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________________ शरीर छट्टो वग्गो पंचमवग्गपडप्पण्णो, अहव णं छण्णउइछेयणगदायरासी । उक्कोसपए असंखेज्जा - असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणी ओसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ उक्कोसपर रूवपक्खित्तेहि मणुस्सेहि सेढी अवहीरइ, असंखेज्जाहि उस्सप्पिणी ओसप्पिणीहि कालओ, खेत्तओ अंगुल पढमवग्गमूलं तइयवग्गमूल पडुप्पण्णं । जहा ओहिया ओरालिया । मुक्केल्लया ( अनु ४९० ) मनुष्यों के औदारिक शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ? औदारिक शरीर के दो प्रकार हैं - बद्ध और मुक्त 1 उनमें जो बद्ध हैं वे कभी संख्येय होते हैं और कभी असंख्येय होते हैं । जघन्यपद में मनुष्यों के बद्ध औदारिक शरीर संख्येय होते हैं । संख्येय का प्रमाण इस प्रकार है— सख्येय करोड़, उनतीस अंक जितने ( आगमिक संज्ञा के अनुसार ) त्रियमल पद से अधिक और चतुर्थयमल पद से कम होते हैं । अथवा पांचवें वर्ग से गुणित छठे वर्ग, अथवा जो राशि आधे-आधे रूप में छिन्न करने पर छियानवे बार छिन्न हो सके, उतने होते हैं । उत्कृष्टपद में मनुष्यों के बद्ध औदारिक शरीर असंख्येय होते हैं । काल की दृष्टि से उनका अपहार असंख्येय उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में किया जाता है । क्षेत्र की दृष्टि से उत्कृष्ट पद में होने वाले मनुष्यों में एक मनुष्य का प्रक्षेप करने पर उनके द्वारा एक आकाश प्रदेश की श्रेणी का अपहार होता है । इस कार्य में असंख्येय उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी का काल लगता है । क्षेत्र खंड का अपहार किया जाए तो श्रेणी के अंगुल प्रमाण क्षेत्र में होने वाली प्रदेश राशि के प्रथम वर्गमूल को तृतीय वर्गमूल से गुणित करने पर जो प्रदेश राशि प्राप्त होती है, उतने मनुष्य होते हैं । मुक्त शरीर औधिक औदारिक शरीर की भांति प्रतिपादनीय है । (देखें - अनु ४५७) अहं अट्ठण्हं ठाणाणं जमलपदत्ति सण्णा सामयिकी ।छ वग्गा ठविज्जंति, तंजहा एक्कस्स वग्गो एक्को एस गुणवुड्ढी रहितोत्ति कातुं वग्गो चेव ण भवति ते विहं वग्गो चत्तारि एस पढमो वग्गो, एयस्स वग्गो सोलस एस बितिओ वग्गो, एयस्स वग्गो दो सता छप्पण्णा, एस ततितो वग्गो, एतस्स वग्गो पण्णट्ठि सहस्साई पंच सयाई छत्तीसाई एस चउत्थो वग्गो, एयस्स इमो वग्गो तंजहा ४२९४९६७२९६ । पंचमवग्गस्स इमो वग्गो होति. १८४४६७४४०७३७०९५५१६१६ । एत्थ य पंचम छट्ठेहि पयोयणं, एस छट्टो वग्गो पंचमेण वग्गेण Jain Education International औदारिक शरीर पडुप्पाइज्जइ, पडुप्पाइए समाणे जं होति एवइया जहण्णपदिया मणुस्सा भवंति, ते य इमे एवइया ७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ एवमेताई अउणतीसं ठाणाई एवइया जहण्णपदिया मणस्सा । ( अनुचू ६९, ७० ) संख्यात के भी संख्यात भेद होते हैं । इसलिए संख्यात कहने से निश्चित संख्या का बोध नहीं होता । निश्चित संख्या का कथन करने के लिए संख्यात कोटाकोटि कहा गया है । इसको और स्पष्ट करने के लिए २९ स्थान (अंक दशमलव ) कहे गए हैं। तीन यमलपद से अधिक और चार यमलपद से कम कहा गया है । आठ अंकों (दशमलव ) का एक यमलपद होता है । यह आगमिक संज्ञा है । २९ अंकों (दशमलव ) में तीन यमलपद से पांच अंक अधिक और चार यमलपद से तीन अंक कम हैं । प्रकारान्तर से कहा गया है पांचवें वर्ग और छट्ठे वर्ग के गुणनफल जितना है। इसे सरलता से इस प्रकार समझा जा सकता है । एक का वर्ग एक ही आता है उसके कितने ही वर्ग करो एक ही आएगा । इसलिए वर्गफल के लिए दो की संख्या को ग्रहण किया जाता है। २x२=४ पहला वर्गफल । ४४४ = १६ दूसरा वर्गफल । १६×१६ = २५६ तीसरा वर्गफल । २५६×२५६= ६५५३६ चौथा वर्गफल | ६५५३६×६५५३६= ४२९४९६७२९६ पांचवां वर्गफल । ४२९४९६७२९६४ ४२९४९६७२९६ १८४४६७४४०७३७०९५५१६१६ छट्टा वर्ग । अब पांचवें और छट्ठे वर्गफल को गुणा किया ४२९४९६७२९६४ १८४४६७४४०७३७०९५५१६१६= ७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६ । इसी ५९८ में २९ अंक है । प्रकारान्तर से तीसरी व्याख्या मिलती है कि उस राशि के छियानवे छेदनकदायी होते हैं । जो आधे-आधे करते छियानवें बार छेदन को प्राप्त हो और अंत में एक बच जाए उसे छियानवे छेदनकदायी राशि कहते हैं । इसका क्रम इस प्रकार है प्रथम वर्गफल (२×२ ) = ४ का छेदन छेदनक होते हैं। अगले अगले वर्गफल में छेदनक होते जाते हैं । दूसरे वर्गफल के ४ छेदनक तीसरे वर्गफल के ८ छेदनक चौथे वर्गफल के १६ छेदनक For Private & Personal Use Only करने से दो पूर्व से दुगुने www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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