभनाराच जाराच वज्जरिसभणारायं नाम वज्जबंधो वज्जवेढो वज्जकीलिया य, बितिए वेढओ णत्थि खीलिया, ततिए ण वेढओ णावि खीलिया, चउत्थं एगओ बद्धं, पंचम दुहओवि अबद्धं, छठें णवरं कोडीए मिलितं । (आवच १ पृ १२९,१३०) संहनन के छह प्रकार हैं१. वजऋषभनाराच-वज्र का अर्थ है कील, ऋषभ का अर्थ है वेष्टन और नाराच का अर्थ है मर्कटबन्ध (परस्पर गूंथी हुई आकृति)। जिस संहनन में अपनी माता की छाती से चिपके हुए मर्कटबन्दर के बच्चे की-सी आकृति वाली संधि की दोनों हड्डियां परस्पर गूंथी हुई हों, उन पर तीसरी हड्डी का परिवेष्टन हो और चौथी हड्डी की कील उन तीनों का भेदन करती हुई हो, ऐसी सुदढ़तम अस्थि-रचना को वज्रऋषभनाराच संहनन कहा जाता है। २. ऋषभनाराच-इसमें हड़ियों की आंटी और वेष्टन होते हैं, कील नहीं होती। ३. नाराच-इसमें केवल हड्डियों की आंटी होती है लेकिन वेष्टन और कील नहीं होते। ४. अर्धनाराच-इसमें हड्डी का एक छोर मर्कट बन्ध से बंधा हुआ होता है तथा दूसरा छोर कील से भेदा हुआ होता है। ५. कीलिका- इसमें हड्डियां केवल एक कील से जुड़ी हुई होती हैं, मर्कट-बन्ध आदि कुछ नहीं होते। ६. सेवातं-इसमें हड्डियां पर्यन्तभाग में एक-दूसरे से स्पर्श करती हुई-सी रहती हैं । संहतिः संहननमस्थिसंचयविशेषः । (विभामवृ २ पृ १६१) इह चेत्थम्भूतास्थिसञ्चयोपमितः शक्तिविशेषः संहननमुच्यते न त्वस्थिसञ्चय एव, देवानामस्थिरहितानामपि प्रथमसंहननयुक्तत्वात् । (आवहाव १ पृ २२५) संहनन का एक अर्थ है-अस्थि-संरचना। इसका अर्हताराच chudaliz कोलिका सेवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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